आदिल अहमद
कानपुर. कानपुर के मसवानपुर के गंज शहीदा कब्रिस्तान में अली को सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया। बाद नमाज़ जुमा तमाम शरियत के एह्तेमाम से उनका दाफीन हुआ। अब आप पूछेगे कि कौन अली ? भाई अली हसन, वही अली हसन जिसने वालिद ने 1965 में भारत पकिस्तान के जंग में पकिस्तान का अकेले गुरुर तोड़ दिया था। एक गन माउनटेड जीप से अजय समझे जाने वाले पकिस्तान के पेटेंट टैंको को इस बहादुर अब्दुल हमीद ने मिटटी के खिलौनों की तरह अकेले तोड़ डाला था। एक दो नहीं बल्कि अपनी महज़ 32 साल की उम्र में शहादत पाने वाले गाजीपुर जनपद के धामपुर गाव का ये बहादुर लाल 8 टैंको को तबाह किया था।
वीर अब्दुल हमीद के पोते और अली हसन के बेटे शाहनवाज आलम ने बताया कि गुरुवार रात नौ बजे ऑक्सीजन का सिलिंडर खत्म हो गया था। डॉक्टरों ने खुद सिलिंडर की व्यवस्था करने को कहा, हम सिलिंडर रिफिल कराने को भटक ही रहे थे। तभी फोन पर उनकी मौत की खबर आई। उन्होंने आरोप लगाया कि हैलट में सही इलाज नहीं मिला।
अली हसन के परिवार में पत्नी फरीदा नसरीन, बेटा सलीम जावेद, तनवीर और बेटियां राबिया, सलमा और गज़ाला हैं। इनका निवास मसवानपुर में हैं। यह 2016 में ओएफसी से सेवानिवृत्त हुए थे। अब आप सोच सकते है कि अगर परिजनों का आरोप सही है तो हैलेट जैसे अस्पताल में वीर अब्दुल हमीद के बेटे को जब सुविधाए नही मिल पाई तो आम नागरिको का क्या होता होगा।
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समझ मे नही आ रहा कि जब 1965 कि जंग में अब्दुल हमीद नामक कोई शक्श ही नही था उस माउंटेड एन्टी टैंक तोप गाड़ी पर तो फिर इनको किसने इस तरह से हीरो बनाया क्योकि
भारतीय सेना का एक बीस वर्षीय नौजवान, सैनिक चंद्रभान साहू। ( पूरा पता– चंद्रभान साहू सुपुत्र श्री मौजीराम साहू, गांव रानीला, जिला भिवानी ( वर्तमान जिला चरखी दादरी ), हरियाणा। ) सच्चाई क्या है इस बात की जानकारी पूरा भारत जानना चाहता है,क्योकि अगर 1965 में कोई मुस्लिम फौज भारतीय सेना में थी तो फिर गद्दारी किया तो फिर वीर अब्दुल हमीद को हीरो बनाकर पेश करने वाले नेहरू और उस समय के सेना अध्यक्ष की जांच क्यो नही की गई।।
और अगर चंद्र भान साहू जी की कहानी फर्जी है तो ईस देश के इतिहास को दूषित करने वाले इस गूगल की साइट पर कोई कार्यवाही क्यो नही की जाती।।