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बिहार : कभी पटना के फुटपाथ पर बेचते थे मूर्तियां, आज हैं करोड़ों के मालिक

गोपाल जी.

एक जमाना था जब मैं तलाशता था रास्ता आसमान तक जाने का, एक आज का दौर है कि सारा आकाश मेरा है…और सचमुच सफलता की ऊंचाइयों पर हैं पटना के अरुण पंडित। एक दौर था जब पटना के फुटपाथ पर छोटी-छोटी मूर्तियां बेचा करते थे। जगह-जगह जाकर सरस्वती, दुर्गा की मूर्तियां बनाया करते थे, लेकिन आज देश के चर्चित कलाकारों के क्लब में शामिल हैं और एक-एक कृतियां 20-25 लाख की बिकती हैं। करोड़ों के मालिक हैं कुर्जी मोड़ के पास एक झोपड़ी में पल कर बड़े होने वाले अरुण पंडित।

गरीबी से गहरा नाता रहा :

अरुण कहते हैं कि गरीबी से गहरा नाता रहा। पिताजी समस्तीपुर के बांदे गांव से आकर कुर्जी में बस गए। कुर्जी मोड़ के पास सरकारी जमीन पर ही एक झोपड़ी बनाकर पूरा परिवार रहने लगा। मेरा जन्म यहीं हुआ। पिताजी मूर्तिकार थे और घर की स्थिति ऐसी थी कि दूसरे के खेतों में जाकर काम करते थे और मां भी मजदूरी करती थी। वो दौर आज भी मुझे याद है। रात के अंधेरे में जब अतीत की यादें आती हैं तो आंखें भर आती हैं। हम चार भाई-बहनों की जिंदगी बस किसी तरह आगे बढ़ रही थी। पिताजी एक दिन सदाकत आश्रम के स्कूल में मेरा नाम लिखवा दिए। मैं पढ़ने लगा, लेकिन मन तो माटी में बसा था। हर पल कुछ गढ़ने की कोशिश में रहता था। बाद में यही माटी मेरी जिंदगी बन गई। गढ़ने का हुनर जीवनभर का साथी बन गया।

तब संघर्ष तेज हो गया

महज 15-16 साल की उम्र में अरुण पंडित ने अपने पिता को खो दिया। ये कहते हैं कि तब मैं पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय में मूर्तिकला का छात्र था। अचानक बड़े भइया को फ्रेंच स्कॉलरशिप मिल गई थी और वो फ्रांस चले गए। ऐसे में घर चलाने की जिम्मेवारी हम दोनों भाइयों पर आ गई। महज 15 साल का बच्चा क्या कर सकता है खुद सोचिए। लेकिन मैं निराश नहीं हुआ। पिताजी का संस्कार हमारे अंदर उत्साह भरता रहा। पिताजी कहते थे कि अपने काम में सौ फीसदी मन लगाओ, सब अच्छा होगा। घर चूल्हा जले और और पेट की भूख मिटे इसके लिए मैं छोटा-छोटा काम शहर में करने लगा। पर्व-त्योहारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाता था, तो फुटपाथ पर बैठ कर मिट्टी का सामान भी बेचता था। लेकिन धीरे-धीरे स्थितियां बदलती गईं।

काम कुछ भी हो, अपना सौ फीसदी दीजिये

अरुण पंडित कहते हैं कि बीएफए के बाद एमएफए करने मैं डीयू आया और धीरे-धीरे जिंदगी बदलती गई। छोटा-छोटा काम मिलता गया और आगे बढ़ता गया। एनडीटीवी का ‘गुस्ताखी माफ’ शो लांच किया। कॉलेज ऑफ आर्ट्स दिल्ली में टीचर बना। फिर इस नौकरी को भी छोड़ दिया। राष्ट्रीय ललित कला अकादमी से जुड़ गया। इस छोटी-सी जिंदगी में मैंने सोनपुर मेले के इंट्रेंस पर गजग्रह व विष्णु की मूर्तियां, कैमूर समाहरणालय में अशोक स्तंभ, छपरा में भिखारी ठाकुर व दल की मूर्ति आदि तो बनाया ही, देश के दूसरे हिस्सों में कई कृतियां मैंने बनाई। एक-एक कृतियां 20-25 लाख की। अभी हाल ही में तिरुपति के एयरपोर्ट पर मैंने कृति बनाई, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने किया। यूनिवर्सिटी लेबल के गोल्ड मेडल से लेकर राष्ट्रीय ललित कला अकादमी सम्मान सहित कई सीएम के हाथों सम्मानित होने का अवसर मिला है, लेकिन मैं अपनी जड़ों को भूला नहीं हूं। अरुण पंडित के जेहन में आज भी पटना की सड़कें और गलियां बसी हुई हैं। युवा साथियों से कहूंगा, काम कुछ भी कीजिए, मगर उसमें अपना सौ फीसदी मन लगा दीजिए।

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