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सियासत के कदमो तले एक कलम ने तोड़ी अपनी सांसे, प्रख्यात युवा महिला पत्रकार रिजवाना हुई दुनिया से रुखसत, घर में फंदा लगा कर किया आत्महत्या

तारिक आज़मी

वाराणसी। वो नवजवान थी, निर्भीक थी, निडर थी, कमल पर मजबूत पकड़ थी। मुद्दों को सही ढंग से उठाना जानती थी। अभी कल दोपहर को ही उसने वाराणसी के रेड लाइट एरिया पर एक स्टोरी किया था और उसको अपने फेसबुक पर प्रकाशित किया था। कई बड़े बैनरों में काम कर चुकी रिजवाना अब इस दुनिया में नहीं रही। कल देर रात किसी समय उसने अपने घर में अपने कमरे में खुद को फांसी के फंदे से झुला कर इस दुनिया से रुखसत कह दिया। आज लाश के पास उसके बोर्ड पर लगा उसका सुसाईड नोट पुलिस ने बरामद दिया है जिसके ऊपर उनसे अपनी मौत की ज़िम्मेदारी क्षेत्र के एक सियासी युवक पर लगाया है।

वाराणसी के लोहता क्षेत्र की रहने वाली रिजवाना ने अपने पत्रकारिता जीवन की शुरुआत खबर लहरिया नाम के एक अखबार की रिपोर्टर के तौर पर किया था। छोटी सी उम्र में पत्रकारिता में आई रिजवाना ने इसके बाद पीछे मुड कर नही देखा और यहाँ से दिल्ली पत्रकारिता की पढाई करने के लिए गई। इसके बाद उसने पत्रकरिता के क्षेत्र में खुद का नाम बड़ा कर डाला। “द वायर”, “बीबीसी” और “द क्विंट”:जैसे बड़े बैनरों में उसकी खबरे और लेख प्रकाशित होने लगे। एक गरीब परिवार से संबधित रिजवाना खुद के परिवार का सहारा बनी और अपने तथा अपने परिवार का जीवन स्तर सुधारना शुरू कर डाला। इस दौरान पिछले कुछ समय से वह लोहता क्षेत्र के निवासी युवा नेता शमीम नोमानी के संपर्क में आई।

मृत महिला पत्रकार के शव के पास से सुसाइड नोट बरामद करते लोहता थानाध्यक्ष

मृतक पत्रकार के परिजनों की माने तो काफी समय से शमीम नोमानी उसको प्रताड़ित कर रहा था। इन सबके बावजूद भी रिजवाना ने खुद का काम जारी रखा। अपनी मौत के एक दिन पहले ही उसने वाराणसी के रेड लाइट एरिया शिवदासपुर पर एक स्टोरी किया था जिसको फेसबुक पर काफी सराहना भी मिली है। शायद किसी ने कभी नही सोचा होगा कि एक जुझारू पत्रकार ऐसे टूट जाएगी। कल देर रात किसी समय अपने कमरे में रिजवाना ने खुद को अपने ही दुपट्टे का फंदा बना कर उससे झूल गई और इस दुनिया को रुखसत कह गई।

सुबह होने पर परिजनों ने जब दरवाज़ा देर तक नही खुलने पर आवाज़ लगाया तो अन्दर से कोई जवाब नही आया। इसके बाद शंका होने पर दरवाज़ा तोड़ कर अन्दर जाने पर घटना की जानकारी हुई। जानकारी होने पर थाना लोहता की फ़ोर्स मौके पर पहुची और तफ्तीश में जुट गई। रिजवाना के शव के पास ही उसके बोर्ड पर लगे उसके सुसाइड नोट पर उसने अपनी मौत का ज़िम्मेदार शमीम नोमानी नाम के क्षेत्र के युवा नेता को बताया है। पुलिस ने सुसाइड नोट और शव को कब्ज़े में ले लिया है। पुलिस ने पंचनामा कर लाश को पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया है। जबकि मृतक पत्रकार के पिता की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर आगे की कार्यवाही कर रही है।

फाइल फोटो मृतक पत्रकार रिजवाना मृतक के फेसबुक प्रोफाइल से साभार

सियासत के गंदे कदमो के नीचे दब कर एक जानदार कलम खामोश हो चुकी है। शमीम नोमानी समाचार लिखे जाने तक पुलिस पकड़ से भले दूर हो। शायद पुलिस उसको पकड़ कर हवालात में डाले और उसके बाद जेल। इसके बाद शुरू होगा पैरवी और बेल जैसा काम। आज नही कल शमीम नोमानी जेल की काल कोठारी से बाहर आ जायेगा। मगर बनारस की सरज़मीन ने एक दमदार पत्रकर खो दिया। पत्रकारिता की जो क्षति हुई है उसका शायद कोई हर्जाना नही हो सकता है। परिवार की आय का मुख्य श्रोत रिजवाना ही थी। अब फिर से परिवार उसी गरीबी के साये में जियेगा। चार दिन चर्चा रहेगी। लोग सोशल मीडिया पर इन्कलाब लाने की बात करेगे शायद, मगर पांचवे दिन भूल कर अपने काम में व्यस्त हो जायेगा।

स्थिति तो इस प्रकार है कि दोपहर तक समाचारों में युवती के आत्महत्या की चर्चा रही। शायद स्थानीय पुलिस  भी मृतका को पत्रकार नही बता रही थी। कई पत्रकारों को पता भी नही था कि रिजवाना पत्रकार थी। हालात बदले और दोपहर बाद लोगो ने पत्रकार लिखना शुरू किया। आज भी रिजवाना के फेसबुक वाल देखे तो लगेगा कि एक नवजवान बेटी कलम से क्रांति लाना चाहती थी। उसकी खबरों और उसकी पोस्ट में उसकी ज़ेहनियत ज़ाहिर होती है। उसके एक एक अलफ़ाज़ में उसकी कलम की ज़िम्मेदारी दिखती है। अब वो वाल कभी भी काम नही करेगी। अब सब खामोश रहेगा। क्योकि सियासत के क्रूर कदमो के नीचे कलम ने दम तोड़ दिया है।

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