करिश्मा अग्रवाल (विशेष संवाददाता)
उमंग ,उल्लास और रंगों से भरे उत्सव होली को यूँ तो हम सभी मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि सांस्कृतिक विभिन्नताओ में परिपूर्ण भारत में कई जगह होली को कुछ विशेष तरीको से मनाया जाता है। जी हाँ! आइये जानते हैं बंगाल में होली पर मनाये जाने वाले ‘दोल उत्सव’ के बारे में।
बंगाल में होली में एक दिन पहले मनाये जाने वाले इस “दोल उत्सव” को ऐसा माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु ने “दोल यात्रा” के रूप में शुरू किया था ,जिसमे सबसे पहले मंदिर में श्री कृष्ण को ‘अबीर’ लगाकर रंग खेलने की शुरुआत की जाती है। जुलूस के रूप में मनाये जाने वाले इस “दोल यात्रा”में बंगाली महिलाएँ लाल किनारे वाली सफ़ेद साड़ी पहनती हैं और शंख नाद करते हुए, चैतन्य महाप्रभु व् अन्य भजनों को गाते हुए राधा कृष्ण की पूजा की जाती है। दोल का अर्थ होता है , ‘झूला’। इसमें डोले पर राधा कृष्ण की मूर्ति रख कर जुलूस निकला जाता है। ‘दोल उत्सव’ में पारंपरिक पकवानों संदेश, रसगुल्ला और नारियल से बनी मिठाइयाँ ख़ास तौर पर पसंद की जाती है। ‘दोल यात्रा’ को शांति निकेतन में “बसंतोत्सव” के रूप में मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत काव्य गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर द्वारा की गई ।जिसमे महिलाएँ लाल किनारी वाली पीली साड़ी पहन ‘बसंतोत्सव’ मनाती है।
शांति निकेतन और रविन्द्र नाथ टैगोर के पैतृक आवास (कलकत्ता), जादासांको में आयोजित होने वाला बसंतोत्सव बंगाल की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है।