मऊ ।। कोपागंज ब्लाक मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर नौसेमर गांव से सटे दक्षिण-पश्चिम बहने वाली पावन सलिला तमसा तट पर स्थित इस पवित्र मंदिर को बरदुअरिया के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस मंदिर के गर्भगृह में बारह दरवाजे हैं। किवदंतियों के अनुसार सन 1718 में पूरा जंगल था। उक्त तमसा जल मार्ग से गाजीपुर जिले के जंगबहादुर जायसवाल नामक व्यापारी उक्त स्थान समीप पहुंचे तो नाव नदी बीच रुक गई। उसे शौच की अनुभूति होने पर वह जगह तलाश रहा था कि उसे शिवलिंग दिखाई पड़ा, खोदाई करते थककर व्यापारी सो गया। स्वप्न में भगवान भोले ने अपनी प्रचंड लीला दिखाई। नींद खुलने पर हाथ जोड़ विनती कर उसे वहीं स्थापित कर दिया और मन्नत मांगी कि व्यापार में लाभ होने पर मंदिर बनाऊंगा। फिर मंदिर का निर्माण करवाया। यहां ऐसी भी मान्यता है कि बहुत पहले एक साधु आए जो सप्ताह में एक बार गाय के शुद्ध दुग्ध के खोआ का सेवन करते थे और तमसा के सतह जल पर श्रीराम नाम जाप खड़ाऊं पहनकर नदी पार कर जाते थे।
शिवमंदिर पहुंचने का मार्ग
जिला मुख्यालय सदर तहसील क्षेत्र अंतर्गत कोपागंज ब्लाक क्षेत्र मुख्यालय से चार किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण बरदुअरिया मंदिर पिच सड़क से होकर आटो रिक्शा या चारपहिया, दो पहिया वाहन से दर्शन को श्रद्धालु जाते हैं।
महाशिवरात्रि पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे शिव मंदिर की साफ-सफाई तेज होती जा रही है। वैसे तो यहां वर्ष भर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है परंतु कार्तिक पूर्णिमा, दशहरा, दुर्गा पूजा, चैत रामनौमी, शिवरात्रि के दिन दूर-दूर से हजारों की संख्या में यहां आकर बाबा आशुतोष को जल चढ़ाते हैं। कहा जाता है कि यहां आकर बाबा को पूरे श्रद्धा के साथ जल चढ़ाने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। महाशिवरात्रि पर्व को लेकर शिवभक्त मंदिर परिसर की साफ-सफाई में लग गए हैं।
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