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2018 की खट्टी मीठी यादे – पहली बार सुप्रीम कोर्ट के जज प्रेस कांफ्रेंस करने को मजबूर हुए तो सीबीआई ने लगाया सीबीआई पर आरोप

जावेद अंसारी की ख़ास रिपोर्ट,

संवैधानिक और सरकारी संस्थाओं के लिहाज से वर्ष 2018 काफी चुनौती भरा रहा. देश की सर्वोच्च अदालत के जजों की तरफ से कुछ सवाल उछाले गए तो विपक्ष ने भी मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने की पहल की. पहली दफा सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था की भूमिका पर खुलेआम सवाल उछाले गए. खुद चार जजों को प्रेस कांफ्रेंस करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके अलावा देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई में इस साल दो शीर्ष अफसरों के बीच ऐसा घमासान मचा कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. पहली बार किसी सीबीआई चीफ को छुट्टी पर भेजा गया. वर्ष 2018 आरबीआई के लिए भी उथल-पुथल भरा रहा. केंद्र सरकार से मतभेद के बाद गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया. पूरे साल चुनाव आयोग की भूमिका पर भी विपक्ष सवाल उठाते रहे. आइए खट्टी मीठी यादे 2018 की इस कड़ी में जानते हैं कि देश की संवैधानिक संस्थाओं के लिए कैसा रहा वर्ष 2018 ?

सुप्रीम कोर्ट के जजों की ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस
वर्ष 2018 की शुरुआत में ही बड़ा सियासी भूचाल आया, जब 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज बाहर आते हैं और प्रेस के सामने कहते हैं कि ‘इस देश में बहुत से बुद्धिमान लोग हैं जो विवेकपूर्ण बातें करते रहते हैं. हम नहीं चाहते कि ये बुद्धिमान लोग 20 साल बाद ये कहें कि जस्टिस चेलामेश्वर, गोगोई, लोकुर और कुरियन जोसेफ ने अपनी आत्मा बेच दी और संविधान के हिसाब से सही कदम नहीं उठाया.’ सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर खुलेआम स्वीकार किया कि देश की शीर्ष अदालत में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. रोस्टर का समुचित पालन नहीं किया जा रहा. केसों के आवंटन में भी पारदर्शिता नहीं है. बाद में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद जस्टिस कुरियन जोसफ ने 12 जनवरी को किए गए ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर शुक्रवार को एक कार्यक्रम में बेबाक राय रखी. सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्ति के एक दिन बाद रिटायर जस्टिस कुरियन जोसेफ (Kurian Joseph) ने कहा था कि उन्हें कोई पछतावा नहीं है जिसमें उन्होंने तथा तीन अन्य न्यायाधीशों ने शीर्ष अदालत के कामकाज को लेकर विभिन्न मुद्दे उठाए थे. हालांकि, कुरियन जोसेफ ने कहा कि अब चीजें बदल रही हैं.

सीबीआई में घमासान

देश के बड़े-बड़े मामलों की जांच कर झूठ का पर्दाफाश करने वाली देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई (CBI) खुद वर्ष 2018 में जांच के घेरे में आ गई.यह सब हुआ सीबीआई में नंबर 1 और नंबर 2 की कुर्सी पर बैठे अफसरों के बीच लड़ाई के चलते.व्यवसाई सतीश साना से कथित तौर पर तीन करोड़ की घूस लेने के मामले में सीबीआई ने नंबर दो अफसर यानी स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ केस दर्ज किया. जिस पर पलटवार करते हुए राकेश अस्थाना ने सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा पर भी  घूस लेने का आरोप लगा दिया. सीबीआई ने पहले तो अपने ही दफ्तर में छापा मारा और फिर बाद में एक अधिकारी को गिरफ्तार किया. छापेमारी के बाद सीबीआई ने कुरैशी मामले की जांच कर रहे डीएसपी को गिरफ्तार किया. बाद में कोर्ट ने घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किये गए एजेंसी के डीएसपी देवेंद्र सिंह को सात दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया. दरअसल, इस मामले में राकेश अस्थाना पर घूस लेने के बाद तकरार तब शुरू हुआ, जब राकेश अस्थाना ने सीबीआई के चीफ आलोक वर्मा पर भी घूस लेने का आरोप लगाया. सीबीआई ने अपने ही स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना पर केस दर्ज किया. अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने मांस कारोबारी मोइन कुरैशी से सतीश साना के जरिए 3 करोड़ रुपये की रिश्वत ली थी.

जब घमासान पूरे शबाब पर पहुंचा तो केंद्र ने दखल देते हुए दोनों शीर्ष अफसरों को जहां छुट्टी पर भेज दिया, वहीं केस में शामिल करीब एक दर्जन अफसरों के इधर-उधर ट्रांसफर कर दिए. जबकि नागेश्वर राव को अंतरिम डायरेक्टर नियुक्त किया गया. जब सरकार के दखल देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो केंद्र सरकार ने सफाई दी.  सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि उसने शीर्ष सीबीआई अधिकारियों डायरेक्टर ( निदेशक) आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के बीच इसलिए दखल दिया कि वे बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे. केंद्र ने प्रमुख जांच एजेंसी की विश्वसनीयता और अखंडता को बहाल करने के लिए हस्तक्षेप किया. महाधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायाधीश संजय किशन कौल और न्यायाधीश के. एम. जोसेफ की पीठ से कहा, “सरकार आश्चर्यचकित थी कि दो शीर्ष अधिकारी क्या कर रहे हैं. वे बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे.”

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