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इसके पहले भी हुई थी सियासी बगावत …

ग़जमफर अली/ बांदा
मुलायम फैमि‍ली में घमासान से पहले बसपा शासन में नसीमुद्दीन सिद्दीकी की फैमि‍ली में भी सियासी बगावत हो चुकी है। नतीजे में उनके छोटे भाई हसन और साढ़ू शकील अली ने सपा का दामन थाम नसीमुद्दीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी बांदा जि‍ले के गिरवां थाना क्षेत्र के रहने वाले हैं। वहां उनके परिवार की कभी सियासी पहचान नहीं रही। इनके बड़े भाई जमीरउद्दीन सिद्दीकी ने उन्‍हें मौका दि‍लवाया। वे बसपा संस्थापक काशीराम के बहुत करीबी थे। उन्‍होंने 1991 में नसीमुद्दीन को बसपा टिकट दिलवाया। नसीमुद्दीन चुनाव जीते और बांदा और बसपा के पहले मुस्लिम विधायक बने। धीरे-धीरे वे मायावती के बेहद खास हो गए। 2007 में बसपा की सरकार बनी तो नसीमुद्दीन मिनी मुख्यमंत्री के रूप में उभरे और 5 साल में ही पूरे परिवार को मजबूती दे दी। इसी सियासी मजबूती और रसूख ने परिवार में राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा भी मजबूत की।परिवार के कई सदस्यों ने बीएसपी में राजनीतिक पारी शुरू करने की कोशिश की लेकिन नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने इसे स्वीकार नहीं किया। यहीं से परिवार में बगावत का सिलसिला शुरू हो गया।

बढ़ा फैमि‍ली झगड़ा।

नसीमुद्दीन के छोटे भाई हसनुद्दीन रेलवे में टीटीई के पद पर नौकरी करते थे। 2010 में बसपा सरकार आने के बाद इन्होंने वीआरएस ले लिया और नसीमुद्दीन के विभागों में ठेकेदारी शुरू कर दी।-उन्‍होंने अपने भाई नसीमुद्दीन से बांदा विधानसभा चुनाव के लिए बसपा से टिकट मांगा। इस पर नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने सियासी विरासत अपने बेटे अफजल को देने की बात कहकर किसी फैमि‍ली मेंबर को राजनीति में लाने से साफ इनकार कर दिया। इसी समय एक और घटना हुई। इससे सिद्दीकी परिवार में झगड़ा बढ़ गया। 2010 के एमएलसी चुनाव में मायावती ने बांदा हमीरपुर क्षेत्र से नसीमुद्दीन के बड़े भाई और पुराने बसपा नेता जमीरउद्दीन सिद्दीकी को प्रत्याशी घोषित कर दिया। बताते हैं कि‍ नसीमुद्दीन सिद्दीकी को ये बात बेहद नागवार गुजरी और एक दिन बाद ही जमीरउद्दीन का टिकट कटवाकर नसीमुद्दीन ने अपनी पत्नी हुस्ना सिद्दीकी को एमएलसी प्रत्याशी घोषित करा दिया। चुनाव जितवाकर अपनी पत्नी को विधान परिषद पहुंचा दिया।

विद्रोह की शुरुआत।

बस इसके बाद ही परिवार में विद्रोह हुआ और हसनुद्दीन सिद्दीकी और नसीमुद्दीन के साढ़ू पूर्व जि‍ला पंचायत अध्यक्ष शकील अली ने सपा का दामन थामकर नसीमुद्दीन की सियासी जमीन में भूचाल ला दिया। सूत्रों की मानें तो इस घटना के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बगावती साढू से अपने सभी रिश्ते तक तोड़ दिए। साल 2012 की वि‍धानसभा चुनाव में हसनुद्दीन सिद्दीकी ने सपा से टिकट मांगा,लेकिन अखिलेश यादव ने इन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया। इसके बाद लोकसभा चुनाव में हसन ने सपा के प्रति अपनी वफादारी साबित की। फतेहपुर से चुनाव लड़ रहे नसीमुद्दीन के बेटे और अपने भतीजे अफजल के खिलाफ उन्‍होंने सपा के पक्ष में जबरदस्त प्रचार किया। सपा फतेहपुर से जीत तो नहीं सकी, लेकिन इसके बाद हसन की स्थिति सपा में बेहतर हो गई। आज इसी का नतीजा है कि बसपा दिग्गज नसीमुद्दीन के गढ़ में सपा प्रत्याशी के रूप में हसन ताल ठोंक रहे हैं। इस संबंध में हसन सिद्दीकी का कहना है कि सियासत किसी की विरासत नहीं है। सबको जनता के बीच में जाने का हक है। आज स्थिति ये है कि आधा खानदान हसन के साथ है तो आधा नसीमुद्दीन के साथ।
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