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राफेल मुद्दा- नहीं कम हो रही सरकार की मुश्किलें, यशवन्त सिन्हा ने दाखिल किया पुनर्विचार याचिका, खुली अदालत में किया सुनवाई की मांग

अनीला आज़मी

नई दिल्ली:  राफेल पर सरकार को राहत मिलती नही दिखाई दे रही है। एक बार फिर इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया गया है। इस बार पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, प्रशांत भूषण ने राफेल मामले में दिए गए फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। याचिका में 14 दिसंबर के  राफेल के फैसले को वापस लेने और याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि फैसले में कई त्रुटियां हैं। यह फैसला सरकार द्वारा अदालत को एक सीलबंद कवर में दिए गए एक अहस्ताक्षरित नोट में किए गए गलत दावों पर आधारित है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है। साथ ही याचिका में यह भी कहा गया है कि मामले में फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद कई नए तथ्य प्रकाश में आए हैं, जिनके आधार पर मामले की जड़ तक जाने की जरूरत है। बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में राफेल मुद्दे पर कांग्रेस पर पलटवार किया था। उन्होंने कहा था कि यह आरोप सरकार पर हैं, मेरे ऊपर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए गए हैं।  संसद में मैंने विस्तार से इसका जवाब दिया है।

उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट तक मसला क्लियर हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सभी चीजें सामने निकालकर रख दी है। दूध का दूध और पानी का पानी हो चुका है। कांग्रेस जो आरोप लगा रही है, उसे साबित करें। उन्हें बार-बार बोलने की बीमारी है, तो मुझे बार-बार बोलने की जरूरत है क्या? साथ ही पीएम मोदी ने कहा कि आजादी के बाद से हमेशा डिफेंस डील विवादित क्यों रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने राफेल डील की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग वाली चार याचिकाओं पर फैसला सुनाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को लेकर सभी याचिकाएं खारिज कर दी थी और कहा था कि इस सौदे को लेकर कोई शक नहीं है और कोर्ट को इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। साथ ही कहा था कि सरकार की बुद्धिमता पर जजमेंट लेकर नहीं बैठे हैं। फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं भूषण ने कहा था कि कोर्ट में कीमतों पर सीलबंद रिपोर्ट दे दी जिसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं दी गई। वहीं कोर्ट ने ऑफसेट पार्टनर चुनने के मामले में भी गलत नहीं माना है। कोर्ट का कहना था कि दसॉल्ट ने ऑफसेट पार्टनर चुनना है। प्रशांत ने तर्क दिया कि रक्षा सौदे में बिना सरकार की सहमति के कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है।

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