तारिक़ आज़मी
वाराणसी। शहर बनारस इल्म की नगरी रही है और आज भी है। धार्मिक सौहार्द की इस बस्ती में मज़हब की आड़ लेकर कुछ खुराफाती आज भी अपनी खुराफात से बाज़ नही आते है। पिछले दो दिनों से दालमंडी में ऐसी ही एक खुराफात चर्चा का विषय बनी हुई है। इस महज़ब को लेकर हुई खुराफात की जड़ मदनपुरा स्थित मदरसा जामिया हमीदिया रिजविया के एक शिक्षक और खुद को आलिम कहने वाले मौलाना मोईनुद्दीन द्वारा जारी एक कथित फतवा रहा जिसके हिंदी अनुवाद की प्रति कल से दालमंडी में तकसीम किया गया। इस कथित फतवे के अनुवाद की एक प्रति हमारे भी पास आई।
क्या है असल मामला
दालमंडी के कच्ची सराय निवासी मरहूम अब्दुल हमीद खान उर्फ़ नन्हे खान अपनी पूरी ज़िन्दगी लोगो की सेहत को दुरुस्त करने के लिए जोशांदे का काम करते थे। मशहूर “जंगी जुशांदा” नन्हे मिया के ज़रिये ही मशहूरियत के अर्श तक पंहुचा था। नन्हे खान के दो पुत्र अब्दुल साजिद खान उर्फ़ शरीफ और अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस थे। अगर नन्हे मिया के करीबियों की माने तो नन्हे मिया ने अपनी हयात में ही अपने दोनों बेटो के लिए पुख्ता इंतज़ाम कर डाले थे। अब्दुल साजिद उर्फ़ शरीफ को एक दूकान करवा दिया था और अपने वक्फ रिहायशी मकान जो वक्फ अलल औलाद है का मुतवल्ली अपने छोटे बेटे अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस को मुक़र्रर कर दिया था।
वक्त गुज़रता गया और साजिद खान ने अपनी दूकान को बाद में बेच दिया। शाहिद दुबई में नौकरी करने लगा और उसके बीबी बच्चे यही उस रिहायशी मकान में रहने लगे। वक्त करवट लेता गया और कभी जो मुहब्बत दोनों भाइयो में थी वह तल्खी में तब्दील हो गई। कई विवाद होने लगे। मोहल्ले वाले विवादों का निपटारा दोनों को समझा बुझा कर देते थे। दरअसल सूत्र बताते है कि साजिद खान उस भवन का खुद मुतवल्ली होना चाहते थे मगर ये तब तक संभव नही होता जब तक शाहिद मुतवल्ली है। अब रास्ता महज़ दो बचा कि यदि किसी तरह से शाहिद खान को इस्लाम से खारिज बता दिया जाए तो मुतवल्ली बनने का रास्ता आसान हो जाएगा। इसके लिए अब्दुल साजिद खान ने एक फतवा मदरसा जामिया हमीदिया रिजविया से ले लिया। अब वह कथित फतवे का हिंदी अनुवाद करवा कर साजिद खान उर्फ़ शरीफ दालमंडी में तकसीम कर रहे है।
क्या है फतवा और क्यों विवादित है
फतवे में साजिद खान उर्फ़ शरीफ खान ने आरोप लगाया है कि उनका छोटा भाई अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस ने एक तांत्रिक क्रिया करवाया था। फतवे में मौलाना तुरंत अल्लाहताला के सिपाहसालार बन गये और खुद ही शरियत बन बैठे और खुद ही इन्साफ कर बैठे। गवाहो के नाम लिखने के बाद उन्होंने फतवा दे डाला कि अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस ने अपने घर के अमन-ओ-शांति के लिए हवन करवाया है और वह इस्लाम से खारिज है। वह अब तौबा करे और अपनी पत्नी से दुबारा निकाह करे। तब तक कोई भी उससे सलाम और कयाम (बातचीत-मेलजोल-रिश्तेदारी) न रखे।
मौलाना मोईनुद्दीन इस्लाम के बड़े वाले पैरोकार बनकर कथित फतवा दे डालते है कि मुसलमान शाहिद खान उर्फ़ अनीस को बायकाट कर दे। असल में लगता है मौलाना घर से सुबह सुबह सुन कर आये होंगे और उन्होंने कसम खा लिया होगा कि आज इस्लाम को पूरा का पूरा तालिबानी बना देंगे। हमारे भी दिमाग में एक सवाल उठा कि मौलाना से पूछे कि हुजुर जिसके ऊपर फतवा दिया कि वह अपनी बीबी से दुबारा निकाह करे तो जो बच्चे है उनका क्या ? उन्ही से काम चल जायेगा या फिर बच्चे भी दुबारा पैदा करना पड़ेगा ? वैसे आप हमारे सवाल पर जोर से हस सकते है सिर्फ मुस्कुराने से काम नही चलेगा।
मौलाना क्या आप इल्म-ए-गैब पढ़े हुवे है ?
मौलाना मोईनुद्दीन ने अगर ये फतवा दिया है तो सबसे बड़ी बात ये है कि मौलाना को क्या इल्म-ए-गैब है कि जिसके ऊपर फतवा दिया है वह शांति पाठ ऐसे करवा कर बैठा है। वैसे मौलाना मोईनुद्दीन साहब ने थोडा हड़बड़ी दिखाई होगी। शायद चरागी थोडा ज्यादा मिल गई हो, और मौलाना ने आरोप लगाने वाले द्वारा जिन गवाहों के नाम दिए गए थे उनसे मामले की तस्दीक भी नही किया होगा। दरअसल शायद चरागी के चक्कर में मौलाना के फोन की आउटगोइंग नही रही होगी जो उन्होंने उन गवाहों से फोन पर भी बात नही किया।
क्या कहते है गवाह
इस कथित फतवे में दो गवाहों के नाम मौलाना ने उनके मोबाइल नम्बर सहित लिखा है। दरअसल इस कथित आरोप कि अब्दुल शाहिद खान उर्फ़ अनीस ने शांति हेतु पाठ करवाया के गवाह दो लोग है। एक का नाम आफताब आलम है और दुसरे का नाम परवेज़ खान, दोनों ही जिसने फतवा माँगा और इसके खिलाफ ये कथित फतवा दिया गया के सगे जीजा है। एक जौनपुर रहते है दुसरे मिर्ज़ापुर में रहते है। वही तीसरे जीजा दालमंडी में ही रहते है, और चौथे महरौली में। मगर जो शहर में रहते है उनको नही मालूम चला और 60 किलोमीटर दूर बैठे शख्स और दुसरे 40 किलोमीटर दूर बैठे शख्स को पता चल जाता है, ये बात शक करने वाली थी।
हमने दोनों गवाहों से बात किया। हमारे पास बातचीत की रिकार्डिंग सुरक्षित है। परवेज़ खान जो मिर्ज़ापुर रहते है ने साफ़ साफ़ कहा कि ऐसा कुछ हुआ मेरी जानकारी में नहीं है, और मैंने कही कोई भी ऐसी गवाही भी नही दिया है। वही जौनपुर निवासी आफताब आलम ने साफ़ साफ़ कहा कि दोनों भाइयो का आपसी विवाद है और इस विवाद में ये फर्जी फतवा टहल गया। मैंने किसी भी तरीके की कही गवाही नही दिया है। न ही मैं इस मामले में कुछ जानता हु। बेहद जलील हरकत है जो किया गया है। किसी को कौन अख्तियार देता है कि वह किसी को इस्लाम से बेदखल कर दे। ऐसे आलिमो के वजह से पुरे कौम को बदनामी झेलनी पड़ती है।
क्या कहते है मौलाना मुईनुद्दीन
हमने इस मामले में मदरसे से संपर्क किया। वैसे तो किसी ने सामने से आकर कोई जवाब देने से मना कर दिया और मामला सुनकर तथा मौलाना मोईनुद्दीन के नाम पर कई लोग सिर्फ मुस्कुरा कर कहे कि वो घर जा चुके है कल सुबह उनसे मुलाकात होगी। हमने बड़ी मुश्किल से मौलाना मोईनुद्दीन का नम्बर प्राप्त किया। उनको फोन किया तो मौलाना ने मुझको ही जाहिल बना डाला। हमारे सवालो से घिरे मौलाना मोईनुद्दीन ने हमसे कहा कि “आप इस्लाम को नही समझते और आपको शरियत की कोई जानकारी नही है। आप जाहिल है।” हमने भी कह दिया अल्लाह का शुक्र है आप जैसे इल्मदार नही है जो शरियत का मज़ाक खुद के ज़ाती मुफात के लिए उठाते हो।
मौलाना जब हमारे सवालों का जवाब नही दे पा रहे थे तो वह बार बार वसीम रिज़वी का नाम लेकर बीच में चले आ रहे थे। जब हमने कहा कि हमारे सवाल वसीम रिज़वी के मुताल्लिक नही है आपके ज़रिये जारी फतवे के मुताल्लिक है और हमारे पास दोनों गवाहों के बयान है कि उन्होंने गवाही नही दिया। तो मौलाना थोडा सिकपिका गए और बोले कि क्या फतवा दिया था याद नही है, कल आइये हम आपको बतायेगे। वैसे मौलाना ने एक बार भी नही कहा कि हमने ऐसा कोई फतवा दिया ही नही। उनकी ऐसे फतवे देने की मौन स्वीकृति थी। अब मौलाना क्या रोज़ बैठ कर फतवा-फतवा खेला करते है क्या जो कितना फतवा दे डाला याद ही नही उनको?
क्या कहता है मदरसे का प्रबंधतंत्र
मदरसे के प्रबंध तंत्र से हमने संपर्क करने की कोशिश किया तो वह लोग शायद शहर के बाहर किसी कार्यक्रम में गए हुवे थे। फोन पर फंसी हुई आवाजो के बीच हमसे बात तो नही हो पाई, मगर जितनी बात उनकी समझ में आई वह यही थी कि प्रबंध तंत्र ने इस तरीके के फतवों से खुद का पल्ला झाड लिया है।
क्या कहता है पीड़ित अब्दुल शाहिद उर्फ़ अनीस और उनके अधिवक्ता
हमने इस मामले में इस कथित फतवे के शिकार हुवे पीड़ित अब्दुल शाहिद उर्फ़ अनीस से संपर्क किया तो वह अपने अधिवक्ता के यहाँ बैठे थे। हमने उनके अधिवक्ता के चेंबर में उनसे मुलाकात किया तो इस कथित फतवे से परेशान अनीस ने कहा कि मैं खुद हैरान हु, ऐसे फर्जी आरोपों को लगा कर मुझको बेईज्ज़त किया गया है। आखिर बिना सच जाने कैसे कोई किसी के खिलाफ “कुफ्र का फतवा” दे सकता है। जिस वक्त ये फतवा दिया गया है मैं उस समय इण्डिया में ही नही था बल्कि दुबई में था। मगर यहाँ सच जाने बगैर ऐसे फतवे दिए गए। मुझको ज़लील करने की कोशिश किया गया है। हमारे मोहल्ले में ये लोगो को बाटा गया है। मैं अपने स्वाभिमान की लड़ाई लडूंगा और ऐसे फतवा देने वालो के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करूँगा।
अब्दुल शाहिद के अधिवक्ता शिशिर सिंह और जाफर अली ने कहा कि हम इस प्रकरण में मदरसे और फतवा देने वालो सहित अन्य को कानूनी नोटिस दे रहे है और न्यायिक प्रक्रिया के तहत ऐसे लोगो पर कानूनी कार्यवाही की तैयारी कर रहे है। हम इस मामले को अदालत में लेकर जा रहे है। किसी को ऐसे कोई फतवा धर्म निकाले का नही दे सकता है। ऐसे किसी पर कोई भी उठेगा फतवा दे डालेगा ये कैसे संभव है।
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