बापू नंदन मिश्र
रतनपुरा( मऊ) अनुकूल मौसम होने से इस समय अन्नदाता के खेतों में गेहूँ की फसल लहलहा रही है। किसानों द्वारा अधिक उत्पादन की चाह में फसलों में बिना किसी उचित मानक के अत्यधिक यूरिया आदि रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। अच्छे उत्पादन की ललक में किए जाने वाले इस कार्य से खेतों में फसलें जरुर अच्छी दिख रही हैं और काफी हद तक उत्पादन भी आशानुरूप प्राप्त हो रहा है।
किंतु इस तरह उर्वरकों के प्रयोग से एक तरफ जमीन की उर्वरता प्रभावित हो रही है तो दूसरी तरफ खाद्यान्नों की गुणवत्ता गिर रही है और उनमें में लगातार हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ रही है। जिससे तमाम तरह की बीमारियां हो रही हैं।रासायनिक खादों के साथ ही साथ कीटनाशक एवं खरपतवार नासी रसायनों का छिड़काव भी खाद्यान्नों की गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। ऐसे में गेहूं, चना, मटर तथा अन्य खाद्यान्नों में हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ रही है। लेकिन इस पर किसी तरह की रोक टोक नहीं है। यह स्थिति भविष्य के लिए अत्यंत खतरनाक है।
उर्वरकों के प्रयोग के बारे में एक किसान ने बताया कि गेंहूँ की बुवाई के समय डी ए पी , यूरिया एवं उसके बाद पहली सिंचाई के पश्चात पुनः यूरिया का छिड़काव तथा फसल के रेड़ते समय एक बार फिर यूरिया का छिड़काव करने की आदत पड़ गई है। ऐसा लगभग अधिकांश किसान कर रहे हैं। पिछले वर्षों में कृषि विभाग द्वारा मिट्टी जांच कर उसमें जरुरत के हिसाब से खादों के प्रयोग हेतु मिट्टी के सैम्पल लिए गए किंतु हकीकत के धरातल पर उसके परिणाम नहीं दिखे।
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