बांदा. सरकार की उपेक्षा से नाराज अपनी मांगों को लेकर लगातार प्रदर्शन और अनशन कर रहे बुंदेलखंड के किसानों के आंदोलन में दिन ब दिन तेजी आती जा रही जा रही है । शासन-प्रशासन के रवैये से नाराज किसानों ने शुक्रवार को बांदा में जल सत्याग्रह की शुरुआत की है । भारी तादाद में महिला और पुरुष किसान जुलूस की शक्ल में नारेबाजी करते हुए केन नदी जा पहुंचे और पानी में खड़े होकर जमकर प्रदर्शन किया और जलसमाधि की कोशिश की। मौके पर मौजूद जिला प्रशासन ने किसी तरह किसानों को समझा-बुझाकर पानी से बाहर निकाला। इस मौके पर जिला प्रशासन ने गोताखोरों समेत सुरक्षा के पुख्ता इंतिज़ाम किये थे।
आपको बता दें कि बुंदेलखंड के बांदा में किसान यूनियन के बैनर तले सैकड़ों किसान पिछले दो हफ्ते से अनशन कर रहे थे लेकिन शासन प्रशासन पर कोई असर नहीं हुआ। अनशन पर बैठे किसानों का कहना था पूर्व में अनशन स्थल पर कहा था कि वो कई दिनों से अपनि समस्याओं व अधिकारों की मांग को लेकर धरने पर बैठे है। पर कोई भी अधिकारी उनकी समस्या सुनने नहीं आया है। इसी से नाराज होकर किसानों ने पूर्व नियोजित घोषणा के अनुसार शहर की केन नदी में प्रदर्शन कर जलसमाधि करने की घोषणा की थी।
इस घोषणा से बांदा प्रशासन ने सख्ती बरखते हुए जिले भर की पुलिस को ड्यूटी पर लगा दिया था कि किसानों के ये आंदोलन बड़ा रूप न पाए। आज किसानों ने प्रदर्शन करते हुए पैदल भ्रमण करते हुए शहर की केन नदी पहुंचे व केन नदी की तरफ कूच कर दिया और नदी में पानी में उतरकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। किसानों के इस प्रदर्शन पर जिला प्रशासन के हाथ पाव फूल गए और आनन फानन में नदी में गोताखोरों समेत भरी सुरक्षाकर्मी तैनात किये गए।
साथ ही प्रशासन ने नदी में उतरे किसानों चारों तरफ नाव व गोताखोरों को तैनात कर किसी अनहोनी को रोकने का प्रयास किया। तकरीबन डेढ़ घंटे तक किसान नदी की जलधारा में खड़े प्रदर्शन करते रहे। डेढ़ घंटे बाद जिला प्रशासन के नुमाइंदों ने किसानों को समझाया बुझाया, तब जाकर किसान नदी से बाहर निकले। केन नदी में प्रदर्शन के दौरान किसानों ने अपनी मांगों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी बिजली दर माफ की जाए, 5 हेक्टेयर तक भूमि वाले किसानो को लघु सीमान्त श्रेणी में रखे जाए।
बुंदेलखंड के सभी किसानों का कर्ज माफ हो और अन्ना जानवरों को रखने की व्यवस्था की जाए। वहीं इस मामले में बांदा एडीएम गंगाराम गुप्ता का कहना है कि किसानों की समस्याएं शासन स्तर की हैं जिसमें जिला स्तर से कुछ नहीं किया जा सकता।
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