हर्मेश भाटिया.
नई दिल्ली. वरिष्ठ नेता शरद यादव राज्यसभा की सदस्यता के अयोग्य घोषित किए जाने के सभापति एम. वैंकेया नायडू के फैसले को अदालत में चुनौती देंगे। यादव ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह सदन और सभापति की संस्था का सम्मान करते हुए उनके फैसले पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे। उन्होंने कहा ‘सभापति का फैसला सर-माथे पर। मैं इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले ही तैयार था। अभी यह लड़ाई आगे जारी रहेगी। चुनाव आयोग के फैसले की तरह इस फैसले को भी कानून की अदालत में और जनता की सर्वोच्च अदालत में ले जाएंगे।’
यादव ने कहा कि वास्तविक लड़ाई सिद्धांत की है, जिसका मकसद जनता से करार तोड़ने वालों को बिहार और देश भर में बेनकाब करना है। जदयू द्वारा सैद्धांतिक आधार पर शरद को पहले ही इस्तीफा देने की नसीहत देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह 43 साल में 11 बार संसद सदस्य की शपथ ले चुके हैं और उन्होंने तीन बार राज्यसभा से इस्तीफा दिया। उन्होंने कहा ‘सिद्धांत का तकाजा तो यह है कि नीतीश को जनता से हुए करार को रातों रात तोड़ने के बाद विधानसभा भंग कर फिर भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए था।
इस मामले को राज्यसभा की किसी समिति के सुपुर्द करने के बजाय सभापति द्वारा त्वरित न्याय का हवाला देकर फैसला देने पर यादव ने कहा ‘भगोड़ा घोषित किये गए विजय माल्या का मामला आचरण समिति को भेजा गया। यहां तक कि आतंकवादी कसाब को भी न्याय के सभी विकल्प मुहैया कराए गए। जबकि शरद यादव के लिए न्याय के सभी दरवाजे बंद कर सीधे सभापति ने फैसला सुना दिया। नायडू से अपनी घनिष्ठ मित्रता का हवाला देते हुए कहा कि त्वरित न्याय का अगर यही मानक है तो फिर विशेषाधिकार समिति और आचरण समिति की व्यवस्था को खत्म कर देना चाहिये.
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