आफताब फारुकी
पटना। एनडीए ने कई एग्जिट पोल को धता बताते हुए बहुमत के निशान को पीछे छोड़ दिया और गठबंधन में जूनियर पार्टनर रही बीजेपी एक बार तो सबसे बड़ी पार्टी बन गई। बेशक, लालू के लाल तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन ने एक मजबूत लड़ाई लड़ी, जो 10 घंटे की गिनती के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। नीतीश कुमार के तीन कार्यकाल के बाद सत्ता विरोधी लहर होने के बावजूद एनडीए के लिए अप्रत्याशित बढ़त हासिल करने के लिए बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अभियान को जिम्मेदार ठहराया है
बिहार के साथ, भाजपा के पास एक सूखे चरण को समाप्त करने का मौका है, जिसमें उसे विभिन्न घटक दलों के जाने से राज्यों की सत्ता गंवानी पड़ी। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में, जहां अपने पूर्व साथी शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस के साथ एक अप्रत्याशित साझेदारी करके भाजपा को सत्ता में आने से रोक दिया था। एक दर्जन राज्यों में हुए उपचुनावों के आज आए नतीजों ने भी बीजेपी ने जीत दर्ज की है, जिसे पीएम मोदी की जीत की कसौटी के तौर पर देखा जाता है।
जहां तेजस्वी अपनी रैलियों में शामिल होने वाली भारी भीड़ को बड़ी जीत में बदलने में नाकाम रहे, वहीं 31 वर्षीय इस नेता ने खुद को एक प्रमुख राज्य के नेता के रूप में स्थापित किया है। वह नीतीश कुमार को तीसरे स्थान पर धकेलने में सफल रहे हैं। लेकिन कांग्रेस को 70 सीटों पर चुनाव लड़ना उसका सबसे बड़ा गलत अनुमान हो सकता है। जबकि कांग्रेस ने इस बार 2015 की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन बहुत कम सीटें जीतने में सफल हुई इसने अपने आलोचकों को एक बार फिर से कुछ नेताओं के साथ दायित्व निभाने के लिए प्रेरित किया है जो पीएम मोदी की अपील और वोट-जीतने के तरीकों से मेल खाते हैं।
कांग्रेस के एकमात्र स्टार प्रचारक राहुल गांधी थे, गांधी परिवार से कोई अन्य प्रचार के लिए नहीं आया, ना ही उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने बिहार की यात्रा की। ये एक बड़ा कारण बिहार में कांग्रेस के हार का हो सकता है। शायद इस कारण के बाद कांग्रेस अब अन्तिरिक बैठक कर इस हार की ज़िम्मेदारी किसी न किसी को देगी ज़रूर।
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