अफगानिस्तान में आया तालिबान राज, भारत की फिक्रमंदी लाज़िम है
तारिक आज़मी
अफगान में सत्ता परिवर्तन या फिर सपाट शब्दों में कहे तो सत्ता कब्ज़े के तुरंत बाद लिखे इस लेख के द्वारा अफगानिस्तान में हुवे तख्ता पलट को ध्यान में रखकर भारत की चिंताओं पर विचार व्यक्त किया गया है। बेशक काफी चिंतित करने वाला वक्त है कि महज़ 12 घंटे पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति (लेख लिखे जाने तक पूर्व राष्ट्रपति) अशरफ गनी अफगानिस्तान को मजबूत बनाने की बात कर रहे थे। मगर खुद इतने कमज़ोर निकले की तालिबान का सामना करने के पहले ही अपना मुल्क छोड़ कर चले गए।
यानि अफगानिस्तान अब पूरी तरीके से तालिबान के कब्ज़े में है। तालिबान ने आज दोपहर में ही अपना वक्तव्य जारी करके कहा है कि कोई बदले की कार्यवाही नही होगी और माफ़ी लागू होगी। मगर हम आप तालिबानियों के जबान पर भरोसा कैसे कर ले, इसका जवाब न हमारे पास है और न ही आपके पास होगा। अशरफ गनी जिस प्रकार चुपचाप काबुल को थाल में परोस कर तालिबान के हवाले करके खुद अपने सहयोगियों सहित चले गए है, यह उनकी हिम्मत और नीयत को जग ज़ाहिर करता है। अशरफ गनी के सरकार का हिस्सा रहे अब्दुल्लाह अब्दुल्ला ने कहा है कि अशरफ गनी ने क़तर से अपना इस्तीफा तालिबान को भेज दिया है।
बहरहाल, सत्ता परिवर्तन तो इसको कहेगे नही बल्कि उसको तख्ता पलट या फिर जबरी सत्ता हथियाना कह सकते है। 12 घंटे पहले तक सेना को मजबूत बनाने की बात कहने वाले अशरफ गनी देश छोड़ कर कही चले गये है। और खुद का इस्तीफा भी क़तर से भेजा है। समझा जा सकता है कि किस मजबूती से सेना को मजबूत बनाने की बात अशरफ गनी ने किया था। अशरफ तो अपना मुल्क छोड़ कर चले गए है, मगर मुसीबत तो आम नागरिको की है।
इस जद्दोजेहद में खुद को और खुद के परिवार को सुरक्षित ठिकानों पर ले जाने की जल्दी में सोमवार सुबह भी हजारों की संख्या में लोग काबुल से बाहर भागने में लगे रहे। एक-एक वाहनों पर 20-25 सवार लोग, बस किसी तरह सुरक्षित ठिकाने के लिए बदहवास तैयारी करते दिखे। काबुल हवाई अड्डे पर भी भारी भीड़ रही और लोग एय़रपोर्ट अधिकारियों से वहां से बाहर निकालने की गुजारिश कर रहे हैं। वहीं अमेरिका ने तालिबान से सड़कों, एयरपोर्ट और सीमावर्ती प्रवेश मार्गों से बाहर जा रहे लोगों को कोई नुकसान न पहुंचाने की चेतावनी दी है। अमेरिका की अगुवाई में 65 देशों ने इसको लेकर एक साझा बयान जारी किया है। इस बीच कल यानी रविवार को देर रात भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकन फौजों ने हवा में गोलियां चलाई थी।
एएफपी के सूत्रों के मुताबिक, सोमवार सुबह काबुल एयरपोर्ट पर हजारों के हुजूम के बीच हंगामा हो गया, जिसके बाद भीड़ को तितर-बितर करने के लिए अमेरिकी फौज ने हवा में गोलियां दागीं। एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि उसे यह देखकर बहुत बुरा लग रहा है कि वो चेतावनी देने के लिए हवा में गोलियां दाग रहे हैं। बहरहाल भारत और बाकि देशो के लिए अब फौरी तौर पर चुनौती ये है कि वह अपने राजनयिकों और नागरिकों को वहां से कैसे निकालेंगे। अमेरिका ने पांच हज़ार, यूके और कनाडा ने कुछ सौ सैनिक इस काम के लिए भेजे हैं। सूत्रों के हवाले से मिल रही जानकारी के मुताबिक दिल्ली में बैठकों का दौर चला है। हमे ये मान कर चलना चाहिए कि अपने दूतावास और नागरिकों को निकालने के विकल्पों पर इस बैठक में विचार हुआ होगा। लेकिन हो सकता है ये विकल्प क्या था ये तभी सामने आए जब वहां से भारत अपने नागरिक निकाल ले। भारत की काबुल दूतावास से जारी एडवाइज़री को अगर देखें तो साफ है कि भारतीय होना वहां ख़तरे में डालने वाली पहचान है।
यही नहीं भारत के लिए अगली चुनौती होगी नीचता के हद को पार कर चूका पाकिस्तान। पाकिस्तान के तरफ तालिबान झुका हुआ है। अब तालिबान सरकार और अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल पाकिस्तान भारत में आतंकी हमलों के लिए करने की कोशिश कर सकता है। यहाँ ये भी बताते चले कि वैसे तो तालिबान ने साफ़ साफ कहा है कि वो अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल किसी और देश के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा। लेकिन ये तालिबान है, इसकी बात पर भरोसा करना एक बहुत बड़ी ग़लती होगी। ध्यान देना होगा कि अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद पाकिस्तान लौटे लड़ाकों का इस्तेमाल भी पाकिस्तान कश्मीर में आतंक के लिए कर सकता है। वैसे इससे भी इंकार नही किया जा सकता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का क़ब्ज़ा पाकिस्तान को भी भारी पड़ सकता है।
भारत के सामने एक सवाल ये भी है कि क्या वो तालिबान की सरकार को मान्यता देगा? अब तक सीधे तौर पर उसने नहीं माना है कि तालिबान से बातचीत हुई है। लेकिन क़तर में बातचीत में भारत दूसरे 11 देशों के साथ शामिल रहा है। इस बार ज़ब तालिबान अपनी सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता चाह रहा है तो क्या भारत अपना रुख़ बदलेगा? और अगर भारत ये रुख़ बदलता है तो क्या पाकिस्तान के असर को कम करने में कोई कामयाबी मिलेगी? वैसे इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए वक्त तो चाहिए होगा। फिलहाल अफगानिस्तान में बदलते हालात पर सभी की नज़रे है। भारत की कोशिश है कि वह फ़ौरन अपने नागरिको को निकालने का मिशन चलाये।