चुनावी सर्वेक्षण वाराणसी – क्रांति फाउंडेशन का प्रयास अगर हुआ है सफल तो ये 27वा प्रत्याशी कर रहा है भाजपा को काफी परेशान

तारिक आज़मी

वाराणसी लोकसभा सीट पर भाजपा को जहा कांग्रेस और गठबंधन से मिल रही चुनौतियों से दो चार होना पड़ रहा है वही एक और चुनौती भी सामने है। यह वह प्रत्याशी है जिसकी शक्ल तो आज तक किसी ने नही देखा है मगर साल 2013 से लेकर 2017 तक 1 करोड़ 37 लाख बार देश के जनता ने इसको अपना प्रत्याशी माना है। इसका नाम है नोटा। देश में मात्र चार साल में नोटा अपनी पकड़ बना चूका है। और लोगो ने इसको वोट दिया है।  सिर्फ अकेले 2014 के लोकसभा चुनाव में तकरीबन 60 लाख लोगों ने नोटा का बटन दबाया था। मध्य प्रदेश, राजस्थान के विधानसभा चुनाव में तो नोटा ने कई सीट पर बीजेपी के गणित को ही बिगाड़ दिया था।

अब बनारस में नोटा को लेकर हुवे प्रचार से बीजेपी बेहद संजीदा है, क्योंकि पीएम के संसदीय क्षेत्र में नोटा की संख्या अगर बढ़ी है तो भाजपा की बड़ी किरकिरी हो सकती है। बनारस शहर में इस बटन के इस्तेमाल के लिए सबसे पहले इस लोकसभा चुनाव 2019 में मुहीम चालु किया था क्रांति फाउन्डेशन के इंजिनियर राहुल सिंह ने। राहुल सिंह ने चुनावों के लगभग तीन माह पहले से ही नोटा पर वोट देने के लिए प्रचार प्रसार करते आये है। बताते चले कि क्रांति फाउन्डेशन वाराणसी जिले में सामाजिक कार्यो हेतु काफी मशहूर संस्था है। इस संस्था के द्वारा नोटा का प्रचार काफी मायने रखता है। इंजिनियर राहुल सिंह ने तो यहाँ तक कहा कि बनारस में लोगों के आम मुद्दे को लेकर संघर्ष करने वाले क्रांति फाउंडेशन के राहुल सिंह कहते हैं, ‘बीते पांच सालों में बनारस के अंदर की हालात और भी खराब हुई है।  लोग गलियों में सीवर, सड़क और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। नाउम्मीदी में गुजरे पांच साल का हिसाब अब ये लोग नोटा का बटन दबा कर अपना विरोध जाता कर पूरा किये है।

वही दूसरी तरफ बनारस में शहर दक्षिणी का पक्का मोहाल भाजपा का कोर वोट हुआ करता था। ये काफी घनी आबादी वाला मोहल्ला है। उसमें भी लाहौरी टोला तो बीजेपी का बड़ा गढ़ माना जाता रहा है। इसी लाहौरी टोला में पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट विश्वनाथ कॉरिडोर आया जिसके ज़द में यहां के 279 मकान आए, जिसे सरकार ने तोड़ दिया। इससे प्रभावित लोगों ने अपने घरों को बचाने के लिए हर जगह गुहार लगाई,  लड़ाई लड़ी, लेकिन सरकार से हार गये। इस हार के बाद अब चुनाव में वो पीएम मोदी को सबक सिखाने के लिये नोटा को अपना प्रत्याशी मान प्रचार में जुट गए हैं, और दवा किया जा रहा है कि नोटा का उपयोग हुआ है।

ये लोग सिर्फ अपने ही इलाके में नहीं बल्कि उन इलाकों में भी गए थे, जहां इस तरह का समान दर्द मिला है। इनमें एक माझी समाज भी है। क्योंकि माझी समाज भी इन पांच सालों में अपने रोज़ी रोटी को लेकर बराबर संघर्ष करता रहा है। कभी गंगा में क्रूज को लेकर तो कभी गंगा में जेटी लगाने के मुद्दे को लेकर। उनकी इस नाराज़गी को अपने तरफ करने के लिए भी नोटा के समर्थक लोग उनसे संपर्क में रहे थे।

यही नही सरकारी नौकरी छोड़ कर समाज सेवा का रास्ता अपनाने वाले अजय सिंह ने भी आज वाराणसी में चुनावी हेतु नोटा का प्रचार प्रसार किया। बताते चले कि अजय सिंह पहले सरकारी नौकरी करते थे। इसके बाद विगत कई वर्षो से वह नौकरी छोड़ कर समाजसेवा करने में लगे है। इस प्रकार अगर नोटा का प्रयोग हुआ तो सभी अंक गणित फेल होते दिखेगे।

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