शबाब ख़ान
वाराणसी : जी हॉ रोटी बैंक। पहली बार नाम सुनकर जरूर चौके होगें। यह एक अनोखी और बेमिसाल पहल है गरीबी के मारे लोगों के लिए। भूख क्या होती है यह गरीबी की मार झेल रहे लोगों से बेहतर कोई नही समझ सकता, और यह अनूठा रोटी बैंक हर रोज ऐसे ही लोगों की भूख मिटा रहा।
यह एक ऐसा बैंक है जहां रुपये-सिक्के नहीं, रोटी-चावल जुटाया जाता है और ये भोजन बिना किसी रकम और ब्याज के गरीब परिवारों को बांटा जाता है। काशी में पहली बार शुरू की गई यह अनूठी पहल यहां की तंग गलियों में धीरे-धीरे रंग लाने लगी है।
भूख मिटाने की जद्दोजहद में रोटी के टुकड़ों की तलाश में लोग कूड़े के ढेर तक को उधेड़ जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ था उस दिन भी, जब बनारस के किशोर कांत तिवारी गंगा घाट पर बैठे थे और कुछ ही दूरी पर कूड़े के ढेर में कुछ बच्चे भोजन की तलाश में जूझ रहे थे। यही वो पल था, जब किशोर कांत ने महसूस किया कि कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे घरों में बचा भोजन सीधे इन गरीब परिवार को मिल सके। इसी सोच की जमीन पर नींव पड़ी रोटी बैंक की। ये रोटी बैंक सामनेघाट के पास महेशनगर में है।
मूल रूप से बिहार के रहने वाले किशोर कांत तिवारी के संयोजन में अब तक 25 से अधिक लोग इस रोटी बैंक से जुड़ चुके हैं। किशोर कांत यूं तो गरीब बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं लेकिन फिलहाल पूरी शिद्दत से रोटी बैंक की अपनी योजना को साकार करने में जुटे हैं। वह लोगाें से रोजाना सिर्फ दो रोटी, सब्जी या अचार दान में मांगते हैं।
अब तक 25 से अधिक लोग नियमित दानदाता के तौर पर जुड़ चुके हैं। जो रोजाना उनके बैंक में रोटी दान में देते हैं। बैंक की ओर से रोजाना शाम छह बजे के बाद लंका, अस्सी, सामनेघाट पर सड़क और घाट किनारे रहने वालों को रोटी-सब्जी और अचार बांटा जाता है।