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सूने है मंदिर-मस्जिद, और गुलज़ार हो गए मयखाने, नियमो को ताख पर रख लगी भीड़, एक ही दिन में इतने करोड़ की बिक गई बनारस में शराब

तारिक आज़मी

वाराणसी। आज अमन-ओ-सुकून के शहर बनारस में लॉक डाउन के दौरान काफी छुट मिली। इसका कही फायदा हुअ तो कही नाजायज़ फायदा भी उठाते हुवे लोग दिखाई दिये। इस छुट के दौरान मंदिर मस्जिद तो लॉक डाउन जैसे ही सन्नाटे में रहे मगर मयखाने ज़रूर आबाद हो गए। पीने वालो को पीने का बहाना चाहिए के तर्ज पर लोगो की भारी भीड़ मयखानों की जानिब दिखाई दी।

ऐसा नही कि सिर्फ बनारस में ही ऐसी तस्वीरे दिखाई दी, बल्कि मुल्क के मुख्तलिफ हिस्सों में मयखानों की तस्वीरे ऐसी ही थी जिसको देख कर इंसान बड़े ही आसानी से समझ सकता है कि लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस का कितना ज़बरदस्त पालन हुआ होगा। हर शहर में ही शराब की दुकानों के सामने लम्बी लाइन तो कही एक दुसरे के ऊपर चढ़े हुवे लोग दिखाई दिए। इस दौरान शहर का जायजा हमने भी लिया और तस्वीरे बेशक आपको फिक्रमंद कर सकती है कि इनमे से अगर एक भी कोरोना संक्रमित रहा होगा तो कितनो को ये कोरोना बाट कर गया होगा।

रथयात्रा हो या फिर लक्सा या गोदौलिया या फिर लंका, हर मयखाने लम्बी लाइन थी। एक दूकान पर कितनी शराब आज बिकी होगी इसका अंदाजा आप उस तस्वीर को देखकर लगा सकते है जिसने अपनी चंद खाली पेटिय दूकान के बाहर रख छोड़ी थी। हर दूकान पर लम्बी लाइन सुबह से ही दिखाई दी और आखिर तक लाइन खत्म नही हुई। इसको देख कर ही अंदाज़ आप लगा सकते है कि लोगो ने इस लॉक डाउन में शराब को कितना मिस किया होगा।

इन लाईनों को देख कर एक ग़ज़ल की लाइन याद आ गई कि ए गम-ए-ज़िन्दगी कुछ तो दे मश्वरा, एक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा, मैं कहा जाऊ होता नही फैसला, एक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा। देख कर तो ऐसा लग रहा था कि शराब की इतने दिनों की प्यास आज ही बनारसी लोग बुझा डालेगे। या फिर इसी ग़ज़ल का एक और बेहतरीन शेर फिट बैठता है कि शेख साहब ने मांग ली जन्नत, मैं वहा से शराब ले आया।

बहरहाल, तस्वीरे देख कर आप बेशक खौफ में हो सकते है कि सोशल डिस्टेंस के अलावा खुद की सुरक्षा को ताख पर रखकर लोग किस तरीके से शराब के दीवाने बने हुवे है। इसके शाम होने के पहले रुझान आने शुरू भी हो गए थे। एक तस्वीर मैदागिन की है जिसमे एक सज्जन काफी दिनों की अपनी शराब की प्यास बुझाने के लिए निकले और शायद छक कर पिया होगा। पीने के बाद सड़क पर ही गिर कर सो गए।

इसके अलावा शहर के गली मुहल्लों में अंग्रेजी शब्दों की भी बौछारे रात तक दिखाई देने लगी थी। सुबह तक इसकी खुमार रहने की संभावना प्रतीत हो रही है। काफी दिनों के बाद मदिरापान होने के कारण कुछ जगहों पर “चढ़” जाने के बाद वो सबसे खुबसूरत डायलोग भी सुनाई दिया कि “इसकी ऐसी की तैसी भाई, गाडी आज तुम्हारा भाई चलायेगा।”

बहरहाल, तस्वीरे देख कर आप खुद हालात का अंदाज़ लगा सकते है। पुलिस की सख्ती शायद नरमी में दिखाई दे रही थी। ये अब जिस कारण से रहा हो। लाख सोशल डिस्टेंस की बात हो मगर हकीकत उन्होंने भी देखा होगा जो आज सड़को पर कुछ काम से निकले थे। लॉक डाउन के दौरान इस प्रकार की छुट पर संभ्रांत नागरिको की प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है।

वैसे कौन कहता है कि देश में गरीबी है। शायद नहीं है। क्योकि आकड़ो की बात करे तो पौने पांच करोड़ की शराब तो वाराणसी में केवल आज ही बिक गई है। यह आकडा अचंभित करने वाला हो सकता है। एनडीटीवी की एक खबर में इस बात का आकडा दिया गया है। खबर के अनुसार शाम को जब इसकी बिक्री की आधिकारिक सूचना आई तो 4 करोड़ 73 लाख 84 हज़ार 330 रुपये की शराब बिक गई थी। इसमें देशी शराब 60 लाख 25 हज़ार 500 की, अंग्रेजी शराब 3 करोड़ 89 लाख 85 हज़ार 800 रुपये की और बीयर 23 लाख 73 हज़ार 30 रुपये की बिकी। ये शराब लगभग 88 हज़ार लोगों के जरिये खरीदी गई।

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