संजल प्रसाद (वरिष्ठ पत्रकार)
वाराणसी। लोकसभा चुनाव बीतते ही एक दूसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का दौर ज़ोर शोर से शुरू हो गया है। एक दूसरे से खुद को आगे बढ़ चढ़कर बताने की होड़ सी मची हुई है। यही कारण है कि जब कोई अपनी पार्टी या अपने राजनेता की बड़ाई करता है तो दूसरे दल के नेताओं को फूटी आंख नहीं सुहाता है। ऐसा ही कुछ नजारा विगत दिनों जिला मुख्यालय पर दिखा। यहां मतदान प्रक्रिया को पूरी कराकर लौटे एक चर्चित भाजपा नेता ने अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच अपने प्रत्याशी का गुणगान कर रहे थे कि उसी दौरान कांग्रेस पार्टी का ज़मीनी, निःशुल्क प्रचारक गुलाब सोनकर भी अवतरित हो गए।
पहले तो गुलाब ने भाजपा नेता की बात को कुछ देर भुकुटी चढ़ा चढ़ाकर सुने और जब बात बर्दाश्त के बाहर होने लगी तो वह भाजपा नेताओं के सामने ही चबूतरे पर चढ़े और कांग्रेसी झंडा लहराकर पहले लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और आदतन गला फाड़-फाड़कर सोनिया गांधी जिंदाबाद, राहुल गांधी जिंदाबाद, प्रियंका गांधी जिंदाबाद, इंदिरा गांधी अमर रहे, राजीव गांधी अमर रहे, अजय राय जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। यहां तक तो ठीक था इसके बाद जो गुलाब ने बात कही यही बात भाजपा नेता और उनके पिछलग्गुओं को नागवार गुजरी और उसने गुलाब को धमकी भरे अंदाज में चुप कराने के लिए आवाज लगा दिए, अमूमन जैसा कि काशीवासी सब जानते हैं कि गुलाब को कोई जिला मुख्यालय पर चुप कराए, औऱ वह आसानी से चुप हो जाये , ऐसा तो हो नहीं सकता है , और वह भी तब, जब गुलाब के बिन बुलाये श्रोताओं की भीड़ उमड़ी हो और गुलाब अपने पूरे मूड में अपने पार्टी का बखान कर रहे होते हैं ।
ऐसे में कोई भी टीका- टिप्पणी, रोक-टोक तो उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं होता है…फिर चाहे वह सामान्य आदमी हो, मीडियाकर्मी हो, खाकीधारी हो, खादीधारी हो या सरकारी नुमाइंदा वह किसी को भी नहीं छोड़ते हैं। इतिहास गवाह है कि जो भी गुलाब को छेड़ता हैं उसे उसके सवाल का मुक्कमल मुंह तोड़ जवाब वह जरूर देते हैं। उनके जवाब देने का अंदाज भी काबिले तारीफ होता है किसी को प्यार से, किसी को दुलार से, किसी को लताड़ से तो किसी को दुत्कार के जवाब जरूर देते हैं। अपने श्रोताओं को भी वह अपनी पारखी नजर से पहचान लेता है, और यही कारण है कि किसी को हिंदी में, किसी को भोजपुरी में, किसी को अंग्रेजी में तो किसी को बंगाली भाषा में भी समझाने का पूरा प्रयास करता है। गुलाब भड़क तब जाता है जब कांग्रेस पार्टी की कोई बुराई उसके सामने कर देता है। वैसे तो अमूमन व हंसकर टाल देता है और सवाल करने वालों को उसी की अंदाज में उसका जवाब देकर उसे खामोश भी कर देता है, लेकिन जब बात हद से ज्यादा बिगड़ने लगती है तो शेरो-शायरी, गीत, चौपाई, चुटकलों के माध्यम से भी वह श्रोता को संतुष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है। वह अपने श्रोता को हंसा कर, बहलाकर, फुसलाकर, समझाकर अपनी बात मनवाने के लिए मजबूर कर देता है, यह अलग बात है कि उसकी बात को लोग अक्सर हंसी मजाक में ही लेते हैं, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि जितनी जानकारी उसे कांग्रेस पार्टी के विषय में है उतनी जानकारी शायद अच्छे-अच्छे कांग्रेसी नेताओं के पास भी ना हो।
मुख्यालय पर गुलाब सोनकर ने भाजपा नेता को जमकर लताड़ा और भला बुरा कहते हुए उनके पार्टी और उनके राजनेता की बखिया उधेड़ के रख दिया। यह देखकर वहां मौजूद तमाशबीन हंसने लगे और फिर भाजपा नेता को वहां से दांत निपोर कर हटना ही पड़ा। कारण भी था मौका-ए-दस्तूर भी था कि जिला मुख्यालय पर अगर किसी नेता का कब्जा होता है तो वह है गुलाब सोनकर का। बताते चलें कि गुलाब सोनकर जब जिला मुख्यालय के बूढ़े “पाकड़” पेड़ के पास चबूतरे पर बिना चप्पल, जूता पहने नंगे पांव खड़े होकर अपने पार्टी की अच्छाइयों को और दूसरे पार्टी की बुराइयों की कलई खुलना शुरू करते हैं तो जितना एक छोटी जनसभा में किसी बड़े नेता के लिए भीड़ सुनने के लिये होती है उतना गुलाब सोनकर को सुनने के लिए भीड़ तो उन्हें चबूतरे पर खड़े होते ही हो जाती है। यह भीड़ जैसे जैसे बढ़ती है उसे देख गुलाब का सीना भी चौड़ा होता चला जाता है।
गुलाब वह तब तक नहीं रुकते, नहीं थकते, जब तक कि उनका खुद का मन, मिजाज भर न जाए। गुलाब की तार्किक और अतार्किक बातें सुनकर लोग मजा भले ही लेते हो लेकिन उनकी ज्ञानवर्धक और रसीली बातों में कुछ ऐसे रहस्यमई सवाल-जवाब भी होते हैं जिसका ना तो प्रश्न किसी श्रोता के पास होता है ना ही कोई उत्तर होता है। बताते चलें कि यह वही कांग्रेस पार्टी के लिए त्यागी पुरुष गुलाब सोनकर है जो पिछले कई दशक से “शपथ” लिए हैं कि जब तक सोनिया गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री पद पर आसीन नहीं होता है तब तक वह न तो दाढ़ी- बाल- मुंछ कटाएँगे, और ना ही पैर में चप्पल या जूते पहनेंगे। यह कांग्रेस पार्टी के प्रति गुलाब का सच्चा प्रेम और सच्ची श्रद्धा ही है कि वह ठंडी,गर्मी,बरसात कोई भी मौसम हो, कोई भी उबड़-खाबड़, कच्चा-पक्का, पथरीला रास्ता हो गुलाब अपने पैर में जूता और चप्पल नहीं पहनते हैं। हाथ में कांग्रेसी झंडा, पैर बिल्कुल नंगा, धोती-कुर्ता पर सदरी और कांधे पर झोला यही है गुलाब का असली बारहों मासी चोला।
लेखक संजल प्रसाद वाराणसी जनपद के वरिष्ठ पत्रकार है. कई बड़े मीडिया हाउस को अपनी सेवा देने के उपरान्त अब संजल प्रसाद एक फ्रीलांसर के तौर पर काम कर रहे है.
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