आज भी विसंगतियों के प्रति जागरूक कर रहे हैं आधुनिक ’नारद’ पत्रकार- इंदु अवस्थी
रिपोर्ट : रॉबिन कपूर / दीपक सिंह
नारद द्वारा रचित भक्ति सूत्र में हैं 84 सूत्र, इन्ही में निहित हैं विश्व सूचनातंत्र के शाश्वत सिंद्धांत, उनके सूत्र कहते हैं कि पत्रकारिता तथ्यों को समेटते हुए विश्लेषण करती है और उसके बाद उसकी अनुभूति करके उसे दूसरों तक है पहुंचाती, यही तो पत्रकार का काम है जो अभावों में भी रहकर लोकहित में लगे रहते हैं, यही देवर्षि नारद की शिक्षा है।
फर्रूखाबाद, चंद रूपयों की खातिर बिकने को तैयार खड़ा ईमान, स्कूलों की बदहाली, अस्पतालों में व्याप्त अराजकता, दम घोंटती व्यवस्थाओं के आगे पनाह मांगता आदमी और घोटालों की लंबी फेहरिश्त….? कभी आपने सोंचा है कि ये शब्द आपके कानों तक कहां से आए….? जिम्मेदारों के डगमगाते ईमान से आपको किसने रूबरू कराया….? आप भी कहेंगें कि शायद पत्रकारिता ने….? बस इसी विश्वास और स्वीकार्यता ने पत्रकारिता को अपने आप ही चौथे स्तंभ का दर्जा का दिला दिया। इसके आदर्श और मानदंड ही इतने ऊंचे हैं कि युगों पूर्व देवता और दानव भी इसके आगे नतमस्तक थे। यह बात इसलिए बता रहे हैं कि आज रविवार को देवर्षि नारद की जयंती है। आप भी जानिये कि धरती के इन पहले पत्रकार ने मनुष्यों के दुःख-दर्द को किस तरह व्यवस्थापकों यानी देवताओं तक पहुंचाया। किस तरह दानवों व अधर्म के नाश का करण बने और धर्म की संस्थापना में अहम भूमिका भी निभाई। जानकर आप भी कहेंगें कि सचमुच अद्भुत थे आद्य पत्रकार नारद जी। यह बात पत्रकारों ने लाल सरायं स्थित कलमकार भवन में फर्रूखाबाद प्रेस क्लब के अध्यक्ष सर्वेन्द्र कुमार अवस्थी ’इंदू’ की अध्यक्षता में देवर्षि नारद जयंती पर आयोजित गोष्ठी में चर्चा के दौरान कही।
आयोजित साहित्यकार व काव्य गोष्ठी में ब्रह्माण्ड के प्रथम पत्रकार देवर्षि नारद पर चिंतन करते हुए पत्रकारों ने कहा कि आज जो वर्तमान में पत्रकारिता है, कालांतर में यही कार्य हमारे नारद जी का था। सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा गूढ़ से गूढ़ समाचार उचित माध्यम से पहुंचाकर जनता जनार्दन की सेवा कर परमात्मा के कार्य को आसान व सुचारू रूप से चलाना होता था। इनकी अबाध गति, सर्वज्ञानी एवं सर्वप्रिय होने के कारण यह दैत्य, सुर, असुर, देवता, किन्नर, गन्धर्व और वर्तमान में राष्ट्रपति, न्यायाधीश, मॉफिया, डकैत, पुलिस, सेना, जनता जनार्दन, नेता, अभिनेता तक मधुर पहचान के रूप में आधुनिक नारद जी हमारे यही पत्रकारबंधु ’अमितरूप प्रगटे तेहिकाला जथा जोग मिले दीनदयाला’ की भांति सेवा कर रहे हैं। देवासुर संग्राम हो, महाभारत हो चाहे कंस, बालि या रावण का वध…। पुराणों और शास्त्रों में हर जगह देवर्षि नारद की उपस्थिति बताई गयी है। देवर्षि ही वह पहले शख्स थे, जिन्होने सबसे पहले पहुंचकर स्थिति का मूल्यांकन किया। उसके पक्ष और विपक्ष को निर्विवाद रूप से आइने की तरह जिम्मेदारों के सामने रखकर उसके अंत और परिणामों से भी सभी को अवगत कराया। उनकी ही सूचना, संवाद और सलाह ही बाद में सत्य की जीत का कारण बनी। इस दौरान पत्रकारों ने कहा कि देवर्षि नारद के हर परामर्श में कहीं न कहीं लोकहित छिपा रहता है। वे निःस्वार्थ भाव से लोककल्याण का काम करते थे, तभी तो स्वयं नारायण ने उन्हें अपनी भक्ति का पात्र माना…। नारद द्वारा रचित भक्ति सूत्र में 84 सूत्र हैं। प्रत्यक्ष रूप से ऐसा लगता है कि इन सूत्रों में भक्ति मार्ग का दर्शन है और ईश्वर प्राप्ति के मार्ग के साधन बताए गये हैं,
लेकिन इन्ही सूत्रों का यदि सूक्ष्म अध्ययन करें तो केवल पत्रकारिता ही नहीं पूरी मीडिया के लिए शाश्वत सिद्धांतों का प्रतिपालन दृष्टिगत होता है। उनके सूत्रों के अनुसार पत्रकारिता तथ्यों को समेटती है। उनका विश्लेषण करती है और उसके बाद उसकी अनुभूति करके उसे दूसरों तक पहुंचाती हैं यही तो पत्रकार का काम है। अभावों में रहकर भी वह लोकहित के कामों में लगा रहता है। जनता के दुःख-दर्द को जिम्मेदारों तक पहुंचाता है। राहत का मार्ग खोलता है, वहीं अन्यायियों और भ्रष्टाचारियों के विनाश का रास्ता भी गढ़ता है। इस दौरान पत्रकारों ने देवर्षि नारद से प्रेरणा लेते हुए उनके बताए हुए रास्ते पर संकल्प लिया। गोष्ठी का संचालन उपकार मणि उपकार ने किया। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यक्षता कर रहे सर्वेन्द्र अवस्थी व भारती मिश्रा दीप प्रज्जवलित कर किया। इस मौके पर रविन्द्र भदौरिया, विनोद श्रीवासतव, राजेश हजेला, संजय गर्ग, दीपक सिंह, इमरान हुसैन, अमर साध, आलोक दुबे, लक्ष्मीकांत भारद्वाज, मोहनलाल गौड़, ओमप्रकाश शुक्ला, चंद्रप्रकाश दीक्षित, राबिन कपूर , प्रीति तिवारी, नलिन श्रीवास्तव, गीता भारद्वाज, रामबाबू रत्नेश, कृष्णकांत अक्षर, निमिष टंडन आदि दर्जनों पत्रकार, साहित्यकार व कविगण मौजूद रहे।