प्रदीप दुबे विक्की
ज्ञानपुर,भदोही। लोकसभा का चुनावी माहौल महाभारत 19 मई को सातवें चरण के रूप में समाप्त हो गया। वोट भी खूब पड़े, रिकॉर्ड टूटे। अब 23 मई को मतगणना है। चुनाव को अपने यहां कोई लोकतंत्र का महापर्व कहता है, तो कोई लोकतंत्र का मेला। बहुत दिनों के बाद इस बार मतदान के दिन मतदाताओं का मेला दिखा। खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में, मतदाताओं का मेला लगा। लेकिन इन सब के बीच एक चीज नदारत थी। वह है गीत-गवनई । गांव-गिरांव में महिलाओं द्वारा गाए गए गीत उस वक्त के हालात को बयां कर देते थे। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में एक गाना खूब गाया गया। “रोवें कांग्रेसियन के माई, बलम कइसे खइहें मलाई “। एक और नारा “वाह रे इंदिरा तेरी शान,तीन पाव का सड़ा पिसान”। यहां का संसदीय क्षेत्र भदोही है। भदोही जिसे कालीन की खूबसूरत नगरी कहा जाता है। चाहे लोकसभा हो या विधानसभापहले अधिकतर कांग्रेसी उम्मीदवार जीतता था। और अब हालात बदल गए हैं । वामपंथ खो गया, जातिपंथ का बोलबाला है।
बात गवईं के गीतों की हो रही है। इमरजेंसी के पहले होने वाले मतदान के दिन झुंड की झुंड महिलाएं गाना गाते हुए मतदान स्थल तक जाती थी…..कि बतावा प्रधान मोहर केकरा के मारी”, यह गाना बता रहा है कि उस समय प्रधान की दबंगई किस हद तक थी। वह जिसे कहता था उस पार्टी को ही लोग वोट डालते थे। उस वक्त भदोही-मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र कहा जाता था। जहां कांग्रेस के चुनाव अजीज इमाम लड़ते थे। उनका चुनाव निशान दो बैलों की जोड़ी थी। उनका बिल्ला जिस दिन मिला, बच्चे कमीज पर टांग कर जब स्कूल गए तो देखते ही अध्यापक ने दो-चार छड़ी पीटकर कहा कि स्कूल में चुनाव प्रचार ना कईल जाला। खैर उस समय जनसंघ विरोध के रूप में चुनाव लड़ती थी जिस का निशान दीपक था दीपक निशान के लिए भी लोग गाते थे कि ” जिस दिए में तेल नहीं, सरकार चलाना खेल नही ” लोग इमरजेंसी से पीड़ित थे। इमरजेंसी के बाद में चुनाव में लोगों की पीड़ा और खुशी गीतों के माध्यम से झलकी। ” रोवैं कांग्रेसियन क माई, बलम कइसे खइहें मलाई” । एक गीत और था जो चर्चित रहा…कि केकराके थाना, केकरा के चउकी, केकरा के होई जेहलखाना…. बाबू जुी क्षमा करा…..चोरवन के थाना….चुगलहवंन के चउकी,बदमाशन क बनल जेहलखाना,बाबूजी क्षमा कर….. एक गीत और था जिसे हम अपनी माई और पास पड़ोस की 6 अथवा 7 औरतों को वोट डालते जाते वक्त सुनते थे।बड़ा दुख दिहलेस कांग्रेस हमारे गांधी क……..
वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी बिखर गई। 1980 में चुनाव हुए। इस दौर में गाए जाने वाले दो गाने आज भी जेहन में याद हैं। पहला “आयल कांग्रेसी जमाना, बलम होशियारी से जाना”। दूसरा बचाय चला हो कांग्रेसी जमाना। 1984 के बाद से गांव में गीत गाते हुए जाकर वोट देने की रवायत कम होने लगी। मंडल और कमंडल ने सब कुछ बदल दिया। अब तो लोग अकेले-अकेले जाकर वोट देकर चले आते हैं।
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