कनिष्क गुप्ता
इलाहाबाद : अदृश्य सरस्वती की धारा समेत जलस्रोतो को खोजने के लिए कौशांबी क्षेत्र मे तीन दिनो से चल रहे सर्वे मे जो डाटा जुटाए गए है। उसमे कही चट्टान की परते, बालू तो कही गीली मिट्टी के संकेत मिले है। जहां चट्टान के ऊपर मिट्टी कम होने के संकेत है, वहां पानी कम होगा। हेलीबॉर्न इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम के जरिए कौशांबी क्षेत्र मे शुक्रवार को भी थ्रीडी सर्वे और डाटा एकत्रीकरण का कार्य हुआ। वैज्ञानिको की टीम ने पहली उड़ान सुबह करीब 8.30 बजे फनगांव वॉटर पार्क से भरी। करीब एक घंटे के सर्वे मे 500 मीटर नीचे तक 131 लाइन किमी. दोआबा क्षेत्र मे डाटा जुटाया गया। शाम को भी करीब चार बजे से एक घंटे तक 124 लाइन किमी. सर्वे कर डाटा एकत्र किया गया।
कही बालू, गीली मिट्टी तो कही पत्थर की चट्टाने मिली। वही, राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआइ) हैदराबाद के प्रधान वैज्ञानिक डा. सुभाष चंद्रा ने गुरुवार को सरायअकिल क्षेत्र मे एकत्रित डाटा के निरंतरता की जांच की। तो वह संतोषजनक पाया गया। चट्टानो की थिकनेस कही कम तो कही ज्यादा मिली। कुछ जगह बालू के बाद पत्थर भी पाया गया। तीसरे दिन तक कुल 380 लाइन किमी. सर्वे हुआ। नतीजे आने मे लगेगे तीन-चार महीने वैज्ञानिको का कहना है कि एकत्रित डाटा को एनजीआरआइ मे स्पेशल कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सिस्टम (सॉफ्टवेयर) के जरिए जांचा-परखा जाएगा। रक्षा मंत्रालय से स्वीकृति मिलने के बाद ही उसे इस्तेमाल किया जा सकेगा।
लेकिन परिणाम आने मे तीन से चार महीने लग जाएंगे। डाटा का परीक्षण करने के बाद जल परत सतहो का सही विश्लेषण होगा तभी ये मालूम चलेगा कि कहां कितना जल भंडारण है और कहां अन्य तरह के खनिज पदार्थ व धाराएं है। 10-12 दिन मे पूरा हो जाएगा सर्वे: केद्रीय भूजल बोर्ड के इलाहाबाद रीजन के विभागाध्यक्ष डा. एमएन खान का कहना है कि इसी तरह से व्यवस्थित सर्वे चलता रहा तो 10-12 दिनो मे संगम क्षेत्र तक ये कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा।
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