तारिक आज़मी
मऊ। पुलिस अपने कार्यशैली के लिए अक्सर ही चर्चा में रहती है। ख़ास तौर पर अगर मऊ जनपद पर नज़र डाले तो सबसे अधिक चर्चा में रहने वाला थाना मधुबन ही है। जिला मुख्यालय से काफी दूरी पर बैठे थानेदार साहब को वह दरबार लगाने वाले पत्रकारों का समर्थन क्या मिल जाता है। साहब नियमो को उठा कर ताख पर धरने में ज़रा सा भी संकोच नही करते है। करेगे भी क्यों ? चंद कलमो को लेकर बैठे लोग उनकी जी हुजूरी करते है और बकिया कप्तान साहब काफी दूरी पर बैठे है वहा से आने पर उनको काफी समय लग जायेगा। तो जो जी करे करते रहो कौन बोलने वाला है। बोल कर कोई कर भी क्या लेगा। वर्दी का रौब एक बार दिखा दिया तो फिर हिम्मत है दुबारा बोले। कोई ज्यादा बोले तो प्यार से बुला कर एक पुरवा चाय कलवा की पिला देंगे। फिर विरोधी भी समर्थक हो जायेगे। मगर थानेदार साहब शायद भूल रहे है कि सबकी कलम में उनकी चाय स्याही की तरह नही भरी है। आज भी कलम के नीचे सच लिखने वाले जिंदा है। उनको उनकी चाय से मतलब नही सिर्फ अपने काम से मतलब है।
तस्वीर गवाह है साहब कि दरोगा जी खड़े तो पास में ही है मगर उन्होंने लाश को हाथ तक नही लगाया। अब शायद मधुबन थाना प्रभारी ही बता सकते है कि लाश को प्रीपोस्टमार्टम सील करने का नियम उनके यहाँ क्या लागू होता है। क्योकि नियमो को अगर ध्यान दिया होता तो इस तरीके से एक प्राइवेट मजदूर किस्म के इन्सान से लाश को सील नही करवाया गया होता। शायद थाना प्रभारी को और दरोगा जी को नियमो की चिंता नही रही होगी तभी तो खुल्लम खुल्ला ऐसे नियम की धज्जिया उड़ा दिया गया। मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियो के अनुसार कोई महिला कर्मी मौके पर मौजूद नही थी। न ही किसी महिला से इस कार्य हेतु सहायता लिया गया।
जो भी हो थानेदार साहब, मगर ऐसे संवेदनहीन होना शायद सही नही है। ये आम जनता जो है न हमेशा खामोश नही रहती है। जब ये बोलती है तो काफी बोल जाती है। आपको तो आभास होगा ही अभी एक हफ्ता भी तो नही गुज़रा है आप जनता का घंटो तक प्रकोप देख चुके है। मामला वो कितना मामूली था मगर मामले में कितनी बड़ी बेलौली चौकी और आपके थाने की गलती थी। एक मजदूर की मौत के बाद आरोपी ट्रैक्टर का नंबर गलत लिखना कितना भारी पड़ा था। जनता बेलौली चौकी के सामने शव रखकर जाम लगा बैठी थी और आप खुद मान मनव्वल कर रहे थे उस जनता है। कही किसी ऐसे मौके पर जनता भड़की तो साहब मौके पर उच्चाधिकारियों को आना पड़ेगा। फिर जवाब क्या होगा उस वक्त ? बेलौली चौकी वाले प्रकरण में तो कोई उच्चाधिकारियों के आने का समाचार नही मिला था। आपने अपनी रिपोर्ट अगर दिया होगा तो लिख दिया होगा लिपिकीय त्रुटीवश ऐसा हो गया। जबकि हकीकी ज़मीन पर सच आप भी समझ रहे है और मैं भी इतना समझदार हु। मानता हु और कहता भी हु कि थानेदार साहब आपका कोई दोष नही है, मगर साहब आपके अधीनस्थ ? उनका क्या ? क्या उनकी जवाबदेही तय होगी या फिर मामला ऐसे ही चलता रहेगा।
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