तारिक आज़मी
डॉ कफील खान, नाम काफी मशहूर है। अच्छी बुरी सभी प्रकार की राय के साथ इस नाम के आते ही कई प्रश्न ज़ेहन में उभर आते है। सवाल आखिर तक अधुरा रह जाता है कि डॉ कफील खान एक हीरो या फिर विलेन। गोरखपुर मेडिकल कालेज केस के दौरान एक तरफ मीडिया तो दूसरी तरफ सोशल मीडिया आपस में कम्पटीशन करने लगी थी कि कौन पहले डॉ कफील खान को हीरो की उपाधि देगा। मगर सिर्फ दो चार दिन की चांदनी के बाद डॉ कफील खान अचानक एक विलेन की तरह प्रमोट होने लगे। लगातार उसके खिलाफ वही मीडिया और वही सोशल मीडिया पोस्ट और खबरे चलाने लगा जिसने डॉ कफील को एक लम्हे में हीरो बना दिया था।
यहाँ से शुरू होता है कफील खान के दिक्कतों का समय। कफील खान जो एक मिनट पहले तक मीडिया और सोशल मीडिया पर सुपर हीरो साबित हो रहे थे अचानक वह खलनायक के तौर पर प्रस्तुत होने लगे, कफील खान को लोगो ने हाशिये पर रख रखा था। इसी दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बात से इनकार किया कि कोई भी मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई थी। 13 अगस्त 2017 को उन्हें इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रभारी नोडल अधिकारी के रूप से डॉ कफील खान को हटा दिया गया था, ये बर्खास्तगी ड्यूटी में देरी और निजी प्रैक्टिस करने के आरोप में थी। डीजी हेल्थ, केके गुप्ता द्वारा लिखित शिकायत के बाद डॉ कफील और अन्य लोगों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। आईपीसी की धारा 409, 308, 120 बी, 420, भ्रष्टाचार अधिनियम की रोकथाम, आईपीसी की धारा 8, भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की धारा 15 के तहत। 2 सितंबर को, अदालत द्वारा गैर-जमानती वारंट जारी करने के बाद डॉ कफील खान को गिरफ्तार किया गया।
इस बीच कफील खान पर काफी संगीन आरोप लगे। इस दौरान वह सभी बाते लोगो ने सोशल मीडिया पटल पर रखना शुरू कर दिया जिसका कोई औचित्य नही बनता था। सबसे बड़ा आरोप कफील खान पर एक रेप के मुक़दमे के सम्बन्ध में लगा। 2015 की घटना के अनुसार यह रेप केस डॉ कफील पर महिला थाने में दर्ज होना दर्शाया गया था। वही एक लोबी जो सोशल मीडिया पर डॉ कफील का समर्थन कर रही थी, ने इस घटना के बाद लगी पुलिस रिपोर्ट की प्रति पोस्ट किया जिस रिपोर्ट में कथित रूप से घटना को झूठा दर्शाते हुवे पेशबंदी में हुवे मुक़दमे की बात कहते हुवे उलटे वादी मुकदमा पर 182 सीआरपीसी के तहत कार्यवाही की बात कही गई थी।
अचानक ऐसा लग रहा था कि घंटे पहले तक जिस शख्स को लोग हीरो से लेकर सुपर हीरो तक की उपाधि देने को बेचैन थे, वही आज उस शक्स को विलेन साबित करने पर तुले हुवे है। जाँच रिपोर्ट से पहले और न्यायालय के आदेश से पहले ही लोगो ने फैसले देने शुरू कर दिए थे। मगर ऐसा नही की सिर्फ डॉ कफील के विरोधी मुखर थे, दूसरी तरफ डॉ कफील के समर्थक भी कम नही थे। डॉ कफील की इस गिरफ़्तारी का विरोध भी जमकर हुआ था और एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों की एसोसिएशन ने उनकी गिरफ्तारी की निंदा करते हुवे कहा था कि उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। यह बयान आज भी यदा कदा चिकित्सको के एसोसिएशन से आते रहते है और लगातार डॉ कफील की बर्खातागी को ख़त्म करके उनके नौकरी में बहाली की मांग हो रही है। बहरहाल डॉ कफील महीनो जेल में रहे। इस दौरान उन्होंने जेल से एक दस पन्ने का ख़त भी लिखा था जो सोशल मीडिया पर खूब जमकर वायरल भी हुआ था।
10 जून 2018 को कफील खान के छोटे भाई काशिफ को अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी। काशिफ को गोली दाहिनी ऊपरी बांह, गर्दन और ठुड्डी यानी कुल तीन गोली लगी। लेकिन वह इस हमले में बच गए। यह घटना गोरखनाथ मंदिर से मात्र 500 मीटर की दूरी पर जेपी अस्पताल के पास हुमायूँपुर उत्तर क्षेत्र में घटी थी। यह वही इलाका था जहाँ यूपी के मुख्यमंत्री उस रात रुके थे। घटना के बाद कफील खान ने कहा कि उन्होंने मेरे परिवार के सदस्यों पर हत्या का प्रयास किया था। डॉ कफील ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके भाई को तत्काल चिकित्सा सुविधा प्राप्त करने में कुछ घंटों की देरी किया। उन्होंने भाजपा के बांसगांव से सांसद, कमलेश पासवान और उनके तीन सहयोगियों पर हमलों को अंजाम देने का आरोप लगाया।
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