तारिक़ आज़मी
वाराणसी। रात का दस पार करने को बेताब था। मेरे एक करीबी दोस्त की मासूम बच्ची एक निजी चिकित्सालय में एडमिट है। इनसाइड ब्लीडिंग के कारण मासूम बच्ची को को ब्लड की ज़रूरत थी। घर की बात होने के वजह से ब्लड डोनेट करने के लिए मैं खुद भी गया था। रात का लगभग दस बजने वाला था। तभी व्हाट्सएप पर कुछ ग्रुप में मैसेज एक यूनिट ए पॉजिटिव ब्लड की आवश्यकता के लिए गुहार दिखाई दी। मैंने उस मैसेज को देखा और खुद के रिसोर्सेस से पहले इस बात की जानकारी हासिल करने लगा कि हमारे जानने वालो में कौन इस समय ब्लड दे सकता है। खुद के डोनेशन हेतु लाइन में लगे लगे लगभग आधे घंटे बीत गए और मेरा नम्बर भी आ गया था। मगर कोई डोनर नही मिल रहा था।
राजीव सिंह को खुद के सामने देख कर मैं भी चौक गया था। मैंने पहला ही लफ्ज़ यही निकाला “क्या हुआ खैरियत तो है।” राजीव सिंह के चेहरे पर लगा मास्क उनकी हया के साथ मुस्कान को ढक रही थी। हमारे ठीक बगल में ही वह लेट गए। लेटने के बाद उन्होंने बताया कि व्हाट्सएप पर सन्देश एक डोनर के लिए देखा था। मैं तपाक से बोल पड़ा ओह वह सन्देश तो मैंने भी देखा था और उसका प्रयास किया था। राजीव सिंह ने कहा बस उसी लिए आ गया।
इसके बाद जानकारी मिली कि ब्लड की जिसको ज़रूरत थी वह डीसीपी ऑफिस वरुणा में तैनात हेड कांस्टेबल हरेंद्र कुमार थे। उनकी पत्नी एक निजी अस्पताल सारनाथ में भर्ती हैं, उनकी तबियत अधिक बिगड़ गई, और उन्हें तत्काल रक्त चढ़ाये जाने की आवश्यकता थी। मैंने राजीव सिंह से कहा कि खुद की सेहत का ख्याल करे हुजुर, अभी महज़ तीन महीने बीते है आपने दिया था ब्लड मेरी जानकारी में है वो बात। इस राजीव सिंह ने कहा कि भाई ज़रूरत उस महिला को अधिक है।
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