इलाहाबाद : प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता वीसी मिश्र सुप्रीम कोर्ट के जजों के झगड़े को लोकतंत्र के लिए खतरा मान रहे हैं। उनका कहना है कि इससे लोकतंत्र कमजोर होगा। एक दैनिक प्रातः कालीन समाचार पत्र की अकेडमिक बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद मिश्र ने इस बाबत बेबाक टिप्पणी की। बोले, इससे आमजन में बहुत गलत संदेश गया है।
सोमवार को ‘सुप्रीम कोर्ट का संकट कितना गंभीर’ विषय पर चर्चा हुई। लगभग दो घंटे तक संपादकीय विभाग के साथ चली बैठक में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन वीसी मिश्र ने पहले बार और बेंच के संबंधों को स्पष्ट किया। बताया कि बार से ही बेंच बनता है मगर परंपरा के मुताबिक बेंच का सम्मान किया जाता है। हालांकि कोई कानून नहीं है कि बेंच का सम्मान करना अनिवार्य है।
अहम बात यह बताई कि वर्ष 1975 के पहले कभी अधिवक्ता हड़ताल नहीं करते थे। सुप्रीम कोर्ट से ही इसकी शुरूआत हुई थी। अब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने नई परंपरा शुरू कर दी कि अपने झगड़े को मीडिया सामने लाने की। चार जजों द्वारा अपनी बात मीडिया के सामने लाना न्यायपालिका के सम्मान पर कुठाराघात है। कहा कि जजों को आपस में बैठक कर मुद्दे को सुलझाना चाहिए था। प्रधान न्यायाधीश से मिलना चाहिए था। यहां भी बात न बनती तो फिर राष्ट्रपति के पास उन्हें जाना चाहिए था। इस परंपरा से आमजन के साथ ही अधिवक्ताओं में भी गलत संदेश गया है। कहा कि दो बिंदुओं पर ही सुप्रीम कोर्ट के जज मीडिया के सामने आए। पहला महत्वपूर्ण मुकदमे जूनियर जजों को दे दिए जाते हैं और दूसरा बेंच गठन में पारदर्शिता नहीं रखी जाती है। मिश्र ने पहले बिंदु पर कहा कि कोई मुकदमा छोटा-बड़ा नहीं होता और न ही कोई जज छोटा-बड़ा होता है। दूसरे बिंदु पर उन्होंने कहा कि बेंच का गठन तो हमेशा से ही प्रधान न्यायाधीश ही करते आ रहे हैं। सीजेआइ को बेंच गठित करने का अधिकार है। अब रोस्टर आ रहा है, जिससे पारदर्शिता तो आएगी मगर कभी-कभी इसके दुष्परिणाम भी सामन आ सकते हैं। मसलन, अयोध्या मामले में गठित बेंच में विभिन्न धर्मो के जज रखे गए थे, अब रोस्ट¨रग के जरिए ऐसा करना पाना मुश्किल होगा। क्योंकि रोस्टर के मुताबिक उस हिसाब से जजों का नाम आएगा तभी अयोध्या मामले जैसी बेंच गठित हो पाएगी।
उन्होंने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। जजों की नियुक्ति में भी पारदर्शिता के लिए कानून बनाए जाएं। अलबत्ता यह भी बताया कि डिजिटलाइजेशन से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना शुरू हो गया है। उन्होंने आने वाले समय में चुनौतियों और इसके समाधान पर भी चर्चा की। कहा कि न्याय सच्चाई पर हो। न्याय सिर्फ करना ही नहीं होता, न्याय दिखना भी चाहिए यह बार और बेंच की जिम्मेदारी बनती है। वरिष्ठ अधिवक्ता वीसी मिश्र ने यह भी कहा कि जातिवाद पर अंकुश के लिए अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा देना चाहिए। इसके लिए कानून बना देना चाहिए। रोटी और बेटी का रिश्ता कायम होने से जाति व धर्म की दूरी खत्म होगी। जातिवाद विकास में बाधक है। इसके साथ ही जातिवाद से समाज को भी बांटा जा रहा है।
वीसी मिश्र का संक्षिप्त परिचय
इटावा में आठ फरवरी 1930 में पैदा हुए वीसी मिश्र की शुरुआती पढ़ाई गृह जनपद में हुई। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी व एलएलबी किया। वहां 1957 में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। लखनऊ जिला कचहरी में ही चार साल उन्होंने वकालत की। एक मामले में गिरफ्तार हुए तो नैनी जेल भेजे गए, फिर इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत पर रिहा हुए तो यहां वकालत शुरू कर दी। 60 वर्ष तक वकालत कर चुके मिश्र तीन दफा बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे। एक बार ‘बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश’ के अध्यक्ष रहे। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में सात बार अध्यक्ष तथा चार बार लगातार महासचिव रहे। वह नेशनल लॉ कॉलेज बंगलुरू के छह साल तक फाउंडर चेयरमैन रहे। इसके अलावा चार साल तक नेशनल लीगल एजूकेशन कमेटी के चेयरमैन रहे। वह अखिलेश यादव की सरकार में प्रदेश के महाधिवक्ता भी रहे।
गांवों में खुले लॉ कॉलेज बंद हो
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन वीसी मिश्र ने यह भी कहा कि गांव-गांव खोले गए विधि महाविद्यालयों को बंद करना चाहिए। ये कॉलेज कानून की पढ़ाई नहीं बल्कि केवल डिग्रियां ही दे पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भ्रष्ट तंत्र के चलते ऐसे कॉलेजों को मान्यता मिल गई है, जिससे अच्छे वकील नहीं बल्कि डिग्री वाले अधिवक्ता ही न्यायालय पहुंच रहे हैं।
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