फारूख हुसैन
लखीमपुर खीरी÷ कोरोना जैसी वब़ा (बिमारी) को लेकर जहां पूरी से सब खौफज़दा दिखाई दे रहें हैं इसी वब़ा के संक्रमण से सभी को बचाने के लिये हमारे वजीरेआला नेरेन्द्र मोदी ने पूरे देश को लाकडाउन किया है लाॅकडाउन के चलते पूरे देश के सभी धार्मिक स्थलों को बंद कर दिया गया है जिसके कारण लोग अब अपने घरों में ही इबादत और पूजा करते नज़र आ रहे हैं जिससे सभी धार्मिक स्थल इस वक्त वीरान हैं। लेकिन ऐसे में इस कोरोना जैसी वब़ा के चलते सभी त्योहार भी फीके हो चुके है। जिससे लोगों के मनमस्तिस्क पर भी गहरा असर दिखाई दे रहा है और लोगों में आने वाले त्योहारों में कोई खाश दिलचस्पी नहीं दिखाई दे रही है। जिसके कारण लखीमपुर खीरी जिले में ईद की सारी खुशियां मायूसी में बदल गयीं हैं।
भीषण गर्मी होने के बावजूद पूरे एक महीने तक रोज़ा रखने के बाद ईद का मुबारक त्योहार मनाया जाता है लोग ईद के मौके पर कन्धे से कन्धा मिला कर एक साथ नमाज़ अदा करते हैं और एक दूसरे से गले लगकर मुबारकबाद देते हैं, पूरी मस्जिद ईद के दिन इत्र की सौंधी खुशबू से महक उठती है, छोटे-छोटे बच्चे रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर ईदगाह के मेले की रौनक में चार चाँद लगाते हैं, सदियों से ऐसा ही रिवाज चलता आ रहा है, लेकिन इस बार कोरोना की महामारी ने हर एक शख्स को इन सब खुशियों से मेहरूम कर दिया है।
आखिर क्यों मनाया जाता है ईद-उल-फित्र
आपको बता दें हर साल की तरह इस साल भी इस्लाम धर्म मानने वालों का पवित्र महीना रमजान खत्म होने के साथ ही ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाएगा। इसके साथ ही 30 दिनों तक रखे जाने वाले रोजा मुकम्मल (खत्म) हो जाएंगे और फिर दुनिया भर में मुस्लिम इस त्योहार को पूरे जोश और उल्लास के साथ मनायेगें लेकिन इस बार यह मुमकिन नहीं होगा।
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रमज़ान नौवें महीने में होता है और मुस्लिम समुदाय में इसे काफी अहम माना जाता है, रमजान के पाक़ (पवित्र)महीने में मुस्लिम 30 दिनों तक रोजा रखते हैं, इस्लामिक मान्यता है कि 610 ईसवी में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब (स0ल0व0) पर कुरआन नाज़िल (प्रकट) होने के बाद रमज़ान को इबादत का महीना घोषित किया गया था। तभी से मुसलमान पहली बार कुरआन के नाज़िल (उतरने) होने की याद में रोजे रखते हैं। लेकिन दूसरी मान्यताओं के मुताबिक, हर साल रोजे रखने की ये परंपरा इस्लाम में इबादत का एक महत्वपूर्ण महीनो में से एक है। रमजान का मुबारक महीना करीब 29-30 दिन का होता है, जो अर्धचंद्र के दिखने पर निर्भर करता है। रमज़ान अल्फाज (शब्द) अरबी भाषा के अल्फाज (शब्द) रमीदा और अर-रमद अल्फाज (शब्द) से मिलकर बना है जिसका मतलब (अर्थ) होता है चिलचिलाती गर्मी या सूखापन।
ऐसी मान्यता है कि इस्लाम का पवित्र ग्रंथ कुरआन इसी महीने में आसमान से नाज़िल हुआ था, इसीलिए लोग अपने इस महीने में हर बुरे काम को छोड़ कर पांचों वक्त की नमाज पढ़ते हैं और इसके अलावा रोजे की नमाज जिसे तरावीह कहते हैं वह भी अदा करते हैं और खुदा से दुआ करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं रमज़ान के आखिरी में ईद की नमाज़ के पहले ही फितरा और जकआत देते हैं. ऐसा माना जाता है कि फितरा और जकआत निकालने से उनके पास रखी धन दौलत और सोने-चांदी के जेवरात या फिर अन्य चीजें पूरी तरह से खुदा की हिफाज़त में चले जाते हैं. इसके अलावा वह अपनी जान की भी जकआत देते हैं जिससे उन पर आने वाली परेशानी पूरी तरह से टल जाए और वह खुदा की हिफाज़त में रहें ऐसा भी माना जाता है कि इस फितरा और जकआत को निकालने के लिए गरीबों और यतीमों को देना लाज़मी (जरूरी) होता है।
जानकारी के अनुसार इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रमज़ान के बाद आने वाले दसवें महीने शव्वाल में ईद-उल-फितर पहला और इकलौता दिन होता है. जिसमें मुस्लिमों को रोज़े रखने की इजाज़त नहीं होती और ईद का दिन और तारीख अलग अलग वक्त और चांद के दिखने के हिसाब से बदल सकती है।
इस बार की कैसी होगी ईद
हालांकि इस बार कोरोना वायरस के फैलने की वजह से इस त्योहार को मनाने का तरीका बदल सकता है क्योंकि अब ईद उल फितर की नमाज़ लोग मस्जिदों और ईदगाह में नहीं पढ़ सकेंगे वह केवल अपने घरों में ही रहकर सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर नमाज़ अदा करेगें। लॉकडाउन के दौरान लोगों के घरों में कैद होने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की वजह से लोग अपने परिवार के साथ घर में रहना ही मुनासिब समझेंगे ।दुनियाभर में लोग घरों में रहते हुए एक दूसरे का मुबारकबाद (आभार) जता कर ही इस बार ये त्योहार मना सकते हैं।
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