कनिष्क गुप्ता.
इलाहाबाद : प्रदेश सरकार के फरमान के बाद भी बालू के दाम आशा के अनुरूप नहीं घट रहे। शासन के दबाव में बालू के रेट में आंशिक कमी तो आई है, पर इससे आमजन को ज्यादा रहत मिलते नहीं दिख रही। बीते दो दिनों में थोक व फुटकर बाजार में बालू के रेट पांच सौ से एक हजार के बीच ही कम हुए हैं। यानी अभी निर्धारित दर के आसपास भी नहीं पहुंच पाई है बालू की कीमत। कारोबारियों की मानें तो आने वाले दिनों में इसमें ज्यादा गुंजाइश की उम्मीद भी नहीं है।
बीते साल बालू खनन पर रोक क्या लगी, इसके दाम आसमान छूने लगे। लोगों को ब्लैक में बालू खरीदकर काम चलाना पड़ा। ज्यादातर निर्माण कार्य ठप पड़ गए। महीनों इंतजार के बाद बालू का टेंडर हुआ। खनन शुरू होने के बाद लोगो को उम्मीद बंधी कि अब बालू के रेट फिर पहले जैसे हो जाएंगे, लेकिन उनकी यह मंशा सही साबित नहीं हो सकी। बालू के रेट यथावत बने रहे। जो बालू डेढ़ साल पहले तक दो से ढाई हजार रुपये की सौ फीट मिल रही थी, वही अब पांच से सात हजार तक में मिल रही है। लोगों की इस समस्या को देखते हुए प्रदेश सरकार ने इसी सप्ताह बालू का बाजार रेट निर्धारित कर दिया। आदेश के मुताबिक अब लोगों को सौ फीट बालू के बदले मात्र दो हजार ही देने हैं। सरकार के इस फरमान से लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ी। जिनके मकान अधूरे थे, उन्होंने फिर से काम शुरू करा दिया। हालांकि अभी इसका ज्यादा फायदा लोगों को नहीं मिल रहा है।
जिलाधिकारी ने बालू के दाम पर लगाम लगाने के लिए कई टीमें गठित तो कर दी हैं, पर बाजार में इसका आंशिक असर ही देखने को मिल रहा है। थोक से लेकर फुटकर बाजार तक बालू के दाम में अभी पांच सौ से एक हजार के बीच ही कमी आई है।
हर जगह अलग-अलग रेट
इलाहाबाद : बालू के रेट वैसे तो हर जगह आंशिक रूप से कम हुए हैं, लेकिन इसमें एकरूपता नहीं है। हर जगह अलग-अलग रेट हैं। यमुनापार में बसवार व पालपुर की बालू अच्छी मानी जाती है तो वहां अन्य जगहों की अपेक्षा दाम पांच सौ रुपये अधिक हैं। लालापुर क्षेत्र में मोटी बालू की कीमत अन्य जगहों की अपेक्षा एक हजार रुपये कम हुई है।
बालू की औसत कीमत (सौ फीट के हिसाब से)
वैराइटी दस दिन पहले वर्तमान
मोटी 8000 9000 6000 7000
मझली 6000 7500 5500 5000
महीन 4500 5500 3500 4000
रेत पर ही शुरू हो गया है खनन
इलाहाबाद : बालू के कारोबारियों में छिड़ी जंग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नदी तो नदी, अब रेत पर भी खनन कार्य जोरों पर चल रहा है। यमुनापार के ज्यादातर घाटों पर पांच से सात फिट तक रेत में खनन किया जा चुका है। कंजासा, बीरबल, कैनुआ में रेज में जैसे तालाबों की खोदाई की गई हो। हालात बिगड़ते जा रहे हैं, पर पर्यावरण के साथ की जा रही इस छेड़छाड़ पर किसी की नजर नहीं पड़ रही है। जेसीबी के माध्यम से जिस तरह से सूखी रेत खोदकर बेची जा रही है, आने वाले दिनों के लिए वह शुभ संकेत नहीं है। बाढ़ आने पर नदी की धारा किधर मुड़ जाएगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होगा। जानकारों की मानें तो इस क्षेत्र की सूखी बालू मध्य प्रदेश केसाथ ही फैजाबाद आदि इलाकों में सप्लाई की जाती है। इस रेत का इस्तेमाल ईट बनाने व इंटरलाकिंग पर बिछाने में ज्यादा किया जाता है।
राजेश निषाद, घूरपुर ने हमसे बातचीत में बताया कि प्रदेश सरकार ने बालू के दाम तो निर्धारित कर दिए, पर इसे कड़ाई से लागू करना पड़ेगा। मैं अपना घर बनवा रहा हूं। अभी तक महंगी बालू के कारण रुक रुककर यह काम चल रहा था। अगर बालू सस्ती होती है तो फिर यह काम तेजी से हो सकेगा।
इस सम्बन्ध में विकलचंद्र पटेल, बादलगंज ने बताया कि पिछले एक साल से बालू के दाम आसमान छू रहे हैं। ऐसे में लोगों के सामने बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है। अब प्रदेश सरकार के फरमान के बाद उम्मीद बंधी है। सरकार के इस फैसले से राहत तभी मिलेगी, जब बाजार में बालू का दाम कम होगा।
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