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कुछ तो अभी बाकि रह गया है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेशों में

फारुख हुसैन/लखीमपुर (खीरी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश पर पूरे देश की नज़रें लगी हुई थीं. उम्मीद थी कि वे पिछले 50 दिनों के कष्टों के ख़त्म हो जाने की घोषणा करेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. क्यों नहीं हुआ, यह अब किसी से छिपा हुआ नहीं है. प्रधानमंत्री के संदेश में ऐसी बहुत सी बातें थीं जिन्हें होना चाहिए था लेकिन थी नहीं. आइए देखें कि कौन सी 10 बातें उन्हें कहनी थीं लेकिन कहीं नहीं।
1. न उन्होंने उस वादे का ज़िक्र किया जिसमें कहा था कि सिर्फ़ 50 दिन कष्ट सह लो फिर अगर सब कुछ ठीक नहीं हुआ तो मुझे जो सज़ा देंगे स्वीकार्य होगी. न उन्होंने यह बताया कि यह कष्ट और कितने दिन जारी रहेगा. बस यह कहा कि बैंकों से कहा है कि नए वर्ष में वे दूरदराज के इलाक़ों में अपनी व्यवस्था सुधारें।
2. उन्होंने यह नहीं बताया कि इन 50 दिनों में बैंकों में कुल कितना पैसा जमा हो गया और कितना कालाधन भ्रष्ट और बेईमान लोग जमा नहीं कर पाए. यानी कितने कालेधन का पता चला? उनका दावा था कि इस प्रक्रिया से कालेधन वाले परेशान होंगे क्योंकि वे बैंकों में पैसा जमा नहीं कर पाएंगे।
3. नरेंद्र मोदी जी ने यह नहीं बताया कि आतंकवाद और नक्सलवाद को मिलने वाला पैसा बंद हो जाने से ऐसी गतिविधियों में कितनी कमी आई है. क्योंकि वे दावा कर गए थे कि नोटबंदी से इन संगठनों की गतिविधियां रुक जाएंगीं।
4. प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि नोटबंदी के दौरान कारोबार, उद्योंगों और किसानों को जो नुक़सान हुआ है, उसकी भरपाई सरकार कैसे करेगी? और यह भी कि ये नुक़सान अगर जारी रहता है तो आगे गुज़ारा कैसे चलेगा?
5. उन्होंने यह नहीं बताया कि नोटबंदी के बाद जिन लोगों को रोज़गार से हाथ धोना पड़ा है, वे अब क्या करें, क्या सरकार उन्हें कोई बेरोज़गारी भत्ता देने वाली है या फिर उन्हें सिर्फ़ त्याग और बलिदान की तारीफ़ सुनकर ही गुज़ारा करना होगा।
6. नरेंद्र मोदी जी ने यह नहीं बताया कि यदि सिर्फ़ 24 लाख लोग अपनी आय 10 लाख से अधिक बताते हैं तो बाक़ी ऊंची बिल्डिंगों में रहने वाले लोगों का सरकार क्या करेगी? किस तरह से उन्हें अपनी सही आमदनी बताने के लिए बाध्य किया जाएगा ?
7. राष्ट्र के नाम संदेश में मोदी जी ने घर बनाने के लिए कर्ज़ में छूट की बात तो बता दी लेकिन यह बताने से रह गया कि इसके लिए मार्जिन मनी कहां से आएगी और जब खाने के लाले पड़े हों तो ग़रीब और निम्नमध्यम वर्गीय लोग मकान बनाने की सोचेंगे भी कैसे ?
8. रबी की बुआई और खाद की ख़रीदी में बढ़ोत्तरी का ज़िक्र तो किया लेकिन यह नहीं बताया कि जिन किसानों ने सोसाइटी को धान बेचा है उसका पैसा उन्हें कब तक और कैसे मिलेगा. अनुमान है कि अभी भी 65-70% पैसा उन्हें मिलना बचा हुआ है. और अगर पैसा नहीं मिलेगा तो 60 दिनों की ब्याजमाफ़ी का क्या औचित्य रह जाएगा ?
9. राजनीतिक दलों के पैसों की बात की लेकिन यह नहीं बताया कि दलों के पैसों को कालेधन से सफ़ेद धन की ओर लाने के लिए वे  करने जा रहे हैं. या उनकी अपनी पार्टी कौन से क़दम उठाने जा रही है. वे यह भी बताने से चूक गए कि पिछले ढाई सालों में उन्होंने राजनीतिक दलों के चंदों को लेकर क्या क़दम उठाए हैं।
10. और अंत में उन्होंने यह भी नहीं बताया कि कैशलेस को डिजिटल लेनदेन कहने भर से सब कुछ आसान हो जाएगा क्या? उसके कष्ट कैसे दूर होंगे।
नोटे- लेख में लिखी बाते लेखक के स्वयं के स्वतंत्र विचार है.
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