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मछली पालन में किसानो ने चीन को कहा अलविदा

फारुख हुसैन

लखीमपुर खीरी= मछली पालन में भी किसानों ने चीन को अलविदा कह दिया है। चाइनीज मछली ग्रास, सिल्वर व कॉमन क्रॉप की जगह अब आंध्र प्रदेश की पंगेशियस का रुतबा कायम होगा। जिले के मत्स्य पालकों ने इसकी मछली को पालना शुरू कर दिया है। इस साल पांच जगहों पर मछली पाली गई है। खास बात यह है कि मछली की निकासी भी तालाबों से शुरू हो गई है। जिले में बिक्री के साथ ही लखनऊ, बरेली, दिल्ली तक मछली भेजी जा रही है। यह मछली शौकीनों की पहली पसंद है। शौकीन बताते हैं कि यह मछली खाने में काफी स्वादिष्ट होती है।

खीरी जिले में मछली पालने का कारोबार तो कई सालों से होता है। जिले के मत्स्य पालक ज्यादातर देसी मछलियों को पालते थे। लेकिन अब धीरे-धीरे दूसरे प्रदेशों की मछलियों को भी यहां पाला जाने लगा है। इसमें सबसे ज्यादा डिमांड आंध्र प्रदेश की पंगेशियस मछली की होने के कारण अब पंगेशियस मछली की ओर मत्स्य पालक बढ़ रहे हैं। जिले में इस साल पांच से ज्यादा तालाबों में पंगेशियस मछली का पालन किया गया है। इसमें कस्ता, सैदापुर, सुंसी, चपरतला और हरिहरपुर में पंगेशियस मछली पाली गई है। इसके अलावा चाइनीज, देसी मछलियां भी मत्स्य पालकों ने पाली हैं। जिले में ही इनका बीज मत्स्य पालकों को मिल जाता है

सात माह में ही तैयार हो जाती हैं मछलियांसहायक निदेशक मत्स्य संजय यादव का कहना है कि पंगेशियस मछली सात महीने में ही तैयार हो जाती है। देसी और चाइनीज मछलियों की तुलना में इसका वजन डेढ़गुना और उत्पादन भी ज्यादा होता है। मछली खाने के शौकीनों की यह पहली पसंद है। पंगेशियस मछली का औसत वजन एक से डेढ़ किलो होता है। पैदावार पांच टन प्रति हेक्टेयर है। दूसरी मछलियों की तुलना में पंगेशियस मछली करीब तीन माह में तैयार हो जाती है। प्रजनन के बाद 7-8 माह में ही यह डेढ़ से ढाई किलो वजन तक की हो जाती है, जबकि देसी और चाइनीज मछलियां 10 माह में तैयार हो पाती हैं। पंगेशियस मछली होली के बाद तालाबों में डाली जाती है और दिवाली तक निकाल ली जाती है। मत्स्य पालक अब तालाबों से मछलियां निकालकर बिक्री करने लगे हैं।

एक एकड़ तालाब में 20 हजार बीज

-सहायक निदेशक मत्स्य संजय यादव बताते हैं कि मत्स्य पालन किसानों के लिए काफी अच्छा है। एक एकड़ में सात से 10 लाख तक की मछली का उत्पादन हो सकता है। जबकि अन्य फसलों में इतना मुनाफा नहीं है। इसमें अगर लागत व खर्च निकाल दिया जाए तो भी बहुत अच्छा फायदा किसानों को हो रहा है। एक एकड़ के तालाब में पंगेशियस के करीब 20 हजार बच्चे डाले जाते हैं। सात महीने में ही यह एक किलो से ज्यादा वजन के हो जाते हैं। पंगेशियस मछली का बीज कलकत्ता से आता है।

अब तालाबों से मछलियां निकालकर बिक्री करने लगे हैं।बाक्सएक एकड़ तालाब में 20 हजार बीज-सहायक निदेशक मत्स्य संजय यादव बताते हैं कि मत्स्य पालन किसानों के लिए काफी अच्छा है। एक एकड़ में सात से 10 लाख तक की मछली का उत्पादन हो सकता है। जबकि अन्य फसलों में इतना मुनाफा नहीं है। इसमें अगर लागत व खर्च निकाल दिया जाए तो भी बहुत अच्छा फायदा किसानों को हो रहा है। एक एकड़ के तालाब में पंगेशियस के करीब 20 हजार बच्चे डाले जाते हैं। सात महीने में ही यह एक किलो से ज्यादा वजन के हो जाते हैं। पंगेशियस मछली का बीज कलकत्ता से आता है।

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