वाराणसी. जश्न-ए-ईद मिलादुन नबी के अवसर पर शहर के मुस्लिम इलाके दुल्हन की तरह सजे थे, हर तरफ नात ख्वानी की आवाज़े आ रही थी जो दिलो और कानो को सुकून पहुचा रही थी. मुस्लिम समुदाय के लोग पूरी रात ही क्षेत्र में भ्रमण करते रहे और खुशिया मनाते रहे. इस दौरान नई सड़क, दालमंडी, शिवाला, बड़ी बाज़ार,नदेसर जैसे इलाके तो दुल्हन की तरह सजे थे. सजावट भी ऐसी कि धरा पर कही अँधेरे का नामो निशाँ तक नहीं बचा था. जगह जगह पर मंच लगा कर नात ख्वानी हो रही थी. पुरे शहर की अंजुमने अपने नतिया कलाम से लोगो की तारीफ बटोर रही थी. सुबह होते ही सलीमपुरा इलाके में जियारत का सिलसिला शुरू हुआ जो शाम को मगरिब की अज़ान तक चलता रहा, ज्ञातव्य हो कि इस इलाके में सरकार-ए-दो आलम आका सरवरे कायनात मुहम्मद मुस्तफा सल्ललाहो अलैहि वसल्लम के मुये-मुक़द्दस (दाढ़ी का बाल) आपकी जायनमाज़ का टुकड़ा, कपड़ो का टुकड़ा है जिसकी बारह रबीउल अव्वल को जियारत होती है. आम मुस्लमान इसकी ज्यारत का फैज़ उठाते है,
इस दौरान सलीमपुरा क्षेत्र में हुई सजावट मुख्यतः आकर्षण का केंद्र रही. इस सजावट की ख़ास बात यह थी कि इसको इलाके के छोटे बच्चो ने किया था. आपस में चंदा उतार कर खुद की मेहनत से शानदार इलाके में सजावट किया था,. सजावट भी थोड़ी बहुत नहीं बल्कि लगभग 500 मीटर के दुरी तक यह सजावट किया. बीच में बनी झालर और झूमर ने लोगो को अपनी तरफ बरबस ही आकर्षित कर रखा था, इस झूमर के नीचे बनी एक नाव जिसमे मछलिया मुहब्बत का पैगाम देती तैर रही थी लोगो को अपने तरफ आकर्षित कर रही थी. इस सजावट को करने वाले मासूम बच्चो में जाबिर, आबिद, शालू, निक्कू, लाल, अफ़ज़ल उर्फ पुची, पुल्लु, शादाब, अदनान, शहज़ाद, रेहान, अल्बक्श, तस्लीम आदि के प्रयास सराहनीय थे.
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