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वाराणसी – जिगर वाला, पुलिस वाला।।

वाराणसी। दीक्षा सिंह व मो.राशिद। वक्त की रफ़्तार कुछ इस तरह होती है कि हम उन खबरों को ही देख पाते है जो पसंद हो। क्या किया जाय, जो तुमको हो पसंद वही बात करेगे के तर्ज पर हमको भी काम करना पड़ता है। कभी कभार समाचारो की इस भागम भाग में कुछ ऐसा पीछे रह जाता है जो खुद में एक खबर हो। आज आपको ऐसे ही एक खबर के पीछे की खबर से रूबरू करवाते है।

कल सिगरा थाना अंतर्गत लल्लापुरा में ईसा के मकान में अवैध गैस रिफलिंग के दौरान सिलेंडर में आग लग गई। कई लोगो के घायल होने का समाचार आप तक पंहुचा। इतने वर्षो से अवैध गैस रिफलिंग का कारोबार हो रहा था इसके लिए क्षेत्रिय थाने की ज़िम्मेदारी तो बनती ही है। यह एक कटु सत्य है और इसके लिए जो आलोचना होनी चाहिए वो हो भी रही है।
इन सबके बीच शायद क्षेत्रिय नागरिको को छोड़ किसी अन्य ने ध्यान भी न दिया कि यह हादसा अगर कुछ पुलिस कर्मियो ने खुद की परवाह किये बिना जो कार्य किया वह नहीं किया होता तो और भी भयावह होता। आइये आपको कुछ आँखों देखी घटना बताते है। जिसके चर्चे देर रात तक क्षेत्र में सुनाई दिए।
क्षेत्र मे एक सिलंडर फटते ही लोगो की भीड़ जुट चुकी थी। लोग तमाशबीन बनकर देख रहे थे, बड़े तो बड़े बच्चे भी वहा खड़े थे। घटना स्थल पर माताकुण्ड चौकी इंचार्ज अमरेंद्र कुमार पाण्डेय सदल बल पहुच चुके थे। अभी घटना को समझ ही रहे थे चौकी इंचार्ज तब तक एक और सिलेंडर फटा और उसकी आग की लपक ठीक सामने के मकान तक पहुची जिससे वहा बाहर की तरफ लगा प्लास्टिक बॉडी का कूलर पिघल गया। अब पुलिसकर्मियो के लिए आस पास की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण थी। आनन फानन में आस पास के घरो हेतु सुरक्षा उपलब्ध हो रही थी जबकि तमशबीन बनकर खड़ी भीड़ हटने का नाम ही न ले रही थी।
तब तक आग की लपटे तेज़ हुई और सामने खड़ी भीड़ को अपनी ज़द में लेने को आतुर हो गई। जनता को किनारे करते हुवे चौकी इंचार्ज अमरेंद्र की नज़र एक मंदिर के बगल में खड़े एक बच्चे पर पड़ी, चौकी इंचार्ज ने बच्चे को हटाने के लिए उसको पकड़ा तब तक आग की लपट उधर को भी हुई और बच्चे को बजाते बचाते चौकी इंचार्ज का हाथ भी झुलस गया।
ऐसा नहीं की बकिया पुलिसकर्मी मूकदर्शक थे, ऐसे ही जनता को बचाते बचाते कांस्टेबल उमा शंकर यादव सहित 6 अन्य पुलिस कर्मियो को आग ने झुलसाने का प्रयास किया। घायल पुलिस कर्मियो को प्राथमिक उपचार ज़िला चिकित्सालय में उपलब्ध हुवा। कुछ पुलिस कर्मियो ने शाम को निजी चिकित्सालय से इलाज करवाया। किसी प्रकार आग पर काबू पाया गया। जब पुलिस के मना करने पर भी तमाशबीन नहीं माने तो पुलिस ने सड़क पर लाठिया पटक कर उनको हटाने का प्रयास किया मगर कुछ ही मिनटो में पुनः तमाशबीनों की भीड़ इकठ्ठा हो गई।
खैर साहेब प्रश्न तो मेरा उन तमाशबीनों के लिए है। यारो किसी का जलता हुवा आशियाना देखने में आखिर क्या मज़ा मिलता है। अगर आप किसी के लिए मुश्किल में सहायता नहीं कर सकते हो तो फिर उसकी सहायता के लिए लगे लोगो के लिए क्यों समस्या बनते हो साथियो। अब आप खुद सोच कर बताओ, अगर पुलिसकर्मी आपको सुरक्षित नहीं कर पाते तो इस आग की ज़द में आपमें से भी कुछ लोग आते, और फिर वह स्थिति और भी भयावह होती।
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