तारिक आज़मी
कासगंज में शराब माफियाओ के द्वारा एक पुलिस टीम पर हमला हुआ। एक सिपाही शहीद हुआ। मौके पर जिस प्रकार के हालात पुलिस को बाद में मिले उसको देख कर लगा कि शराब माफियाओं ने दरोगा को अपमानित भी किया होगा। दरोगा अपनी ज़िन्दगी और मौत से जूझ रहा है। पुलिस ने एक मुठभेड़ में शराब माफिया मोती के भाई को मार गिराया। शहीद सिपाही देवेन्द्र सिंह पंच तत्व में विलीन हो चुके है। परिजनों के आंसू अभी भी नही सूखे होंगे। चिता की राख ठंडी भी नही पड़ी होगी।
सिपाही देवेंद्र सिंह आगरा जिले के गांव नगला बिंदू (थाना डौकी) के रहने वाले थे। वह कासगंज जिले के थाना सिढ़पुरा में तैनात थे। सिपाही देवेंद्र सिंह के पिता महावीर सिंह किसान हैं। देवेंद्र उनके इकलौते बेटे थे। जवान बेटे की मौत से उनको गहरा सदमा लगा है। शहीद की पत्नी, मां और बहन का भी रो-रोकर बुरा हाल है। देवेंद्र की मासूम बेटियां पिता की शहादत से अंजान है। बड़ी बेटी वैष्णवी तीन साल की, जबकि छोटी बेटी महज तीन महीने की है। मां को रोता देख बेटी वैष्णवी बार-बार यही पूछ रही है कि पापा घर पर कब आएंगे। देवेंद्र परिवार में इकलौते बेटे थे। दो महीने बाद उनकी बहन की शादी होनी है। उससे पहले ही घर का चिराग बुझ गया। गांव में मातम छाया हुआ है। मासूम बेटियां आज भी अपने पिता के लौटने की राह देख रही है।
बिकारु कांड में मीडिया ने अपना अहम् रोल निभाया था और घटना को जग ज़ाहिर किया था। बिकारु के सभी गुनाहगार या तो सलाखों के पीछे है या फिर ख़ाक हो चुके है। मीडिया में ये कांड जमकर उछला था। सभी को गुस्सा था। पुलिस कर्मियों के शहादत पर गुस्सा था। मगर ठन्डे दिमाग से थोडा सोचे। इस घटना में सफेदपोश कितने बेनकाब हुवे। चंद पुलिस कर्मियों और अधिकारियो को छोड़ कर सफ़ेदपोश कौन बेनकाब हुआ। शायद कोई भी नही। बिना जयचंद के कोई भी किला दुशमन फतह नही कर सकता। मगर इस जयचंद का असली संरक्षक कौन है जिसने जयचंद को बनाया ये आज तक ज़ाहिर नही हो पाया है।
इसी तरह अगर आप ध्यान से देखे तो कासगंज में शराब माफियाओ की हिम्मत सातवे आसमान पर बुलंद है। पहली कोई ये घटना नही है जिसमे ऐसा कुछ हुआ। हां ये ज़रूर है कि ये पहली बार कासगंज में हुआ कि हमले में पुलिस कर्मी शहीद हो गए। इसके पहले भी हौसला बुलंद शराब माफियाओं ने बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया है। कुछ घटनाओं का ज़िक्र करते चलते है। जिससे ज़ाहिर होगा कि जिले में शराब माफियाओं के हौंसले काफी बुलंद रहे हैं। शराब माफिया ही नहीं भूमाफिया भी पुलिस पार्टी पर हमले करते रहे हैं। 17 अगस्त 2019 को सिकंदरपुर वैश्य के नवाबगंज नगरिया में अवैध शराब कारोबारियों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर दिया था और फायरिंग कर आरोपी को छुड़ा लिया था। 17 अप्रैल 2019 को पटियाली के जासमई में पुलिस पार्टी पर हमला किया था। जिसमें कई पुलिसकर्मी चोटिल हुए थे। 11 जून 2019 को भरगैन में गो-तस्करों को पकडने गई पुलिस पर हमला कर दिया गया। 1 जुलाई को सहावर के दमपुरा में मुल्जिम पकडने गई पुलिस पर हमला किया गया। 22 अगस्त 2020 को गंजडुंडवारा के नूरपुर में सरकारी जमीन पर कब्जा छुड़ाने गई पुलिस पर हमला किया गया।
इस सभी घटनाओं पर पुलिस वर्क आउट देखे। गौर करेगे तो कभी कोई सफेदपोश कार्यवाही के जद में नहीं आया। बिना सफेदपोश संरक्षण के इन बाहुबलियों को इतना बल नही मिल सकता है कि ऐसी घटनाओं को अंजाम दे सके। आखिर कौन सी मज़बूरी होती है कि सफ़ेद पोशो पर कार्यवाही शुन्य नज़र आती है। कोई सफेदपोश कभी इस प्रकार की घटनाओं में संरक्षणदाता के तौर पर पुलिस के लिखा पढ़ी में आया हो मुझको तो याद नही आ रहा है। बिकारु कांड के नेशनल लेवल की न्यूज़ होने के बाद कुछ खाकी और अपराधियों का गठजोड़ सामने आया, मगर विकास दुबे के इतने बड़े साम्राज्य में सफेदपोशी का संरक्षण सामने नहीं आया।
हम भले ही पुलिस की लाख बुराइया करे। पुलिस पर लाख आरोप लगाये। बेशक कलम से पुलिस की तारीफ नही बल्कि उनके कामो की समालोचना ज़रूर होती रहती है। मगर एक कडवी सच्चाई ये भी है कि हम अपने सभ्य समाज को एक मिनट के लिए भी पुलिस के बिना अनुभव नही कर सकते है। पुलिस के इकबाल का ही दम्भ होता है कि हम अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाते है। ये भी हकीकत है कि हमारा विश्वास हमारे कानून व्यवस्था पर बहुत तगड़ा है।
एकदम पुख्ता भरोसा हमको अपनी कानून व्यवस्था पर है। लाख कहा जाए कोर्ट कचहरी में सालो गुज़र जाते है। मगर आज भी हम किसी विवाद में कोई एक लफ्ज़ निकालते है तो वह होता है “आई विल सी यु इन द कोर्ट।” हम जानते है कि अदालत से आज नही तो कल हमको इंसाफ मिलेगा। हम किसी भी बड़े विवाद में तुरंत पुलिस का सहारा लेते है। पुलिस का इकबाल है जो जंगलराज नही है। मगर इस तरीके के हमलो में पुलिस खुद का ही इकबाल तलाश कर रही है। शायद इस बार इन शराब माफियाओं के सफ़ेदपोश संरक्षण का पर्दाफाश हो सके। इसको जयचंद कहे या फिर कुर्दोग्लो इनका खुलासा तो होना ही चाहिए ताकि समाज में छुपे ये जयचंद अथवा कुर्दोग्लो सामने आ सके।
नोट – कुर्दोग्लो नाम का एक तवारीखी विलेन रहा है। सल्तनत-ए-उस्मानिया के शुरूआती दौर में ये शख्स सल्तनत का करीबी था, मगर दुश्मनों को सल्तनत-ए-उस्मानिया के अन्दर की खबर देता रहता था।
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