तारिक खान
दो पहिया वाहनों के शोरूम की बात करें तो शहर और बाहरी इलाकों में प्रत्येक सर्विस सेंटर में रोज औसतन 50 गाडिय़ां सर्विस के लिए आती हैैं। एक गाड़ी की धुलाई में करीब 80 लीटर पानी खर्च होता है। ऐसे में कंपनियों और अन्य ऐसे सर्विस सेंटरों को मिलाकर लगभग 150 सेंटरों में रोज करीब 7500 गाडिय़ां सर्विस के लिए आती हैैं। 80 लीटर प्रति गाड़ी के हिसाब से 75 सौ गाडिय़ों की धुलाई में रोज लगभग छह लाख लीटर पानी बहाया जाता है।
घरों में भी गाडिय़ों की धुलाई में बहाया जाता है बेतहाशा पानी
अब बात करते हैैं घरों में चार पहिया और दो पहिया वाहनों की धुलाई की। शहर में गाडिय़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है। काफी लोग ऐसे हैैं जो गाडिय़ों को घर के भीतर या बाहर सड़क, गली में खड़ा कर पाइप लगाकर धोते हैैं। यह ऐसे लोग हैैं जो पाइप पकड़कर घंटों गाड़ी को नहलाने में अपनी शान समझते हैैं। इसमें सैकड़ों लीटर पानी बर्बाद होता है।
शोधित पानी का होना चाहिए इस्तेमाल
सीवर का पानी एसटीपी में शोधित होने के बाद खेती के साथ गाडिय़ों की धुलाई में भी इस्तेमाल होना चाहिए लेकिन प्रयागराज में फिलहाल ऐसी व्यवस्था नहीं है। अभी एसटीपी में शोधित होने के बाद पानी को गंगा-यमुना में छोड़ दिया जाता है। उसे खेती और गाडिय़ों की धुलाई में इस्तेमाल के लिए काफी कुछ करना होगा। सबसे पहले शोधित पानी को स्टोर करने की व्यवस्था हो। फिर उसे एसटीपी से खेतों या सर्विस सेंटर पहुंचाने के लिए पाइप लाइन बिछानी होगी। ऐसा होने से भूगर्भ जल को बचाया जा सकता है। हालांकि अफसर इस तरह के काम पर विचार ही नहीं करते।
बोले जलकल विभाग के अधिकारी
जलकल विभाग के एक्सईएन हेडक्वॉटर हरिश्चंद्र वाल्मीकि का कहना है कि गाडिय़ों के सर्विस सेंटरों में अपनी बोङ्क्षरग हैैं। बोरिंग पर किसी तरह की रोक नहीं है न ही अनुमति लेने की जरूरत है। जलकल विभाग से सुबह-शाम पानी की आपूर्ति का समय निर्धारित है। इससे सर्विस सेंटरों का काम नहीं चल सकता है। बोङ्क्षरग कराके पानी का इस्तेमाल व्यावसायिक गतिविधियों के लिए हो रहा है तो इसके लिए सख्त नियम बनने चाहिए।
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