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शिक्षक दिवस पर तारिक़ आज़मी की मोरबतियां : उस्ताद के एहसान का कर शुक्र ‘मुनीर’ आज, की अहल-ए-सुख़न ने तिरी तारीफ बड़ी बात

तारिक़ आज़मी

आज जब आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे तो शिक्षक दिवस की बधाइयो का दौर चल रहा होगा। आज शिक्षक दिवस है। याने एक दिन उस्ताद का। हकीकत में देखा जाए तो एक दिन नही बल्कि पूरी ज़िन्दगी भी उस्ताद के अजमत का बखान करने में कम पड़ेगी। मशहूर शायर मुनीर शिकोहबादी ने क्या खूब फरमाया है कि उस्ताद के अहसान का कर शुक्र “मुनीर” आज, की अहल-ए-सुखन में तिरी तारीफ बड़ी बात है। अब बात लफ्ज़ अहल-ए-सुखन के तरफ देखे तो इसके मायने तलाशने के लिए आप सुफिनामे का रुख कर सकते है। सुफिनामे में अहल-ए-सुखन शायर के लिए लफ्ज़ इस्तेमाल किया गया है।

तारिक आज़मी
प्रधान सम्पादक

बहरहाल, हमारा आज उर्दू पर लेक्चर देने का एकदम इरादा नही है। दरअसल, उर्दू अदब के अल्फाजो को अगर आप पढ़े या सुने तो एक मिठास सी कानो में घुल जाती है। मुनव्वर राणा ने कहा है कि “हमने भी सवारे है बहुत गेसु-ए-उर्दू, दिल्ली में अगर आप है तो बंगाल में हम है।” बेशक उर्दू अल्फाजो की मिठास के चाशनी में एक अलग ही जायका आता है। बहरकैफ, आज उस्तादों का दिन है। हमारे मुल्क में आज के दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज हम अपने उस्तादों को बधाईया देते है। उन्हें तोहफे देते है। भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ। सर्वपल्ली राधाकृष्णन की यौम-ए-पैदाईश पर मनाया जाने वाला ये दिन हर एक तालिब-ए-इल्म के लिए ख़ास मायने रखता है। क्योकि इल्म का ताल्लुक ही उस्ताद से है।

आज के इस दिन को खास बनाने के लिए मैं अपनी ज़िन्दगी के सबसे अहम दो उस्तादों से मिलने गया। अपनी पुश्तैनी कब्रिस्तान में दोनों हमारे पहले उस्ताद याने मेरी वालिदा और वालिद अपनी अपनी कब्रों में आराम कर रहे है। हफीज जालंधरी ने कहा है कि “अब मुझे मानें न मानें ऐ ‘हफ़ीज़’,मानते हैं सब मिरे उस्ताद को।” मेरे दोनों पहले उस्ताद ने मेरा वजूद बनाया है। आज जो कुछ भी हु उनकी मशक्कतो और दुआओं के बदौलत ही तो हु। दोनों के कदमो का बोसा लेकर मैं वही उनके पैरो के पास ही बैठ गया। देर रात घुप सियाह अँधेरे में अपने माँ-बाप से मुलकात करने जाने में जो सुकून मिलता है वह नाकाबिल-ए-ब्यान है। “जिनके किरदार से आती हो सदाकत की महक, उनकी तदरीस से पत्थर भी पिघल सकते हैं।” अल्ताफ हुसैन हाली ने बहुत ही उम्दा शेर इस मौजु पर अर्ज़ किया है कि “मां बाप और उस्ताद सब हैं खुदा की रहमत, रोक-टोक उनकी हक़ में तुम्हारे नेमत”।

कुछ देर की मुलाक़ात के बाद मैं वापस बाहर आ चूका था। मेरे दिल में अमानत लखनवी का शेर चल रहा था कि “किस तरह ‘अमानत’ न रहूं ग़म से मैं दिल-गीर, आंखों में फिरा करती है उस्ताद की सूरत”। एक अरसा दराज़ के बाद आज भी दोनों मेरे उस्तादों जो मेरी कायनात थे कि सूरत मेरी आँखों में घुमती रहती है। “देखा न कोहकन कोई फरहाद के बगैर, आता नहीं है फ़न कोई उस्ताद के बगैर।” इन दोनों उस्तादों से मुलाक़ात से फारिग होकर अभी अपने गरीब-खाने पर ही आया था कि हमारे एक और उस्ताद का तभी फोन आ गया। वैसे तो वो हमारे एक बेहतरीन दोस्त भी है, मगर उन्होंने सिखाया बहुत है। काफी अर्सा गुज़र गया उनके दीदार को क्योकि वो आज कल बहरुनी मुल्क में ही रहते है। चंद लम्हों के बाद उन्होंने मुझसे फरमाईश कर डाला कि आज के तोहफे के तौर पर चंद अल्फाज़ अपने “दर्द” पर भी ब्या कर डालो।

वैसे दर्द की भी अपनी ही कुछ बात होती है। दर्द जब ख़ासतौर पर आपके तक पहुचने में अपनों को जरिया बनाता है तो वाकई में उस दर्द की कुछ और ही बात होती है। आप तिलमिलाते रहते है दर्द से अन्दर ही अन्दर, मगर होंठो पर बेगैरती की हंसी लिए रहना पड़ता है। बेशक रिश्ते बचाने के लिए आपको खुद ही दर्द सहना पड़ता है। दरअसल, जिस्मानी दर्द जब रूह को तकलीफ पहुचाने लगते है तो होंठो पर वाकई बेगैरती की हंसी रखना पड़ता है। बेशक आप उस दर्द का हिसाब बराबर कर सकते है। मगर दर्द के बदले दर्द आप सिर्फ रिश्तो के लाज की लाशो को कंधे पर उठाये कुछ नही बोलते है। हर एक शख्स को कभी न कभी ऐसे दर्द से दो चार होना पड़ता है।

मैं इस दर्द के अहसास को जानता हु। ख़ास तौर पर हमारे दोस्त और उस्ताद ने जिस दर्द की बात कही मैं उससे भी वाकिफ हु। वह भी एक ऐसे ही दर्द से दो चार आज कल हो रहे है। खुद के दर्द को छिपाते हुवे भी होंठो पर हंसी का लेप लगाने वाले हमारे ये हमदर्द हमसे इस दर्द का तस्किरा कर चुके है। हम उनकी ये कम किस्मती को समझ सकते है। दरअसल रिश्ते भी बड़े मुकद्दर से मिलते है जो वफादार हो। आज कल ऐसे ही दर्द से दो चार हो रहा हु जो जिस्मानी के साथ साथ रूहानी भी दर्द दे रहा है। हकीकत बताता हु कि काफी बेचैनी होती है। सब कुछ कर सकने की कुवत रखने वाले भी ख़ामोशी के दफ्तर में बैठ जाते है। बहरकैफ, ऐसे गैर-मुहज्ज़ब लोगो की भी क्या बात करना है। हम तो कना’अत वाले है। अपना तो कौल-ए-फैसल है कि दर्द जितना भी शिद्दत का हो मुस्कुरायेगे।

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