तारिक आज़मी
वाराणसी। पुरे देश में लॉक डाउन है। समाज के सुरक्षा के खातिर पुलिस सख्त होती जा रही है। वही दूसरी तरफ जनता को ये लगता है कि बेवजह उनको परेशान किया जा रहा है। जनता पुलिस से बचने के लिए तरह तरह की जुगत लगा रही है। अब उनको कैसे कोई समझाये कि वह पुलिस से बचने के लिए जुगत न लगाये बल्कि कोरोना की महामारी से बचने के लिए जुगत लगाये और ये जुगत सिर्फ एक ही है कि अपने बढ़ते हुवे कदमो को रोके और घरो में रहे।
हाल-ए-लॉक डाउन के तहत हम शहर की फिजाओं का जायजा लेने निकल पड़े। हमारा सफ़र लोहता क्षेत्र में हुआ। जुमे का दिन होने के बावजूद मस्जिदों में ताले पड़े थे। लोग अपने घरो में जोहर की नमाज़ पढ़ रहे थे। हमने भी एक परिचित के यहाँ वजू बनाया और जयनमाज़ बिछा कर अल्लाह की बारगाह में चंद सजदे किये और अपने सफ़र पर निकल पड़े। हमारे ठीक सामने धमरिया गाव था। गाव की हर एक गलियों पर बॉस बल्ली लगा रखा गया था। हम खुश हुवे कि खैर इन लोगो ने खुद की समझदारी का परिचय दिया और किसी को भी अन्दर बाहर आने की इजाज़त नही हो, इसलिये बॉस बल्ली लगा कर मार्ग अवरुद्ध कर दिया है।
हमारी ये सोच चंद मिनटों में ही काफूर होने वाली थी। हम सड़क पर ही अपनी बाइक को छोड़ कर अन्दर पैदल ही चल पड़े। हमारी सोच चंद कदमो की दुरी पर काफूर हो चुकी थी। बाहर लगी बॉस बल्ली, और अन्दर दिखी गुलज़ार गल्ली। हमने अपनी सुरक्षा हेतु तुरंत हाथो पर भी ग्लब्स चढ़ा लिया। मास्क को भी सेनेटाईजर का उपयोग कर सुरक्षित किया। सर पर लगा वाहन चलाने वाला हेलमेट भी अब उतरने से खौफ खा रहा था। हालात ऐसे थे जैसे लग रहा था कि गाव के अन्दर किसी त्यौहार की बैठकी है और लोग मौज मस्ती कर रहे है। हर नुक्कड़ पर दस पंद्रह लोग बैठे थे। कई लोग ऐसे थे जिनके चेहरों पर मास्क तक नही था। कुछ ऐसे थे जिन्होंने अपनी शर्ट और बनियान से खुद का चेहरा ढक रहे थे। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोरोना उनकी बनियान के महक से भाग जायेगा।
बहरहाल, हम थोडा आगे बड़े। एक छोटे लड़के के हाथो में केतली और चाय चाय की आवाज़ सुनी। कागज़ के गिलास में गर्म पानी जैसी चाय की कीमत पांच रुपया। खैर साहब, क्या करना है चाय पीना और और पिलाना किसको था। हम सकरी गलियों में आगे बड़े। एक जरनल स्टोर टाइप की दूकान खुली थी। वैसे हमको लेना तो कुछ था नही बस दाम पूछ कर संतुष्टि कर डाला। आंटा 30 रुपया किलो और सबसे सस्ता चावल भी 28 रुपयों के दाम में ऐठा पड़ा था। सबसे अधिक सुपर स्टार की तरह था पान मसाला। रजनीगंधा ने सबसे बड़ी कीमत अपनी रख रखी थी। उसकी कीमत दस की जगह बीस रुपया थी। राशन में आग लगी थी। एक सब्जी कारोबारी को आलू की कीमत 30 रुपया चाहिये थी। प्याज़ की कीमत चालीस रुपया किलो थी।
बहरहाल, हम आगे बढे। कई निगाहें हमारा पीछा इस तरीके से कर रही थी जैसे लग रहा था कि बावले गाव में ऊंट आ गया हो। इसी दौरान हमने एक से पूछा कि सिगरेट कहा मिलेगी। उसने बताया कि धनाऊ चा की दूकान पर। धनाऊ चा मीन्स धनाऊ चाचा हुआ। हम इनसे उनसे पूछते हुवे धनाऊ की पान की दूकान पर पहुच गए थे। नाम धनाऊ, अच्छी खासी तजुर्बे वाली उम्र से हमको देखने के बाद बोले का चाहिये।।। हमने कहा भाई सिगरेट है क्या ? बोले हां, कऊन सी चाहिये मेया नाम बताहियो। हमने कहा कऊन सी है। बोले गोल्ड छोटी बीस रुपया, कैप्टन 12 रूपईया, मोमेंट 10 रूपिया की है। हमने कहा का भाई काहे इतनी महँगी बेच रहे हो। बोले का महँगी है। हम खरीद रहे है महँगी तो बेचेगे।
इसी बीच एक ग्राहक बोल उठा धनाऊ का पान पहले दू रूपईया का रहा अब पांच रूपईया का हो गवा है। का करियो मेया समनवो महंगा हो गवा है। देखो खुदे। पनवा भी दो सौ रूपईया ढोली हो गवा है। बहरहाल, हमने कमला पसंद का भी दाम तफ्तीश करना चाहा तो धनाऊ बोल पड़े अमा खाली दमवा पूछबो की लेबो करियो कुछो। हम कहा हां एक रजनीगंधा और एक कमला पसंद दे देना। बोले बीस रुपया रजनीगंधा का और छः रुपया कमला पसंद का भवा, हम भी तंज़ कसने में कम नहीं रहे। हमने कहा का हो धनाऊ लॉक डाउन के बाद का आधा बिस्वा ज़मीन खरीदोगे का। बोले हां भईवा घरवा का खर्चा चलावे के लिए कुछो चाहिए न।
हमने दरियाफ्त करने की गरज से पूछा, लॉक डाउन में ये सब बांस बल्ली काहे लगा डाला भाई। लोगो ने बताया कि पुलिस बार बार आती थी और दौड़ा देती थी। इससे बचने के लिए कुछ लोगो की सलाह पर हम लोग ऐसा किये है। दुकानों के सम्बन्ध में हमने पूछा तो धनाऊ ने हंस कर कहा अमा जुगाड़ हो जावेते। हम समझ चुके थे कि इस जुगाड़ का जुगाड़ क्या है। हमको सिर्फ इस बात की तस्दीक करना था कि आखिर हाल क्या है इन गलियों का। मगर जो हाल दिखाई दिया वह वाकई सोचने पर मजबूर करता है कि क्षेत्र आखिर कब जागेगा। कब उसको इसका अहसास होगा कि आम जनता के सुरक्षा की खातिर ये लॉक डाउन है। आखिर कब उसको अहसास होगा कि जनता घरो में रहे तो वह सुरक्षित है। आखिर कब ये लोग समझेगे कि उनकी ही भलाई के खातिर पुलिस शक्त है।
दरोगा जी शायद हमारी कवरेज से नाराज़ हो गए है
एक तरफ पुलिस के अधिकतर कर्मचारी और अधिकारी इस वक्त पसीने बहा रहे है। जनता को समझा रहे है। पत्रकारों से अपील कर रहे है स्वयं एसएसपी वाराणसी ने अपने अधिनस्थो को पत्रकारों का सहयोग करने की पुलिस को नसीहत दिया है। थाना प्रभारी राकेश कुमार सिंह खुद पत्रकारों को सम्मान दे रहे है, मगर लोहता थाने के एक दरोगा अवधेश तिवारी जो शायद सब पर भारी है को हमारी कवरेज और हमारा क्षेत्र में आना पसंद नही आया। पुलिस के रौब के साथ साहब ने हमसे इलाके में आने का सबब मीना बाज़ार के पास रोक कर पूछा। हमने उनको बताया। उनका बस नही चला वरना वह मुझको ही उठा कर बंद कर देते कि आखिर हमारी कमियों दिखाने की हिम्मत कैसे हुई।
दरोगा जी क्षेत्र के कुछ कथित संभ्रांत नागरिको के साथ मीना बाज़ार पर खड़े थे। उन कथित संभ्रांतो में से कुछ को मैं खुद पहचानता भी हु। एक सज्जन की खोच तो आज से एक दशक पहले तक कई थानों की पुलिस कर चुकी है। एक ऐसे भी थे संभ्रांत जो विवादों को जन्म देने में इसी थाने में फटकारे भी पहले जा चुके है। लॉक डाउन उनके लिए शायद इसलिए नहीं था क्योकि वह दरोगा जी के साथ खड़े थे। बहरहाल दरोगा जी ने हमारे साथ बदजुबानी करने की कोशिश किया और कहा कि पूरा शहर पड़ा है आपको कमी केवल हमारे इलाके में दिखाई दे रही है। हमने भी दरोगा जी को जवाब दिया कि आप अपना काम कर रहे है मैं अपना काम कर रहा हु। यह कहकर आगे बढा तो दरोगा जी के शब्द थे कि पत्रकारों से मुझे नफरत है। हम दरोगा जी से बहस करके अपना कीमती वक्त खराब नही करना चाहते थे। हमारे सर पर हेलमेट हमको अपने रास्ते जाने को कह चूका था। बाइक जा चुकी थी। मगर इसी दौरान दरोगा जी ने अपनी पुलिसिया अंदाज़ में पीछे से शायद हमारी गाडी का पिक ले लिया और थोड़ी देर के बाद हमारे मोबाइल पर 7 हज़ार एक चालान का मैसेज आ गया। शायद दरोगा जी इस बात से हमको डराना चाहते थे कि दुबारा हमारे इलाके में आओगे तो ऐसे फर्जी चालान हम दस और काट देंगे।