भागलपुर [मिहिर सिन्हा]। तिलकांमांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी समाजशास्त्र विभाग में हुए एक शोध से पता चला है कि प्रेम विवाह करने वालों की तुलना में अभिभावकों की मर्जी से शादी करने वाले अधिक सुखी रहते हैं। इस शोध में पांच साल लगे और लगभग 3000 लोगों से राय लेने के बाद इस शोध को प्रकाशित किया गया।
तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के पीजी समाज शास्त्र विभाग में हुए शोध से पता चला है कि अभिभावकों की मर्जी से शादी करने वाले ज्यादा सुखी है। चौकाने वाले इस रिसर्च को बीस छात्रों की टीम ने पांच साल में तीन हजार जोड़े से उनके वैवाहिक जीवन से जुड़े सवाल के बाद पाया।
रिसर्च में पाया गया वो प्रेम विवाह करने वाले दंपति जो नौकरी करते है। वो अपनी आजादी से समझौता नहीं करते। जाति बंधन को तोड़ प्रेम विवाह तो कर लेते है लेकिन एक दूसरे के परिवार से रिश्ता जोडऩे में सफल कम होते है। जिसके बाद विवाह में विवाद उत्पन्न होने लगता है, जो तलाक तक चला जाता है।
रिसर्च में पाया गया है प्रेम विवाह करने वालों पर अभिभावकों का पकड़ नहीं रहता है। इसका कारण प्रेमी जोड़े का आर्थिक आत्मनिर्भरता है। अभिभावकों की मर्जी से शादी करने वालों पर दोनों पक्षों के लोगों का दबाव रहता है। विवाद का समाधान दोनो पक्ष के परिवार करते है। जिससे रिश्ता कोर्ट कम जाता है।
कई कारण है रिश्ते में कलह का
प्रेम विवाह करने वालों के सामने रिश्ता को लेकर कई चुनौती होता है। रिसर्च से पता चला है कि परम्परा व संस्कृति पहली चुनौती होती है। महानगर में अकेले रहने वाले युवा अपनी परम्परा से दूर हो जाते है। जानकारी के अभाव में प्रेमी दंपति परिवार के बीच उपहास का पात्र बन जाता है। जिससे परिवार से दूरी उत्पन्न हो जाता है। दूरी को भी एक कारण माना गया है।
परिवार के बीच प्रेमी जोड़े समय नहीं देते है। जिससे आपसी संवाद में कमी हो जाती है। वहीं अन्य कारणों में लडकी के वैवाहिक जीवन में मायके के हस्तक्षेप को भी माना गया है।
रिसर्च में अभिभावकों की मर्जी से हुई शादी पर भी उठा है। इस शादी में भी धुटन देखा गया। परिवार का अत्याधिक दबाव इसका कारण माना गया है। लेकिन पारिवारिक दबाव में बहुत कम दंपति ही तलाक तक जा पाते है। विवाह पर हुए रिसर्च से कई चौकाने वाले तथ्य मिले है। प्रेम विवाह जहां सवालों के घेरे में है वहीं कुछ कमी अभिभावकों की मर्जी से शादी में भी पाया गया है। तलाक के मामले भी समाज में ज्यादा देखा जा रहा है।
प्रो. प्रमोद कुमार सिन्हा, विभागाध्यक्ष, पीजी समाजशास्त्र विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय।