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लखनऊ : अल्लाह के घर से उसके बन्दों की हो रही मुफ्त खिदमत ताकि सलामत रहे सांसे, मस्जिदों से मिल रहे मुफ्त ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर

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जावेद अंसारी

लखनऊ। हर कोई समझ रहा है कि हमारा रब हमसे नाराज़ है। उसकी नाराज़गी ही तो है कि उसने अपने घरो में इंसानो को आने से मना कर दिया है। चाहे वह मस्जिद हो या मंदिर, गिरजा हो या गुरुद्वारा, हर जगह आम इंसानों को आने की मुमानियत हो गई है। सभी अपने तरीके से रब को मनाने की कोशिश कर रहे है। वैसे रब को मनाने का सबसे आसन रास्ता उसके बन्दों की खिदमत करना होता है। शायद ये बात अब इंसानों के समझ आ गई है और मदद के काफी हाथ आगे बढ़ रहे है।

इसी क्रम में गंगा जमुनी तहजीब की एक नायाब नजीर लखनऊ की मस्जिदे पेश कर रही है। लखनऊ में मस्जिदों से कोरोना के मरीजों को मुफ्त में ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर दिया जा रहा है। ताकि अल्लाह के बंदे सुकून की चंद साँसे ले सके। इसके लिए भी मस्जिद कमेटियों ने आरक्षण लागू किया हुआ है। ये आरक्षण जाति आधारित नही बल्कि धर्म आधारित है। इस आरक्षण में 50 फीसद ये मुफ्त सुविधाये गैर मुस्लिमो के लिए अरक्षित है। ये नियम बनाया है कि 50 फीसदी से ज्यादा ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर गैर मुस्लिम मरीजों को दिए जाएंगे। ताकि कोई ये न कह सके कि मस्जिद से सिर्फ मुसलमानों की मदद की जा रही है। लखनऊ की लालबाग जामा मस्जिद में दुआ भी हो रही है और दवा भी कर रहे हैं। नमाजियों की कतारों के साथ ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर, पीपीई किट, ऑक्सीजन रेगुलेटर के लिए भी लाइनें साफ देखी रही हैं।

मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष जुनून नोमानी ने कहा कि काफी बांट चुके हैं और कुछ-कुछ बंटता रहता है। अभी और आएंगे। लोग यहां पर आते हैं और रोने लगते हैं। रात में 3-4 बजे भी हमारे पास लोगों के फोन आते हैं और मदद की गुहार लगाते हैं। हम ऐसे जरूरतमंदों की मदद में लगे हुए हैं। महज़ कुछ कागज़ी ज़रुरियात को पूरा करना होता है जैसे ले जाने वाले के आधार कार्ड की कापी, डाक्टर के पर्चे की कापी, मोबाइल नम्बर। इन औपचारिकताओ को पूरी करने के बाद उन्हें एक ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर मिल जाता है। लोग घबराए हुवे आते है और खुश होकर जाते है।

नोमानी का कहना है कि शहर में हिन्दुओं की संख्या भी मुस्लिमों से ज्यादा है, लिहाजा ये बीमारी भी उनमें ज्यादा है। गैर मुस्लिमों के लिए 50 फीसदी मदद आवंटित करने का यही मकसद है। नोमानी का कहना है कि ये कोई बड़ी बात नहीं है, हम सिर्फ इंसानों की मदद कर रहे हैं। हम हिन्दू-मुसलमान नहीं देख रहे हैं। हर जरूरतमंद आदमी का यहां इस्तकबाल है। बेशक बेपनाह तकलीफों के इस दौर में, एक ऐसे वक्त में जब हर तरफ मौतें हैं, आहें हैं, सिसकियां हैं….। तब इंसान की खिदमत करने से बड़ी इबादत क्या हो सकती है। रब को राज़ी करने का ये काम आम इंसानों की खिदमत है। बेशक ऐसे कामो की तारीफे भी जमकर हो रही है। मस्जिदों में इस वबा (महामारी) से निजात की भी दुआ हो रही है।

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