ए0 जावेद संग शाहीन बनारसी
वाराणसी। वाराणसी शहर के सुन्दरीकरण की चल रही कवायद के बीच शायद नगर निगम भूल चूका है कि वाराणसी शहर में और भी इलाके है जहा से इस शहर का कारोबारी और एतिहासिक रिश्ता है। उन इलाको में भी रहने वाले इसी शहर के नागरिक है और उनका भी संवैधानिक अधिकार वही है जो सुन्दरीकरण के इलाको में रहने वाले शहरी नागरिको का है। वैसे तो लगभग 4 सालो से वाराणसी शहर अपनी सीवर की अजीब-ओ-गरीब समस्याओं से जूझ रहा है। विभाग किसी की सुनता नही यह बात शहर के अधिकतर पार्षद खुद कहते है।
अब बढ़ गई दिक्कत, लोग सड़क व्यवस्था के लिए आंसू बहा रहे थे और सीवर व्यवस्था खाराब हो गई। अब झेले लोग। सीवर सड़क पर बह रहा है। छ्लक के कम दिस साइड के तर्ज पर अब यहाँ के लोग इस रास्ते को पार कर रहे है। नगर निगम के पास अभी वीवीआईपी के अरेंजमेंट से फुर्सत नही है। सफाई की ज़िम्मेदारी लेकर बैठा विभाग कल हो जायेगा कहकर काम चला रहा है। क्षेत्र के पार्षद इलाके की सीवर व्यवस्था को दुरुस्त करवाने की अपनी चाहत में पार्षद तो बन गए, मगर चाहत अब तक अधूरी है। अब दुबारा पार्षद बनेगे तो शायद इस चाहत को पूरी करेगे। दुकानदार कहते है कि उनका कारोबार सीवर में बह गया है।
अब सबसे बड़ी बात ये है कि जो नगर निगम अपनी सफाई चौकी पर हुआ अतिक्रमण नही अभी तक खाली करवा पाया है, वह नगर निगम अतिक्रमण की दुहाई ज़रूर देता है। इसी इलाके में कभी नगर निगम की सफाई चौकी थी। वह अब अतिक्रमण के कारण समाप्त हो चुकी है। अब आप सोचे कि नगर निगम अपनी सफाई चौकी पर हुआ अतिक्रमण नही हटवा पाया और चलो एक काम हल्का हुआ के तर्ज पर दुसरे तरफ मुह कर लिया। वह नगर निगम अन्य इलाको में अतिक्रमण को खत्म करने की बाते कह सकता है।
इतिहास में है कोदई चौकी का महत्व
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर जेपी आन्दोलन तक में इस इलाके ने अपनी महती भूमिका निभाई है ऐसा आपको इतिहास के पन्नो की धुल छाटने पर मिल जायेगा। “संवदिया” का मुख्य अड्डा जंग-ए-आज़ादी के वक्त बनारस का यही इलाका होता था। जंग के आज़ादी में महती भूमिका निभाने का एक कारण यहाँ की मंडी थी। दरअसल ये मंडी चावल की मंडी थी जहा पुरे पूर्वांचल यानी इलाहाबाद से लेकर गोरखपुर तक के कारोबारी आते थे। मुख्य रूप से यहाँ का कोदो का चावल मशहूर था। कारोबारी यहाँ चावल बेचने और खरीदने आते थे।
इतिहास के जानकारों का कहना है कि कोदो के चावल के साथ “संवदिया” इस शहर से उस शहर का सफ़र करती थी। अंग्रेजो के भी सारे कीले उखड गई थी कि आखिर इस सन्देश वाहक मंडी को कैसे खत्म करे। मगर हम भारतीय भी बड़े जुझारू थे। इतिहासकार मोहम्मद आरिफ कहते है कि कोदो के चावल का सैम्पल आज़ादी के परवानो को सन्देश पहुचाने का काम करता था। अँगरेज़ कभी समझ नही पाए कि चावल के दानो से कैसे सन्देश जाता है। आज़ादी हासिल हुई तो जश्न हुआ। इसके बाद आती है बारी दुसरे आन्दोलन की जिसको इतिहास लोकतंत्र का आन्दोलन कहता है।
लोकतंत्र के आन्दोलन यानी जेपी आन्दोलन में भी अपनी बड़ी भूमिका इस इलाके ने निभाई थी। सियासत में भी इस मार्किट का बड़ा मुकाम था। कोदो का चावल बेचने वाली इस मंडी में जब चावल की आमद और खपत कम होने लगी तो फिर यहाँ “बाना बदलो” की मुहीम ने अपना रंग दिखाया और इलेक्ट्रानिक सामानों की पुरे पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी यह इलाका हो गया। सरकार को भारी राजस्व देने वाले इस मार्केट की स्थिति यह है कि बाजार की मुख्य सड़क इन दिनों झील बनी हुई है।
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