वाराणसी: गृह उद्योग के तौर पर वाराणसी मे बनने वाली बनारसी साड़ी का देश ही विदेश भी ‘दीवाना’ है। हाथ से बनाई जाने वाली ‘बनारसी साड़ी’ कुशल कारीगरी और हुनरमंदी का एक बेमिसाल नमूना है। एक समय था कि यह व्यवसाय आसमान की बुलंदियों पर था। फिर शुरू हुआ निचले स्तर के मगर सस्ते चाईना सिल्क से मशीन द्वारा बनारसी साड़ियों की डुप्लीकेट साड़ियॉ बनाने का दौर, जिसने बनारस के इस गृह उद्योग की कमर तोड़ दी। जो बची-खुची कसर है वह ज़री पर 5% जीएसटी पूरी कर देगी।
बनारसी साड़ी पर न कभी टैक्स था, न वर्तमान मे जीएसटी के अंतर्गत टैक्स लगाया गया है। पर बनारसी साड़ी को जिस ज़री द्वारा आकर्षित और सुन्दरता प्रदान किया जाता है। उस जरी को जीएसटी के दायरे मे ला दिया गया है और उस पर 5% का जीएसटी दर लागू कर दिया गया है। जबकि जरी पर भी कभी किसी प्रकार का टैक्स नही हुआ करता था।
स्वाभाविक है कि जब जरी की दर बढ़ेगी तो बनारसी साड़ी का दाम भी बढ़ जायेगा। हाथ से बनने वाली साड़ी का दाम मजदूरी अधिक होने के कारण वैसे ही अधिक था। अब जरी का दाम बढ़ने से इसकी कीमत मे और अधिक इज़ाफा हो जायेगा। साड़ी की कीमत बढ़ने से खरीदारो की संख्या कम होगी। जिससे रोजगार प्रभावित होगा। इस प्रकार वाराणसी मे 35 से 40 हजार बुनकर परिवार प्रभावित होगे।
बनारस के एक बुजुर्ग बुनकर जावेद अंसारी कहते है कि “हालांकि जीएसटी एक अच्छी टैक्स व्यवस्था है। इससे इंकार नही किया जा सकता। जीएसटी द्वारा कहीं नुकसान तो कहीं फायदा भी होगा। जीएसटी का हम स्वागत करते है। पर सरकार से मांग है की बनारसी साड़ी की तरह जरी को भी जीएसटी से फ्री कर दिया जाये।” देखा जाए तो मंदी की मार से जूझ रहा यह कारोबार वास्तव में 5% टैक्स का बोझ नही उठा पाएगा।