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शाहजहांपुर के निगोही में लाखों कुंटल धान की आवक के बाबजूद सरकारी खरीद बनी सफेद हाथी

जितेंद्र कुमार

शाहजहांपुर/निगोही. प्रशासन की अनदेखी के चलते किसानों को उनकी धान फसल का बाजिब मूल्य नहीं मिल पा रहा है। नमी व पेमेंट की समस्या बताकर जहां सरकारी खरीद नगण्य है। वहीं सूत्रों की माने तो खाद्य माफ़िया औने पौने दामों में धान खरीद कर बिना गेट पास के अवैध ढंग से धान की निकासी कर मंडी राजस्व का लाखों का घाटा कर खुद जेबें भरने में मशगूल है। बिडम्बना यह है कि किसानों के नेता भी समस्या उठाने के बजाय नदारद नज़र आ रहे हैं।

नगर की नवीन गल्ला मंडी में सरकारी खरीद की बावत विभिन्न क्रय एजेंसियों के आधा दर्जन धन खरीद केंद्र लगाए गए हैं। जिन पर समर्थन मूल्य 1800 रुपये है पर 1 अक्टूबर से धान खरीद के निर्देश हैं। अमूमन इस समय तक धान में खासी नमी रहना स्वभाविक है। ऐसे में कीमत कम मिलना भी तय है। लेकिन पूरा महीना बीत जाने के बाद भी सरकारी खरीद आवक के सापेक्ष नगण्य हैं।

30 अक्टूबर तक सरकारी आंकड़ों के मुताविक करीब 85 हजार कुंतल धान की मंडी में आवक हुई है। जबकि संचालित चार क्रय केंद्रों में आरएफसी प्रथम पर 2836 कुंतल, द्वितीय केंद्र पर 670 कुंटल, पीसीएफ केंद्र 1142 कुंटल और एसएफसी केंद्र पर 2921 कुंटल धान खरीद करना दर्शाया गया है। जो ऊंट के मुंह मे जीरा के समान है।

हांलाकि मंडी के विश्वस्त सूत्रों की माने तो मंडी में एक माह में करीब डेढ़ लाख कुंटल धान कि आवक हो चुकी है। जिसमे से मोटी आवक मंडी प्रशासन की मिली भगत तथा सफेदपोशों की हनक दिखाकर धान की निकासी भी की जा चुकी है। जिसे विभिन्न राइस मिलों में भण्डारित किया जाने के संकेत दिए गए हैं। जिससे अन्नदाता की धान उपज का न तो बाजिब कीमत उसे मिल रही है और न ही मंडी राजस्व की भरपाई हो रही है। जिससे लाखों रुपये मंडी राजस्व का घाटा होना स्वभाविक है।

कुछ जानकारों का मानना है कि गंगा मेला तक ही धान की खासी आवक होती है। फिलहाल मंडी में बुधवार को खुली नीलामी बोली 1470 से 1480 तक रही। जबकि भारी संख्या में किसानों का धान 11 सौ से 13 सौ के रेट पर बिकने की चर्चा रही।

बता दें कि धान आवक के अंतिम चरण में सरकारी केंद्रों पर बम्पर खरीद दर्शायी जाती है। कुल मिलाकर योगी सरकार में प्रशासन पस्त, किसान त्रस्त और माफिया मस्त हैं। क्या समय रहते प्रशासन व स्वयम्भू किसान नेताओं की कुम्भकर्णी नीद टूटेगी और किसानों को उनकी फसल की वास्तविक कीमत मिल पाएगी ? यह भविष्य के गर्भ में छिपा एक अनुतरित प्रश्न है ?

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