तारिक आज़मी
वाराणसीः CAA, NRC और NPR के विरोध में एक जनसभा को संबोधित करने आज पूर्व आईएएस कन्नन गोपीनाथन वाराणसी पहुचे। इस अवसर पर वाराणसी के शास्त्री घाट पर आयोजित इस जनसभा में कन्नन गोपीनाथन ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में जमकर सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि कहा कि मोदीं जी ने जनता से पूछा कि काले धन को पकड़ा जाए तो जनता ने कहा हां। आज नोटबन्दी के बाद कितना काला धन पकड़ा गया इसका उनके पास कोई जवाब नहीं है। वह मोदीं जी पूछ रहे हैं कि घुसपैठियों को बाहर निकाला जाए तो अब जनता समझ गयी है कि घुसपैठियों के नाम पर अल्पसंख्यक, महिलाएं, घुमन्तू जातियां भूमिहीन खेतमज़दूर किसान आदि ही घुसपैठिये घोषित किये जायेंगे। इसी कारण पूरे देश में CAA और NRC का जनता विरोध कर रही है। उन्होने कहा कि लोकतन्त्र में जनता नेताओं से सवाल पूछती है न कि नेता जनता से।
उन्होंने कहा कि सबसे पहले आपसे मौखिक रूप से अपने घर के सदस्यों के बारे में विवरण देने को कहा जाएगा। आपसे आपके माता-पिता के जन्म स्थान आदि के बारे में जानकारी मांगी जाएगी और बताया जाएगा कि कोई दस्तावेज नहीं मांगा जा रहा है। इसे एनपीआर यानि कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर बनाने के काम में लाया जाएगा और फिर दूसरे चरण में आपसे अपने द्वारा दी गई जानकारी का प्रमाण माँगा जाएगा, इसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने में उपयोग में लाया जाएगा।
उन्होंने कहा कि दूसरे चरण से ही असल खेल शुरू होता है, जो सरकार कपड़ों से दंगाइयों की पहचान करती हो, उसके बारे में यह समझना मुश्किल नहीं होगा कि वह मुख्य रूप से आबादी के किस हिस्से पर शिकंजा कसना चाहती है। तीसरे चरण में जिन लोगों के नाम के आगे डी यानि डाउटफुल लिखा होगा उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए ट्रिब्यूनल में जाने के लिए कहा जाएगा। चौथे चरण में अपनी नागरिकता साबित करने और दस्तावेज जुटाने के लिए नागरिकों को नाकों चने चबाने पड़ेंगे और पानी की तरह पैसे बहाने के बाद भी मोदी सरकार की सांप्रदायिक सोच के चलते बहुत से लोग खुद को नागरिक नहीं साबित कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि जो लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएंगे उन्हें नज़रबंदी शिविर में भेज दिया जाएगा।
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष ने कहा कि अगर हम इस आफत से बचना चाहते हैं तो हमे पहले ही चरण यानि कि एनपीआर को लेकर ही अपना विरोध दर्ज कराना होगा और कोई भी जानकारी देने से सरकारी मुलाजिम को मना कर देना होगा।
भाकपा माले, लिबरेशन के पोलित ब्यूरो सदस्य रामजी राय ने कहा कि भारत गंगा-जमुनी तहज़ीब का देश है और इसकी आत्मा को कोई भी नष्ट नहीं कर पाएगा। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने बहादुरशाह जफर की पेंशन खत्म कर दी थी और बाद में जब अंग्रेजों ने कपड़े से ढँककर उनके दोनों बेटों का कटा हुआ सिर उनके पास भेजा तो उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में बेटे अपने पिता के सामने इसी तरह से सुर्ख-रूह होकर आते हैं। हमें अपनी इस विरासत को किसी भी तरह बचाकर रखना है।
भगत सिंह अंबेडकर विचार मंच के सह-संस्थापक एसपी राय ने कहा कि हमें भारत की प्रजातांत्रिक विरासत को बचाने के लिए एकजुट होकर जनांदोलनों का सहारा लेना पड़ेगा। सभा की अध्यक्षता कर रहे स्वराज इंडिया के रामजनम ने कहा कि मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की शुरुआत आज काशी से हो गई है, इस एकजुट प्रयास से यह बात साबित हो जाती है कि समाज का हर तबका मौजूदा सरकार की नीतियों से खफा है और उसे उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध है।
प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इसी तरह जनता सड़कों पर आई थी और दुनिया में जिसका सूरज अस्त नहीं होता था, उसे बोरिया बिस्तर बाँधकर भारत छोड़ना पड़ा था। आज मोदी सरकार जिस तरह से नागरिकों को प्रताड़ित कर रही है, लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट कर हिंदुत्व की विचारधारा को लाद रही है, वह असंवैधानिक है और लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं है। इनका भी हश्र हिटलर की तरह ही होगा। लोग सड़कों पर आ रहे हैं और गांधीवादी आंदोलन जैसा वातावरण बन रहा है। ऐसे में इन सांप्रदायिक ताकतों के गैर-लोकतांत्रिक मंसूबे कामयाब नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून मुसलमानों ही नहीं बल्कि दलितों-पिछड़ों, महिलाओं और आदिवासियों के भी खिलाफ है।
इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि रोजी-रोटी, मकान, शिक्षा-स्वास्थ्य, सस्ता-सुलभ परिवहन जैसे मुद्दों को लेकर प्रायः जनता उद्वेलित नहीं होती, क्यों? क्योंकि उसके दिमाग में अभी तक यह बात घर नहीं कर सकी है कि यह सब कुछ प्रदान करना सरकार का काम है। जब अमित शाह गरज़ता है कि मित्रों मोदी जी ने धारा 370 को हटाकर अच्छा काम किया कि नहीं, बोलो-बताओ कश्मीर भारत माता का अभिन्न अंग है कि नहीं? तो देख रहे हैं आप कि समूचे विमर्श को ले जाकर किन नारों पर केंद्रित कर दिया गया है। एक बड़ी आबादी के दिलो-दिमाग में जगह बना चुके कुछ विमर्श इस प्रकार से हैं मंदिर-मस्जिद, कश्मीरी पंडित, मुस्लिम आबादी का सामाजिक पिछड़ापन, इस्लामिक आतंकवाद, लव-जिहाद़ (यह अभी उस तरह से आमजन की ज़ुबान पर नहीं चढ़ा है) आदि-आदि। सत्यानाशी भगवा-परिवार 1925 से ही मुस्लिमों, कम्युनिस्टों और लोकतांत्रिक बुद्धिजीवियों के खिलाफ ज़हर उगलता आया है और व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के इस युग में गाँव-देहात के लोग भी अब उसकी बोली बोलने लगे हैं। जनता की जिंदगी से जुड़े वास्तविक मुद्दों पर उसे इंगेज करके अगर अपनी बात रखी जाए तो यकीनन उसे सुना जाएगा, पर सनद रहे पहले इंगेज करो फिर बोलो, तभी जनता सुनेगी और फ़रेबियों की बातों में नहीं आएगी। शाहीनबाग की महिलाएं इसका क्लासिकल उदाहरण है।
इस मौके पर मंच पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रो. प्रतिमा गौड़, माले की राज्य समिति के सदस्य का. अमरनाथ राजभर, प्रदेश सचिव सुधाकर यादव, जिला सचिव मनीष शर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ के डॉ. संजय श्रीवास्तव, गोरखनाथ पांडेय, प्रो. असीम मुखर्जी मौजूद थे। इस मौके पर शिव कुमार पराग, डॉ. प्रशांत शुक्ल, डॉ. एमपी सिंह, मो. नईम अख्तर, ऐपवा से संबद्ध कुसुम वर्मा, डॉ. नूर फातमा, स्मिता बागड़े, डॉ. मुनीजा खान, कृपा वर्मा, कॉ. बी. के. सिंह, मौलाना मुफ्ती बातिन नोमानी, पीवीसीएचआर के अधिशाषी निदेश डॉ. लेनिन रघुवंशी मौलाना हारून नक्शबंदी, बोदा भाई, भगत सिंह छात्र मोर्चा के विनय कुमार, अनुपम कुमार, आकांक्षा आजाद, और आईसा, एआईएसआफ के अनेक छात्र और दूर-दराज से आए किसानों, बुनकारों और खेत-मज़दूरों ने भी सभा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
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