आदिल अहमद
कासगंज. 10 से 19 वर्ष के किशोर और किशोरियां, जो भारत की आबादी का लगभग पांचवा हिस्सा हैं, वे व्यस्क होने की अपनी यात्रा के दौरानमहत्वपूर्ण सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और जैविक परिवर्तनों से होकर गुज़रते हैं। उनके अनुभवों, उनके लिए उपलब्ध संसाधन और सहयोग, उनके व्यवहार, क्षमता और स्वास्थ्य पर आजीवन प्रभाव डालते हैं। उदया अध्ययन पॉपुलेशन काउंसिल द्वारा किया गया अपने-आप का पहला लोंगीटूडिनल अध्ययन है जो बताता है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में किशोर और किशोरियां कैसे व्यस्कता की ओर बढ़ रहे हैं। इस अध्ययन के पाए गए निष्कर्ष एक ऑनलाइन सेमिनार में प्रस्तुत किए गए।
अध्ययन के आंकड़ों को प्रस्तुतकरने के बाद किशोरावस्था पर होने वाले निवेश को वरीयता देने के मुद्दे पर भी चर्चा हुई। कार्यक्रम के वक्ताओं ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य, लिंग, सामाजीकरण, डिजिटल साधन की उपलब्धी और जीवनयापन से जुड़े अवसर वे कारक हैं जो वयस्कता में एक स्वस्थ्य और उपयोगी जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस कार्यक्रम के वक्ताओं में किशोर स्वास्थ्य और कल्याण-लैंसेट कमिशन के चेयरमैन प्रो..जॉर्ज पैट्टन, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद में किशोर शिक्षा कार्यक्रम की संयोजक प्रो. सरोज बाला यादव, विश्व स्वास्थ्य संगठन में किशोर यौन और प्रजनन के वैज्ञानिक डॉ. वेंकटरमन चंद्रमौली, कटकथा पपेट आर्ट ट्रस्ट के श्रीअविनाश कुमार, डेविड एंड लूसिल पैकार्ड फाउंडेशन केश्रीआनंद सिन्हा और बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन कीकी डॉप्रिया नंदा शामिल थी।
प्रोफेसर यादव ने जोर दिया कि सरकार की विभिन्न एजेंसियों और विभागों को अलग-अलग काम करने के बजाय एक साथ काम करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम देखते हैं कि कई तरह के पहल की गई हैं लेकिन प्रक्रियाओं पर ध्यान देने की जरूरत है।”
यूनिवर्सिटी ऑफ मेलबॉर्न में किशोरावस्था स्वास्थ्य शोध के प्रोफेशनल फेलो जॉर्ज पैटन ने उदया अध्ययन के उस हिस्से पर जोर दिया जहां पाया गया कि किशोरियों के लिए किशोरावस्था के वयस्कता की उम्र में पहुंचने तक में गर्भवस्था की चुनौतियां बरकरार रहती हैं। “युवतियां शिक्षा, रोजगार, मानसिक स्वास्थ्य, गुणवत्तात्मक जीवन और पोषण के पैमानों पर पिछड़ रही हैं। जबकि यह किशोर एवं किशोरियों के सामाजिक और भावनात्मक विकास के लिए जरूरी है।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन में किशोर यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के मुख्य डॉ. वेंकटरमन चंद्रमौली ने कहा, “किशोरियां अपने जीवन में कुछ करना चाहती हैं, लेकिन वे अलग-अलग तरह के बंधनों में खुद को शक्तिविहीन पाती हैं, और इसी स्थिति को हमें बदलना है।” उन्होंने हर वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर किशोरावस्था के विषय पर राष्ट्रीय तकनीकी बैठक आयोजित करने की मांग की।
पॉपुलेशन काउंसिल भारत के डायरेक्टरडॉ.निरंजन सग्गुरटी ने कहा, “उदया अध्ययन परिवार, समुदाय और सरकारी कार्यक्रमों पर ज़रूरी जानकारी प्रदान करता है जो किशोरों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और कुछ कमियों को उजागर करता है जिन्हें संबोधित करने की आवश्यकता है।
हालांकि इस अध्ययन में बिहार और उत्तर प्रदेश में रहने वाली भारत की एक-चौथाई किशोरों की आबादी शामिल है, देशभर में इस तरह के औरअध्ययन सरकार को किशोरावस्था से वयस्कता की ओर कामयाब परिवर्तन के लिए ज़रूरी और ठोस साक्ष्य प्रदान कर सकते हैं।”
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