तारिक आज़मी
सियासत के लिए इंसान को क्या कुछ नही करना पड़ता है। शायद घर में बिना ओवी के कभी पानी की एक बूंद न पी सकने वाला इंसान किसी चौपाल के नुक्कड़ पर खड़ा होकर हैण्डपम्प का पानी पी रहा हो। इसको देख कर आप एकदम हैरान न हो साहब, क्योकि ये सियासत की रवादारी है। अब देखिये न आज से नवरात्री शुरू है और उसके कुछ ही दिनों के बाद पवित्र रमजान के रोज़े शुरू हो जायेगे। इसमे आपको वो लोग व्रती के व्रत का परायण करते भी दिखाई दे जायेगे जो कभी एक व्रत न रखे हो। रोजो में अफ्तार के दस्तरख्वान पर ऐसे लोग टोपी लगाए भी दिखाई देने लगेगे जिन्होंने कभी रोज़े रखे ही न हो या फिर उनको रोजो का मायने भी ढंग से न पता हो।
इसको ही सियासी रवादारी कहते है साहब। एक शिष्टाचार तो होना ही चाहिये। जो साहिब-ए-मसनद है वो अपनी गद्दी बचाने के लिए और जो साहिबे मसनद नही है वह खुद पाने के लिए ये सभी रवादारी करते हुवे आपको हर शहर में दिखाई दे जायेगे। शायद ऐसे ही माहोल को देख कर हमारे वक्त के अज़ीम हिंदी – उर्दू के शायर राहत इन्दौरी ने शेर अर्ज़ किया है कि सियासत में ज़रूरी है रवादारी समझता है, वह रोज़ा तो नही रखता मगर अफ्तारी समझता है। अब इसको सियासी रवादारी कहे या फिर सियासी दावपेंच कहे कि कभी शायद पत्तो पर खाना न खाने वाले सियासी शक्सियत संबित पात्रा अपने लोकसभा क्षेत्र में जाकर गरीब के घर खाना खाते है। यही नही मौके का विडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल करते है। भले ही उनको उस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर काफी कुछ सुनना पड़ गया। मगर इसको सियासी दावपेंच के अलावा क्या कह सकते है आप ?
आज कल इस मामले में सुर्खिया बटोर रही है ड्रीम गर्ल अदाकारा से सियासत में आकर सांसद बनी हेमा मालिनी। उनकी तस्वीरे तो वाकई कमाल की आ रही है। आपने कभी हज़ारो का चश्मा लगा कर, बेहतरीन सिल्क साडी पहनकर हेलीकाफ्टर से जाकर खेतो में काम करने वाली किसी महिला को देखा है क्या ? नही देखा है तो तस्वीरे सोशल मीडिया पर उपलब्ध है आप हेमा मालिनी को देख ले। मथुरा में किसानो को अपने पक्ष में करने की कवायद में हेमा मालिनी खेतो में जाकर बालिया काट रही है। यही नही ट्रैक्टर भी चलाते हुवे तस्वीर उनकी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। अब आप बताये इसको सियासी दावपेंच नही तो और क्या कहेगे।
आरओ के विज्ञापन में आरओ पानी का प्रचार करते हुवे, महँगी गाडियों से चलने वाली अभिनेत्री जो शूटिंग में भी अगर बैठना होता है तो उनके सर पर छाता लगा कर एक स्पॉट बॉय खड़ा रहता है। वह तपिश भरी गर्मी में जाकर खेतो में फसल काट रही है। यही नही हेमा मालिनी ने ट्रैक्टर चला कर भी किसानो के दुःख दर्द बाटने की कोशिश किया। ट्रैक्टर पर उनका फोटो वायरल होने पर उनकी खुद की पुत्री ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि बसंती टांगा छोड़ ट्रैक्टर तक पहुची। भले ही ये तस्वीरे किसी के आँखों को सुहाती हो। मगर लोगो के आँखों में जलन पैदा करने वाली भी हो सकती है। पांच साल पहले जब सरकार बनी तो सबका साथ, सबका विकास का सरकार ने नारा दिया था। अगर किसानो का वास्तव में विकास हुआ होता हो आज किसान वोटो को अपने पाले में खड़ा करने के लिए न तो हेलीकाफ्टर से जाकर माँगा चश्मा और साडी पहनकर हाथो में हसिया लेकर फसल न काटना पड़ता। यही नही ट्रैक्टर चलाने का रिस्क भी नही उठाना पड़ता।
वैसे देखना होगा कि मथुरा में अपनी कुर्सी की जद्दोजेहद के बीच हेमा मालिनी की मेहनत क्या उनकी कुर्सी बचा पाएगी। सरकार से नाराज़ किसानो ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी नाराज़गी दिखाई है। अब देखना होगा कि वो नाराज़गी उत्तर प्रदेश के मथुरा में महंगा चश्मा लगाकर, हेलीकाफ्टर से जाकर फसल काटने और ट्रैक्टर चलाने से दूर होती है या फिर किसान अभी भी नाराज़ रहते है।