तारिक आज़मी
वाराणसी के कुछ संवेदनशील थाना क्षेत्रो में जोड़ा जाए तो जैतपुरा भी एक क्षेत्र है। अतिसंवेदनशील तो नही कम से कम संवेदनशील तो कहा ही जा सकता है। इस क्षेत्र के संवेदनशील होने के मुख्य कारको में एक कारण यहाँ की शिक्षा भी है। जी हां, सही समझा अल्प शिक्षित इस क्षेत्र में कई बार विवाद केवल और केवल शिक्षा की कमी के वजह से ही हो जाता है। दो लभनी के बाद एक दुसरे के साथ दो थप्पड़ लेन देन की घटना को भी बड़े स्तर से दिखाने की कोशिश हो जाती है। मगर जब आप गहराई में जाए तो निकलेगा कि खोदा पहाड़ और निकला चूहा।
सुबह होने पर जब लोगो ने खुली संपत्ति पर खडी दिवार देखा तो चर्चा का केंद्र बन बैठा। कुछ तो तफरी लेने के लिए जिन्नाती दिवार का नाम भी इसको देने लगे। मगर मामले में लोग सिर्फ चर्चा करके कुछ वक्त के लिए मूकदर्शक बनना चाहते थे, और बने हुवे भी है। इस दिवार के खड़े हो जाने की जानकारी दुसरे पक्ष को फोन पर किसी ने दिया जो शहर के बाहर कारोबारी सिलसिले में रहता है। कल दोपहर वह पक्ष भी शहर में वापस आया और दिवार देख कर उसके पेशानी पर शिद्दत की दरार तक खडी हो गई।
सुना जा रहा है कि स्थानीय चौकी इंचार्ज से संपर्क करने पर जब दुसरे पक्ष को राहत मिलती नही दिखाई दी, तो उसने तत्काल जिलाधिकारी को प्रकरण के सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र दे डाला। अब इस विवादो की दिवार पर बीती रात को देर रात पुलिस पहुची और डायल 112 की शिकायत का हवाला देकर दोनों पक्षों को पुलिस चौकी लेकर चली गई। पुलिस चौकी पर साहब ने रौबदार तरीके से मामले को हैंडल किया और दोनों पक्ष को हड़का डाला। एक पक्ष जिसने इस विवादित संपत्ति पर विवादों की दिवार खडी किया था उसका कहना था कि दूसरा पक्ष मन में प्लान बना कर बैठा है कि आज देर रात दीवार को तोड़ देगा।
चौकी इंचार्ज महोदय ने प्रकरण सुना तो दुसरे पक्ष को जमकर हड़का डाला और कहा बिना आदेश के दीवार पर हाथ न लगे। अब बात जो समझ में नहीं आई कि दरोगा जी का कहना बिलकुल सही है कि विवादित संपत्ति पर बिना आदेश के कुछ नही होगा। दीवार तोडना तो दूर उसको हाथ लगाना भी गलत होगा। मगर चौकी इंचार्ज साहब एक बात नही बता पा रहे है कि जब संपत्ति विवादित थी तो फिर ये विवादों की दीवार किसके आदेश पर खडी कर दी गई। कही साहब ने खुद तो मौखिक आदेश नही दे दिया था।
दूसरी बात समझ से परे थी कि जब दुसरे पक्ष ने मन में सोचा था दीवार को गिराने के लिए तो आखिर कितनी जोर से सोचा कि मन की बात बाहर निकल का दुसरे पक्ष को पहुच गई और दुसरे पक्ष से साहब तक पहुच गई। लगता है कि मन शायद ऊँचा सुनता होगा और मन को सुनाने के लिए जोर से सोच लिया होगा और दीवारो के कान तो होते ही है ये जग जाहिर है। बस मन की बात ऊँचे स्वर में होने के कारण दीवारों के कानो ने सुन लिया होगा और साहब ने न्याय व्यवस्था को संभाल लिया और कहा कि बिना आदेश के कोई काम नही होगा। मगर साहब बिना आदेश के विवादों की दीवार जब खडी हुई तो उस समय क्या हुआ था आदेशो का
बहरहाल, इस विवादित संपत्ति पर विवादों की दीवार उठा क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। शायद जो चर्चाये इस दीवार को लेकर है वही किसी न किसी रोज़ किसी विवाद का कारण बन जाए। हमको क्या करना है। विवाद पर भी तो समाचार बनेगा।
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