तारिक़ आज़मी
आज काका बड़े फुर्सत से आये और खूब गुस्सा लग रहे थे। ऐसा उनको देखने से प्रतीत हो रहा था कि आज काकी हउक दिहिन होगा। वैसे काका बताये या न बताये मगर हमको पता है कि काका को काकी से डर बहुते लगता है। काकी अगर कह देंगी कि रसगुल्ला चाही, तो फिर क्या कहना, चाहि त चाहि ओकरे बदे काका खुदे रसगुल्ला बना दे। मगर चाही त चाही। काका ने आते ही सबसे पहले न सलाम का जवाब न दुआ, पहले खुद के हाथ में सेनेटाइज़र लगाया और फिर मास्क को और भी दुरुस्त करते हुवे कहा कि “का रे बबुआ, बढ़िया वाला सेनेटाइज़र न है का।” वैसे तो अमूमन काका रजनीगंधा ही मांगते थे मगर आज सेनेटाइज़र मांग बैठे तो पहले हम काका का डिजिटल थर्मामीटर से बुखार चेक कर बैठे।
फिर क्या था काका के अन्दर का काका जाग उठा और पीठ पर धर दिहिन धम्म से। और तुरंते हाथ में फिर सेनेटाईज़र लगाने लगे। हमको हंसी छुट पड़ी और कहा का काका, आज बड़ा साफ़ सफाई कोई बात है का। ड्राज़ खोल कर कल ही मंगवाया हुआ एक प्रसिद्ध कंपनी का सेनेटाईजर पॉकेट साइज़ काका को देते हुवे कहा कि अब इससे बढ़िया तो मेरी जानकारी में नही आता है काका। आपके आता होगा तो बताना। काका ने जेब के हवाले सेनेटाईजर करते हुवे अर्ज़ किया तो उनकी बात सुन कर हम भी भौचक्के रह गए। हमेशा तुर्रम खान के तरह भौकाल देने वाले काका आज कोरोना से डरे हुवे लगे। कहने लगे बबुआ, बड़ा बच के रहना। तोहार काम अईसा है कि जावे के पड़ेगा। मास्क एकदम्मे न उतारना और चौचक सेनेटाईज़र का इस्तेमाल करना।
अमूमन काका हंसी मजाक की बात करते थे, आज इतनी गंभीर बात कर रहे थे तो वाकई हमको डर लगा कि कही काका सटक तो नही गए है। वैसे भी 80 लग चूका है। तो काका से पूछा काका कोई दिक्कत है का, बताओ डाक्टर के यहाँ चले। काका बोले नहीं बबुआ। आजे सुबह सुबह चाय पियत पियत टीवी देखा। देखा बड़ी बुरी हाल है इंदौर में। ऊहा बहुत मरीज़ ई कोरोना का मिल रहे है। अस्पताल में जगह नही है। ईहा बनारस में भी रोज़े मिल रहे है। मगर लोग है कि देखो कऊनो फिकर नही है। बिना मास्क के घूम रहे है। उनके कोरोना से डर नही है बबुआ, उनके डर है तो खाली पुलिस के डंडा से। यही बदे मास्क पुलिस के देख के लगा लिहे और आगे जाके उतर जावे है।
हमने कहा हां काका, काफी दिक्कत का समय है। ये वैश्विक महामारी है। मगर आज आपको इतनी गंभीर बात करते देख के डर लग गया। तो काका बोले ए बबुआ ई देखो, हम सुबह सब्जी मण्डी गए रहे। तुम्हार बदे भिन्डी लाये है और तुम्हारी काकी से कहा है रसा वाली पकाने को। तुमहू को पसंद है न। ऊहा केहू कुछ दुरी नाही रखे रहा। सब एक दुसरे पर चढ़े पड़े है। अईसा लग रहा था कि जईसे कोरोना के दुरे से ई लोग देख के पहचान लीहे, या फिर कोरोना उनकर रिश्तेदार है, जो उन्हें आकर मिल के चला जायेगा। देखो न इंदौर का का हाल हो गया है।
हमने कहा हां काका, कोरोना काल में अब इंदौर के हालात नाजुक होते जा रहे हैं। अस्पतालों में बेड नहीं हैं, ऐसे हालात में अस्पताल के बाहर मरीज इलाज के इंतजार में ही मौत के आगोश में जा रहे हैं। इस सम्बन्ध में वहा के एक पत्रकार ने कुछ वीडियो भी ट्वीट किया है। ये वीडियो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के सामने का है, जहा मौत का दर्दनाक मंज़र देखने को मिला। जिसने भी यह दर्दनाक मंजर देखा, सिहर गया। अस्पताल के बाहर इलाज के अभाव में दो लोगों की जान एम्बुलेंस में ही चली गई। परिजन बेबस थे।लाख प्रयास किए पर परिजन अपनों की जान नहीं बचा पाए।
काका, इंदौर शहर में 1104 आईसीयू में 882 यानी लगभग 80 प्रतिशत से ज्यादा आईसीयू भरे हुए हैं। शुक्रवार दोपहर गौरव लखवानी को उनके परिजन और देवेंद्र बिल्लोरे को लेकर उनके परिजन अस्पताल पहुंचे थे। बताया जा रहा है कि लगभग 3 बजे से इलाज की तलाश में भटकते हुए दो एम्बुलेंस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल पहुंचीं। दोनों मरीज अलग-अलग एम्बुलेंस में थे। परिजन बदहवास थे पर अस्पताल में बेड नहीं मिला। इलाज के लिए परिजन चिल्लाते रहे, बदहवास यहां से वहां दौड़ते रहे और इंतजार करते रहे कि कोई बेड खाली हो और इलाज मिले, सच बताऊ काका, ये अजीब इंतज़ार था जहा एक जान बचाने के लिए इंतज़ार था कि दूसरी शायद कोई जान चली जाए जिससे बेड खाली हो जाए। लेकिन दोनों ही मरीजों ने अपने परिजनों के सामने दम तोड़ दिया।
काका हाल ऐसा था कि मरीजों के परिजन जिन्होंने अस्पातल में अपने परिजन को भर्ती करवाने के पूरे प्रयास किए वे इधर उधर दौड़ते रहे। दिपेश बिल्लोरे अपने पिता को लेकर पहुंचे उन्होंने बताया कि पहले गेट पर खड़े रहे, फिर घंटों कागज मांगते रहे, यह लाओ, वह लाओ। बेटा परेशान था और पिता की सांसें शरीर छोड़ रही थीं , पल्स चेक करो, ऑक्सीजन लगाया हुआ है, बेटा बार-बार पापा-पापा चिल्ला रहा है, पापा को छोड़ अस्पताल में दौड़ लगा रहा है, पर ना जगह मिली ना पिता की सांस रही,
काका, एक दूसरी एंबुलेंस में अपने परिवार के सदस्य को लेकर पहुंची महिला बदहवास थी। पति को बचाने के लिए बार-बार ईश्वर को याद कर रही थी। लोग चिल्ला रहे थे कि ऑक्सीजन लगाओ , कोई ऑक्सीजन जरूर लेकर आय, लगाया भी, पर सांसें और उम्मीद अस्पताल की चौखट पर टूट गई।
हमेशा हसने वाले काका की आँखों की पलके आज भीगी हुई दिखाई दे रही थी। उन्होंने बड़े भारी लफ्जों में कहा कि बबुआ, इसका सबक कब अपना काशी सीखेगा। कब लोग बाग़ चेतेगे। अब देखों न सीएमओ साहब बनारस के कोरोना पॉजिटिव हो गये। केजीएमसी अस्पताल के 40 डाक्टर कोरोना संक्रमित हो गये। मगर बनारस में आज भी लोगो को कोरोना से डर नही लग रहा है। लोग बेमतलब का टहल रहे है। आखिर लोगो को अपनी जान की न सही कम से कम अपने परिवार की सुरक्षा तो ख्याल रखना चाहिए। काका के शब्दों को थोडा सरल भाषा में कह देता हु, हे काशी वासियों बेशक आपको आस्था अटूट है। ये शहर ही ज्ञान का अथाह समुन्द्र है। फिर भी इस कोरोना से सम्बन्धित सावधानी का ज्ञान न हो ये सम्भव नही है। अगर आप केवल चालान के डर से अथवा फिर पुलिस के डंडे के डर से मास्क लगाया है तो प्लाज़, बराए मेहरबानी कम से कम अपने परिवार का ख्याल रखे। सुरक्षित रहे। मास्क का प्रयोग करे। हाथो को बार बार धोये। ध्यान रखे आप अपने परिवार की वह अमूल्य धरोहर है जिसके बल पर पूरा परिवार खड़ा है।
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