तारिक खान
नई दिल्ली: देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) के दफ्तर को सूचना के अधिकार (RTI) के दायरे में लाने के दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया। जिसके अंतर्गत मुख्य न्यायाधीश का ऑफिस भी सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत आएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसमें कुछ नियम भी जारी किए हैं। फैसले में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश ऑफिस एक पब्लिक अथॉरिटी है, इसके तहत ये आरटीआई के तहत आएगा। लेकिन इस दौरान दफ्तर की गोपनीयता बरकरार रहेगी।
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को 3-2 से फैसला सुनाया। फैसले के अनुसार ऑफिस ऑफ सीजेआई आरटीआई के दायरे में आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि ‘ट्रांसपेरेंसी ज्यूडिशियल इंडिपेंडेंसी’ को कमतर नहीं आंकती है। हाईकोर्ट के फैसले में कहा गयाथी कि चीफ जस्टिस का पद सूचना के अधिकार के दायरे में आता है।
सीजेआई रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज अपराह्न दो बजे फैसला सुनाया। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना हैं। फैसला सुनाए जाने का नोटिस मंगलवार अपराह्न उच्चतम न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक किया गया था। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने उच्च न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेशों के खिलाफ 2010 में शीर्ष अदालत के महासचिव और केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा दायर अपीलों पर गत चार अप्रैल को निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
सीजेआई रंजन गोगोई ने पहले यह कहा था कि पारदर्शिता के नाम पर एक संस्था को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। नवंबर 2007 में आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने आरटीआई याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से जजों की संपत्ति के बारे में जानकारी मांगी थी जो उन्हें देने से इनकार कर दिया गया।
बता दें कि सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया, जिसमें जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस दीपक गुप्ता व जस्टिस संजीव खन्ना शामिल थे। गौरतलब है कि यह अपील 2010 में सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल व केंद्रीय सूचना अधिकारी ने हाई कोर्ट व केंद्रीय सूचना आयुक्त के आदेश के खिलाफ दायर की थी।
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