दल ही नही दिल के रिश्ते जोड़ने के लिए शिवपाल ने भाई मुलायम पर छोड़ी सपा और प्रसपा विलय की ज़िम्मेदारी
तारिक खान/आफताब फारुकी
लखनऊ। सिर्फ दल ही नही शिवपाल इस बार दिल भी मिलाने की पहल कर रहे है। सपा और प्रसपा गठबंधन अथवा विलय की ज़िम्मेदारी और शरायत की ज़िम्मेदारी अपने भाई मुलायम सिंह यादव पर छोड़ दिया है। भावनाओं के साथ उन्होंने पार्टी की छठे और सातवें चरण की सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा स्थगित कर दी है। साथ ही विभिन्न दलों से मिल रहे ऑफर को भी दरकिनार कर दिया है। उनकी नजर अब पूरी तरह सपा पर केंद्रित है।
माना जा रहा है कि 22 नवंबर को मुलायम के जन्मदिन पर प्रसपा के भविष्य का फैसला होने की उम्मीद है। शिवपाल चार चरण की रथयात्रा बेटे आदित्य के साथ निकाल चुके हैं। पांचवां चरण 14 को पूरा हो रहा है। छठा चरण 17 नवंबर और सातवां चरण 24 नवंबर से शुरू होना था, लेकिन इसे स्थगित कर दिया गया है। रथयात्रा के दोनों चरण स्थगित किए जाने के सियासी निहितार्थ हैं। सूत्रों का कहना है कि मुलायम सिंह की सेहत का हवाला देकर परिवार के वरिष्ठ सदस्यों ने दोनों से बात की है। ऐसे में शिवपाल यह कतई नहीं चाहते कि अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने की राह में वे रोड़ा बनें। इसलिए वे हर स्तर पर दरियादिली दिखा रहे हैं। ऐसे में उन्होंने अपने भविष्य का फैसला सपा संरक्षक पर छोड़ दिया है।
शिवपाल ने 12 अक्तूबर को मथुरा से सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा शुरू की थी। वे सपा से गठबंधन के लिए हमेशा तैयार रहे, लेकिन सम्मान की दुहाई देकर कई बार तल्ख भी हुए। यात्रा की शुरुआत में उन्होंने धर्म-अधर्म का जिक्र करते हुए कहा था कि अब रण होगा। गौरतलब हो कि दीपावली पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गठबंधन की बात साफ की और बीते दिनों पत्रकारों से बातचीत में भी अखिलेश ने कहा कि परिवार के बडे़ बुजुर्ग भी चाहते हैं कि चाचा साथ रहें। सपा अध्यक्ष ने जब सम्मान लौटाने की बात कही तो प्रसपा अध्यक्ष गठबंधन से दो कदम आगे बढ़कर अब विलय की बात करने लगे हैं।
इतना जरूर है कि वे सपा से अलग होते वक्त उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वालों को भी सम्मान दिलाना चाहते हैं। वे अपने वरिष्ठ साथियों को किसी भी कीमत पर बीच राह में नहीं छोड़ना चाहते हैं। वे कुछ लोगों को चुनाव मैदान में उतारने और कुछ को भविष्य में समायोजित करने की भी मांग कर रहे हैं। ऐसे में दोनों दलों में दखल रखने वाले रणनीतिकार नए फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं। ताकि दोनों दलों के मिलन के साथ नेताओं के दिल की दूरियां भी मिट जाएं और सियासी हिस्सेदारी भी मिल जाए।