अनिल कुमार
पटना: इसको मौके की राजनीती कहे या फिर शायद वक्त की करवट कहे मगर कही न कही से भाजपा लोकसभा चुनावों में अपनी स्थिति को समझते हुवे अपने घटक दलों को नाराज़ नही करना चाहती होगी तभी तो भाजपा ने नितीश बाबु की सभी शर्ते पूरी करते हुवे गटबंधन धर्म का निर्वहन किया है। बिहार की 40 लोकसभा सीटों पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन में तालमेल हो गया है।
निश्चित रूप से इस बात में संदेह नहीं कि इसमें सबसे ज़्यादा फ़ायदा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड और रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को रहा है। इन दोनों को साथ रखने के लिए भाजपा ने सीटों और सांसदों दोनो की गठबंधन धर्म निभाने के लिए क़ुर्बानी दी। सबसे ज़्यादा फ़ायदे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिखते हैं जिनकी पार्टी जेडीयू लोकसभा चुनाव में मात्र दो सीटें जीती थीं लेकिन इस बार बाद सत्रह सीटों पर चुनाव लड़ेगी। आज से ढाई महीने पहले तक किसी को उम्मीद भी नहीं थी कि बीजेपी नीतीश कुमार को बराबर के फ़ॉर्मूले पर 17 सीटें देने पर राज़ी हो जाएगी। लेकिन आप इसे नीतीश की राजनीतिक हैसियत कहें या वर्तमान परिस्थिति में भाजपा को उस ज़मीनी हक़ीक़त का अहसास। भाजपा ने नीतीश की सिर्फ इसी इच्छा को नहीं माना, बल्कि पहले जीतन राम माँझी को और बाद में उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया।
कुशवाहा को लेकर बीजेपी में दो राय थी। लेकिन 2019 के चुनाव में नीतीश कुमार को खुश रखना बीजेपी की बड़ी प्राथमिकता थी है। नीतीश ने बराबरी-बराबरी का समझौता भी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से दो महीने पहले ही करा लिया था क्योंकि उन्हें मालूम था कि तीन राज्यों के विधानसभा के चुनाव का परिणाम अनुकूल आने पर बीजेपी का रुख और भी बदल सकता है। लेकिन इन चुनावी नतीजों का फायदा लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने भी खूब उठाया। सीट समझौते बीजेपी के गोलमोल रवैये पर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने सार्वजनिक ट्वीट और बयानबाजी शुरू कर दी। एक बयान में उन्होंने नोटबंदी पर भी सीधे पीएम मोदी से सवाल कर लिया।
इन सबसे बीजेपी निश्चित रूप से दबाव में आ गई क्योंकि उन्हें इस बात का अंदाज़ था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी चाहते हैं कि राज्यसभा का आश्वासन पूरा किया जाए। बीजेपी इस बात से भी डरी थी कि अगर पासवान रूठ गये तो महागठबंधन का दरवाज़ा उनके लिए खुला है जो बीजेपी के लिए बहुत ही नुकसानदायक साबित हो सकता है।
वहीं बीजेपी नेताओं का कहना है 1996 के बाद पहली बार बिहार की राजनीति में बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेगी। साल 2014 को छोड़ दें तो जनता दल यूनाइटेड और उसके पहले समता पार्टी बीजेपी से हमेशा कई अधिक सीटों पर चुनाव लड़ते रही है। बिहार में अपने सहयोगियों के लिए बीजेपी ने जैसा ‘बलिदान’ दिया है उसका एक संदेश गया है कि हम अपने सहयोगियों को कितना तवज्जो देते हैं। जहां तक पासवान को राज्यसभा सीट देने का सवाल है तो निश्चित रूप से इसका एक सकारात्मक असर दलित वोटरों पर होगा।
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