प्रदीप दुबे
ज्ञानपुर, भदोही। दुनिया का सबसे कठिन काम है चीरफाड़ करना। 20,000 से ज्यादा लोगों के शव को लगा चुका है ठिकाने। बच्चों का चीरफाड़ा करने से दहल जाता है दिल। आज तक नशे में नहीं किया है चीरफाड़। बाप के बाद अब बेटा करता है चीरफाड़। न रहने पर जल्लाद की पत्नी से कराया जाता है शवों का चीरफाड़। यह कहना है जल्लाद राजेश का।
पोस्टमार्टम नाम सुनते ही जेहन में एक खौफनाक और डरावाना मंजर घूमने लगता है। पोस्टमार्टम हाउस के पास कोई जाना भी नहीं चाहता है। यहां दिन में अक्सर कई कई लाशें आती रहती हैं। और चीर फाड़ भी किया जाता है। चारों तरफ बदबू बदबू और सड़न का माहौल हो जाता है। चिकित्सक पुलिस और बाबू चीर फाड़ में कार्य करते हैं। बाबू लाश की इंट्री करता है, दूसरा चिकित्सक जो मृतक केे मौत की जांच करता है।
एक जल्लाद जो चीर फाड़ करता है और लाशों को लेटाने और उठाने का भी कार्य करता है। सड़ी-गली बदबूदार लाशों के बीच यह न सिर्फ रहते हैं, बल्कि उन्हें उठाकर पोस्टमार्टम हाउस के अंदर रखते हैं।और शव को व्यवस्थित भी करते हैं। एक के बाद एक पड़ी लाशों के बीच भी चीर फाड़ करने वाले ये किन किन हालातों से गुजरते हैं? अंदर आखिर होता क्या है? समाज उसको किस तरह से देखता है? यह सब जानने की उत्सुकता हर किसी के मन में रहती है। आखिर ऐसे लोग माहौल में रहते कैसे हैं। इस पर शासन और प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।
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