तारिक आज़मी
वाराणसी। पारंपरिक ऊंट की कुर्बानी हेतु प्रशासन कि सख्ती के बाद कमेटी और जनता की जिच अथवा कमेटी की जिच के बाद आखिर पिछले 24 घंटे से अधिक से चला आ रहा प्रकरण सुखद अंत की तरफ बढ़ा और इस 24 घंटे लंबी जिच के बाद कुर्बानी करवाने वाली कमेटी ने आज देर शाम कुर्बानी हेतु आया दोनों ऊंट प्रशासन के हवाले कर दिया। इस क्रम में कमेटी के सदर हाजी मुख्तार अंसारी ने स्वयं कुर्बानी स्थल पर जाकर ऊंट खुलवाया और प्रशासन के साथ ऊंट को अन्यंत्र कही भेज दिया।
मामला कुछ इस प्रकार है कि आदमपुर थाना क्षेत्र के सलेमपुरा में पारंपरिक रूप से दो ऊंट की कुर्बानी प्रतिवर्ष होती है। यह कुर्बानी का सिलसिला लगभग 50 वर्षो से चली आ रही है। इस बार प्रशासन ने सख्ती के साथ ऊंट की कुर्बानी न होने की बात कही और लगभग 25 दिन पहले ही कमेटी को इस संबंध में नोटिस जारी कर दिया था। इसके बावजूद कमेटी के सदर हाजी मुख्तार अंसारी तथा अन्य सदस्यों क्रमशः जमाल, कदीर, नज़ीर ने इस बार लगभग 15 दिनों पहले ही ऊंट की खरीदारी कर लिया था। ऊंट को बाकायदा क्षेत्र में रोज़ ही भ्रमण करवाया जाता था। मामले में कमेटी ने जिस प्रकार से प्रशासन के आदेशो को ताख पर रख रखा था अंततः प्रशासन सख्त हुआ। इसके बाद कल शनिवार को प्रशासन ने सख्त लहजे में मामले का पटाक्षेप करने हेतु कमेटी को निर्देशित किया कि ऊंट को कुर्बानी स्थल से हटाया जाये।
रास्ते की सुरक्षा व्यवस्था हेतु नगर मजिस्ट्रेट, क्षेत्राधिकारी कोतवाली ब्रिजनन्द राय के साथ थाना कैंट, थाना सारनाथ, चेतगंज, कोतवाली सहित कुल 5 थाने की फोर्स उपस्थित थी। क्षेत्र में प्रकरण को लेकर चर्चाओं का बाज़ार गर्म है।
कमेटी है सवालो के घेरे में
कमेटी के एक सदस्य से जब इस प्रकरण में सवाल किया गया कि जब आपको प्रशासन ने कोई अनुमति नही दिया था और लगभग 25 दिनों पहले ही आपको इस सम्बन्ध में नोटिस प्रदान किया था तो फिर आप मामले में आस्था का मुद्दा जोड़ते हुवे ऊंट लाये ही आखिर क्यों ? इस प्रश्न के जवाब में कमेटी के मानिंद ने जो कहा वह कमेटी की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। उन्होंने कहा कि पिछले चार सालो से किसी प्रकार की अनुमति ऊंट की कुर्बानी को लेकर नही मिल रही थी, बिना अनुमति के ही कुर्बानी हो रही थी। सोचा कि इस बार भी हो जायेगी। अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऊंट क़ुरबानी की यह कमेटी किस प्रकार से बिना अनुमति के इतना बड़ा आयोजन करती चली आ रही थी। जब प्रशासन इसकी इजाज़त नही देता था तो आखिर चार साल से प्रशासन के आदेशो को ताख पर रखकर कुर्बानी कैसे होती रही है।
सवाल यही खत्म नही होता है। चर्चाओ को आधार माने और सूत्रों की जानकारी के अनुसार दो ऊंट की क़ुरबानी यहाँ होती रही है। बेशक लगभग 48 साल पहले तत्कालीन राजनैतिक दल बीकेटी ने ऊंट की कुर्बानी हेतु अनुमति लिया था। एक बुज़ुर्ग जानकर ने बताया कि उस समय पहला ऊंट 275 रूपये का आया था और यह सार्वजनिक कुर्बानी थी। इसके बाद समय के बदलाव के साथ दो ऊंट हो गया और कुर्बानी एक परिवार के आयोजन की तरह होने लगी। एक ऊंट पर सात हिस्सेदार होते है। पहले दिन कुर्बान होने वाला ऊंट एक ही परिवार का पूरा होता है और दुसरे दिन में कुछ और लोगो के नाम से साथ कुर्बानी होती रही।
यदि यह जानकारी उचित है तो फिर एक पारिवारिक आयोजन को सार्वजनिक रूप देने का मतलब क्या बनता है। उसके हेतु कमेटी का निर्माण आदि की बाते भले सुनने सुनाने में अच्छी लगे मगर हकीकत के तौर पर यदि आयोजन पारिवारिक है तो कमेटी का ही कोई मतलब नही बनता है। अब आखिर किस कारण एक कुनबे विशेष के आयोजन को सार्वजनिक का जमा पहनाया गया। आस्था पर हमारा कोई प्रश्न नही है। सभी व्यक्ति की अपनी अपनी आस्था इस संसार में है। मगर हर मामले को आस्था से जोड़ना भी कहा तक उचित है। आज जिस प्रकार कमेटी आराम से आकर ऊंट को लेकर चली गई, यह कार्य कल भी तो हो सकता था। फिर आखिर इतनी जिच करने वाला और करवाने वाला कौन है ? सबसे बड़ा सवाल है कि जिच आखिर कर कौन रहा था जबकि आयोजन तो एक कुनबे का है। फिर आम जनता का इससे क्या मतलब बनता है ?
बहरहाल क्षेत्र में माहोल पूरी तरह शांत है। किसी प्रकार की कोई सुगबुगाहट तक नही है। आम जनता मौज के साथ आज त्यौहार मनाने की पुरे शहर में तैयारी कर रही है। अब से कुछ देर बाद ईद की नमाज़ अदा होगी। प्रशासन पूरी तरह शांति के साथ त्यौहार गुज़ारने के लिया कटिबद्ध है। बनारस की गंगा जमुनी तहजीब का मरकज़ आज एक और तवारीख लिखने जा रहा है जिसमे सावन का आखिर सोमवार और ईद उल अजहा दोनों एक साथ एक ही दिन आपसी मिल्लत के साथ मनाया जायेगा।
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